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Saturday 26 March 2016

क्यों डर रही जातिवाद सरकार हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के आन्दोलन से सिर्फ दलित आक्रोश से नहीं , आग की तरह बढती दलित चेतना से डर लगता है जातिवादियो को

क्यों डर रही जातिवाद सरकार  हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के आन्दोलन से
सिर्फ दलित आक्रोश से नहीं , आग की तरह बढती दलित चेतना से डर  लगता है जातिवादियो को

हैद्राबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय मे जो हो रहा है, उसे देखकर कुछ बातो का निष्कर्ष निकलकर सामने आ रहा है..
पिछले कुछ सालो मे दलितोने शिक्षा और सामाजिक आंदोलन मे जो कार्य किया है, वो जितना काबीले तारीफ हमारे लिए है, उतना ही चिंताजनक मनुवादीयो के लिए बनता जा रहा है.

आपको शायद याद होगा के "बाबासाहब का एक भाषण, जिसमे उन्होने पढे लिखे लोगो के धोखा देणे की बात कही थी"..इसीको इस्तमाल करके, मा. कांशीराम पढे लिखे दलित कर्मचारीयो को जगाते रहे, फिर भी जितने बडे पैमाने पर यह होना चाहीए था, उतना हुआ नही. पर इसका असर उन विद्यार्थीयो पर हुआ, जिन्होने समाज के उत्थान की जिम्मेदारी अपने सर ले ली. शिक्षा मे अव्वल स्थान के साथ साथ वो आंबेडकर विचारधारा को समझने लगे और उसका इस्तमाल आंदोलन मे भी करणे लगे. आपको यह मानना होगा के, जिस दिशा मे समाज का युवा वर्ग चलता है, उसी दिशा मे समाज को चलना पडता है. हमारा युवा बाबासाहब की राह चलने लगा, और असर ये हुआ के समाज भी चलने लगा. जो के मनुवादीयो को कतेह मंजुर नही है.

दुसरी सकारात्मक बात यह बनी के, विश्वविद्यालयो मे पढणे के कारण, एवंम सामाजिक आंदोलन को समझने के कारण कई अनुसुचित जाती, जनजाती और पिछडा वर्ग, अल्पसंख्याक भी साथ आने लगे. इसका नतीजा भविष्य मे यह होता के यह सारा समाज भी साथ आ जाता. खास तौर पर अनुसुचित जाती और जनजाती अपनी अपणी जाती की सिमा लांधकर 'जय भिम' विचारधारा के तहत एक भी होने लगे. जहा तक सब समाज की बात है, उनके एक होने के पिछे जो कारण है, उनमे पहला था, शिक्षा और दुसरा है आरक्षण. इसलिए जबतक यह दोनो कायम है तब तक आंबेडकरवाद के जितने की गुंजाईश बढती रहेगी. यही कारण है के मनुवादी भाजपा और आर एस एस और छाञ संघटन आंबेडकर विचारो के विद्यार्थीयो को लक्ष बना रहा है. आर एस एस आरक्षण के खिलाफ बात करते है और भाजपा आरक्षण का विरोध नही करती.

विश्वविद्यालयो मे दलित छाञ भयग्रस्त अवस्था मे रहे, ना ही वो शिक्षा ले पाये और ना ही आंदोलन मे हिस्सा, इस तरह से उनका दमन शासन प्रशासन की मदत से आंरभ हो चुका है.
हैद्राबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय मे जो चल रहा है, वो इतना भंयकर है के आप सोच भी नही सकते. ना उसके विषय मे कुछ दिखाया जा रहा है, ना लिखा जा रहा है.
भाजपा के, कॉग्रेस के दलित विधायक, सांसद, और छोटे मोठे कार्यकर्ता तो गुलाम है, उनसे कहा कोई उम्मीद है, पर हमारे नेता गण, उनकी क्या मजबुरी है?
मा. कांशीरामजी होते, तो शायद यह नौबत आती ही नही, और आती भी तो साहब वही रहते, बच्चो के बीच. बहनजी भी अगर वहा जाये तो बात बन जाये...पर खैर..कोई बात नही.

इसलिए मै कहते आया हु, पुराणे और बेकार नेताऔसे रिश्ता तोडो..आंदोलन मे भावनिकता नही, प्रामाणिकता जरुरी होती है. जो जिस तरह भाजपा, कॉग्रेस मे काम कर रहे दलित नेता, कार्यकर्ता मे नही होती, उसी तरह भाजपा, कॉग्रेस से बाहर रहकर उनकी रोटी पर पलने वालो की भी नही होती.

संपुर्ण भारत मे दलितोपर जो अत्याचार हो रहा है उसकी जिम्मेवारी महाराष्ट्र के लोगो की है. महाराष्ट्र के लोगो ने जिसमे मेरा भी नाम आता है, बाबासाहब के आंदोलन को जिस तरह से पिछे लाया, उसे देखकर बाकी राज्यो के दलित भी निराश हो गये है. जिस भुमीपर बाबासाहब के आंदोलन ने जन्म लिया, पला बढा और कामयाब भी हुआ, उसी धरतीपर जब यह आंदोलन कामयाब नही हो पा रहा है, यह सोचकर बाकी राज्यो मे दलित परेशान है.
फिर भी जब पुरे भारत का युवा, पिछली बाते भुलाकर फिर बाबासाहब के आंदोलन से जुडने लगा तो उनकी हालत यह हुई है.
भाजपा आंबेडकरी युवाऔका दमन कर रही है और अफसोस की बात यह है के इनके पिछे कोई भी ऐसा राजनेता नही है, जो इन्हे न्याय दिला सके और इनका दमण रोख सखे.
महाराष्ट्र के आंबेडकर अनुयायी को हैद्राबाद की घटनासे कुछ सिखना होगा. पहला यह के, अगर आज महाराष्ट्र बाबासाहब की राह पर नही चलेगा तो देश भी नही चलेगा. अगर महाराष्ट्र मे बेकार, और चमचो को नेता मानने का सिलसिला नही थमेगा, तो यह पुरे भारत मे जोर शोर से बढेगा.

हैद्राबाद की घटना मुझे महाराष्ट्र के आंबेडकरवादीयो के मुह पर एक तमाचा लगता है....यह वो संदेश महाराष्ट्र के आंबेडकरवादीयो को है के तुम जब बाबासाहब के धरतीपर उन्हे जिता नही सके तो देशभर मे क्या जिताऔगे और यह संदेश समस्त भारत के दलितो के लिए भी है, के जब महाराष्ट्र मे कुछ नही हो सका, तो आप क्या कर लोगे और करोगे तो यह सब होगा.

अब महाराष्ट्र के आंबेडकरवादीयो को सोचना है के आगे क्या करणा है. आंबेडकरवाद को देश मे जिताने की पुर्व शर्थ है के "आंबेडकर वाद पहले महाराष्ट्र मे जीते."

इसके लिए जो तयार है..उसे दिल से
"जय भिम"

और रोहीत वेम्युला को न्याय बहोत जल्द मिलेगा..हैद्राबाद मे जो पोलीस जिसके कहने पर हमारे विद्यार्थीयो को पीट रही है, कल यही पोलीस हमारे कहने पर उनको पिटेगी....

वो ताकद जल्द ही पहले महाराष्ट्र मे पैदा होगी और फिर संपुर्ण भारत मे....

रॉ एजेंट भारत का ही है, भेजा गया था मिशन पर : पाकिस्तान में गिरफ्तार , भारत ने किया इनकार : कुछ भी हो सकता है !

  जन उदय : भारत में आय दिन अक्सर बम्ब धमाके होते रहते है , जिनकी जांच पड़ताल में भारत की जांच एजेंसिया काफी व्यस्त रहित है  इन्ही बातो को लेकरआये दिन आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता  रहता है , 
इसी बहाने देश के लोगो में देशभक्ति भी जागती रहती है . थोड़े दिन तक यह ड्रामा चलता है  फिर ख़ामोशी छा  जाती है .

लेकिन सभी लोग ध्यान से सोचे तो आपको एक बात  बड़ी समान्य रूप से मिलेगी की इस तरह के धमाके  , गोली बारी आतंकवादी हमले कुछ ख़ास समय पर होते  है , जब की पाक्सितान में सरकार वहा की जनता का ध्यान कुछ मुद्दों से हटाना चाहती है  और भारत मे भी ऐसा ही वक्त होता है 

जब देश के लोगो का ध्यान दूसरी तरफ खींचना  चाहती है यानी अगर हम भारत में देखा जाए तो इस वक्त चुनाव से भी जयादा बड़ा मुद्दा  रोहित वेमुला की संस्थानिक हत्या का है , जिस पर से सरकार ध्यान हटाना चाहती है . 


हैदराबाद  यूनिवर्सिटी में  पुलिस द्वारा  छात्रो की पिटाई उनको  बिना  किसी जुर्म के अंदर जेल में ठूंस देना , इन मुद्दों ने पूरी ध्यान  खींचा हुआ है लेकिन सरकार हटाना चाहती है
यह बात  सनद रहे  की जिस प्रकार मीडिया चिल्ला रहा है की यह शक्स  जो पाकिस्तान में पकड़ा  गया है जिसका नाम कुल्भुष्ण यादव है वह रॉ का एजेंट नहीं  है बल्कि पाकिस्तान  भारत पर झूठा इल्जाम लगा रहा है . तो  यह बात समझ लेनी चाहिए  की भारत का मीडिया दरसल मीडिया नहीं एक भाड़े का कुत्ता है , पैसा लेकर भोंकता  है

मेरी निजी टूर पर कई  फौजी अफसरों से बात हुई है और वे ये मानते है की पहले भारत के सैनिक या एजेंट पाकिस्तान जा कर  इस तरह की वारदातों को अंजाम देती थी ताकि दुसरा देश उन्ही मामलो में उलझा रहे   , हलांकि बीच में ये सब बंद हो गया था  लेकिन फौजी इसके हक में थे ,

इसके अलावा ये बात भी ध्यान रखनी चाहिए की इस तरह की  वारदाते विदेश निति का एक हिस्सा होती है जिसको खुल्ले टूर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता लेकिन होती है   एशिया में यानी भारत पाकिस्तान , अफगानिस्तान या दुसरो देशो में ये स जानते है की आतंकवादी अमरीका  की देन  है और उसी के पैसे से ये आतंकवादी संघठन  चलते है लेकिन कोई भी इस बात को साबित नहीं कर सकता



ठीक इसी तरह अब भारत ने भी दुबारा से इस तरह की घटनाओं को अपनी विदेश निति में शामिल कर लिया  हो ऐसा सम्भव है  इसलिए इसमें  हैरानी की कोई बात नही  , फिर भी इस बात को स्वीकार नहीं किया जाएगा  और ये भी हो सकता है की पाकिस्तान कोरी बकवास कर रहा हो 

संसद सदस्यों में दलित डौगी भी शामिल है ,इसलिए नहीं मिल रहा रोहित वेमुला को न्याय

 जन उदय : वो कैसे लोग होंगे जो अपने भाइओ को मरवा कर  खुश होते होंगे , ऐसी कितनी  माँ  होंगी जो अपने बेटी की बलि चड़ा कर  खुश हो कर नाचती  होगी , ऐसी  कितनी बहने होंगी जो अपने भाइओ का गला कटते  देख ख़ुशी से चहक  जाती  होंगी .

आप सब कहेंगे की क्या बकवास कर रहा है बे , तेरे दिमाग का संतुलन  बिगड़  गया है क्या
जा के   पागल खाने में जा कर अपना इलाज करवा ले ,  और ज्यादा ही पागल है तो इसको गोली मार  दो क्योकि पागल कुत्ते  का सिर्फ एक ही इलाज होता है उसको गोली मार देना
लेकिन ये सच है खासकर दलितों के मामले में ये एकदम सही है , देश में कितने दलित हर साल मारे जाते है न जाने कितनी दलितों की  बस्तिया  जलाई जाती है , कितनी ही दलित लडकियो के बलात्कार होते है


लेकिन इनके लिए न तो कोई कानून आता है रक्षा करने  और न ही कोई समाज , आता है  हाँ इनके रहनुमा दलित  इनके नाम से अपना धंधा जरूर चलाते है .
देश की संसद में चलो आरक्षण से ही सही , बाबा साहेब के वरदान से इतने दलित सांसद बन कर आ जाते है  लेकिन बावजूद इनके  दलितों का कत्ले आम , बलात्कार , हत्या लगातार चलती है    और ये देखते रहते है , तो ये वही लोग हो गए न अपने बच्चो की मौत का जश्न  मनाने वाले ??

अगर एक बार ये सारे सांसद , विधयाक  एक साथ मिल कर  अपनी पार्टी लाइन  से अलग आ कर सारे अपने दलित भाइओ के अधिकारों के लिए मैदान में कूद जाए   तो  किसकी मजाल जो दलितों पर जुल्म कर दे या उनका हक उनसे छीन  ले . पूरी संसद ही जाएगी अगर एक बार सारे सांसद आ जाए

लेकिन नहीं इन्होने वह भी धंधा  बनाया हुआ है  दलित सांसदों का एक दल बनाया हुआ है  , वो किस लिए है  किसी  को नहीं पता ??

हाँ ये सारे के सारे सांसद उस वक्त अपने ही लोगो के खिलाफ जरूर भोंकने लग जाते है जब इनकी पार्टी इन्हें कहती है , कुल मिला कर इनका अपना कोई वजूद नहीं  ये सिर्फ कुत्ते है जो अपने मालिक के कहने पर भोंकते है , आज रोहित को  न्याय नहीं मिल  रहा है   इसके जिम्मेदार दलित कुत्ते  ही है


जानिये क्यों नहीं कामयाब होंगे दलित आन्दोलन : रहेगी ऐसी ही स्थिति हमेशा

 जन उदय : हाल ही में रोहित वेमुला की संस्थानिक हत्या ने पुरे देश को ही नहीं पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया है , पूरी दुनिया में इसका विरोध चल रहा है , लेकिन सरकार रोहित वेमुल को  न्याय देना  तो दूर  बल्कि और भी जयादा दमनकारी  रवेय्या  अपना रही है ,  आंदोलनकारी   छात्रो पर जितना हो सके उतनी  क्रूरता  से प्रहार कर रही है  , कानून क्या है  सविंधान क्या है  न्याय क्या है सरकार को इससे कोई मतलब नहीं है  उसका एक ही उदेश्य है दलित छात्रो  को और दलित बुधिजीविओ  को भयभीत कर देना  , डरा  देना   ताकि वो इस आन्दोलन में किसी  भी तरह से शामिल न हो पाए !

इतिहास गवाह है  जब जब  जनता  ने विद्रोह किया है शासन ने इसी तरह से उनका दमन किया है  और अंत में जीत जनता की हुई है , लेकिन यहाँ दलित आन्दोलन में कुछ पेच है जिनकी वजह से दलित छात्र  या आन्दोलनकारी हमेशा मरते  रहेंगे , पिटते  रहेंगे  लेकिन कोई उनकी वजा नहीं सुनेगा


जिसके मुख्य कारण यह है  ,

दलित आन्दोलन या दलित पुरे देश में एक नहीं है  इनकी मानसिक शक्ति का बिखराव बहुत है  थोडा बहुत भी जो दलित चेतन हो जाता है या तो वह ब्राह्मणों की तरह ही अपने समुदाय से भेदभाव करने लग  जाता है या  उनसे पूरा अलग हो जाता है और ऐसी मानवता की बात करने लग जाता है जो  प्रभुतत्व  वर्ग यानी ब्राह्मण इन्हें सिखाता है  , यानी वह खुद अपनी कौम की जड़े काटने लग जाता है

दूसरा ऐसे भी दलित है जो अपना जीवन संघर्ष  दलितों के नाम से शुरू करते है और दलितों के नाम पर  खाते कमाते है  लेकिन जैसे ही इन दलित नेताओं की शक्ति काफी बढ़ने लग जाती है वैसे ही दमनकारी लोग इन्हें अपनी गोद  में बिठा लेते है यानी इन्हें पैसे , सत्ता  या कुर्सी का लालच दे कर अपने साथ मिला लेते है  इनमे से उदित राज ,मीरा कुमार , कृष्णा तीर्थ , शैलजा , जगजीवन  राम  आदि सभी लोगो ने   अपने स्वार्थ के लिए दलितों की बली चडाई  है .
इन लोगो की सबसे बड़ी बात यह है की ये लोग अपनी कौम की भलाई तो नहीं कर पाते हाँ इनका सर्वनाश करने  में लग जाते है , हाल ही में रोहित वेमुला को लेकर उदित राज , पुनिया आदि के रवैया ने ये ही दरसाया है


इतनी बड़ी शक्ति दलित फिर भी कमजोर   संघटित क्यों नहीं
आज जितने भी दलित उपर आये है पढ़ लिख गए है ये उन सबकी जिम्मेदारी बनती है की वो अपने समाज के लोगो को संघटित  करे और उन्हें एक प्लेटफोर्म पर लाये लेकिन ऐसा नहीं हो पा  रहा  है कारण अपने अपने स्वार्थो के लिए  जी रहे है ये लोग , न जाने दलितों के नाम पर कितनी पार्टी  , कितने दल है  जो दलितों को एकता और समानता के नाम पर बेवकूफ बनाते है  लेकिन फिर भी इन्हें एक मंच पर नहीं ला पाते  यह सबसे बढ़ा कारण है

 इसमें एक बड़ा कारण यह भी है की ये खुद बाबा साहेब या दलितों के नाम की राजनीती करते है ये खुद बाबा साहेब की आदर्शो पर नहीं चलते खुद की जेब में पैसा आ गया  , पढ़ लिख गए अब ये ब्राह्मण , बनिए बन जाते है , समाज में ब्याह शादियो में समस्त सामाजिक कुरितियो के साथ पेश आते है बल्कि ये इन कुरूतियो को आगे बढ़ाना  अपना फर्ज समझते है

दुश्मन के षड्यंत्र :  अन्य पार्टिया यह तो चाहती ही है जिसके पीछे दलित वोट बैंक आ जाय  या हो वो उनकी शरण में आ जाए इसके लिए पैसा ,  ताकत सब लगा देते है ,मीडिया का रुख हमेश से दलितों के विरुद्ध रहा है  रोहित वेमुला की हत्या और यूनिवर्सिटी में पुलिस द्वारा  छात्रो की पिटाई  और दमन कही नहीं छिपे है लेकिन इनको न तो मीडिया दिखा रहा है और न ही बता रहा है , लेकिन यह सच में हो सकता है ?? 

अगर एक बार देश के सारे दलित बुद्धिजीवी  और नेता , पार्टी  सांसद , अफसर दिल्ली की सडको पर सामने आ जाए तो क्या  रोहित को  न्याय नहीं मिल पायेगा ??  मिलेगा जरूर मिलेगा 

लेकिन ऐसा नहीं हो पायेगा  कारण  कौम के दलाल बहुत है , गद्दार बहुत है , पीछे से टांग खीचने वाले लोग बहुत है

याद रहे  जब किसी ब्राह्मण को कुछ हो जाता है तब ये लोग मानवता की बाते करते है इंसानियत की बाते करते है और पुरे देश को अपने साथ गुमराह करके अपने साथ ले आते है  लेकिन दलितों का तो दुःख भी सच्चा ,  उनकी पीड़ा सच्ची  लेकिन फिर भी ये लोग आपके साथ नहीं  है , ज़रा बगल में बैठे दोस्त से पूछना  की क्या वो दलितों के लिए , रोहित वेमुला के लिए लडेगा  , वो नहीं आएय्गा  , मूह पर कह कर चला जाएगा  , लेकिन इसके बाद आपका विरोध करेगा  वो भी छुप छुप के

लेकिन  कसूर इनका नहीं दलितों का  है क्योकि  ये ही दुकानदार हो गए है , तिलक लगा रहे है और कौम को बेच  रहे है 

सिर्फ भारत ही नहीं जानिये दुनिया के कितने देशो में मिलता है आरक्षण :: राज आदिवाल


दलित आरक्षण के खिलाफ कई तरह के तर्क कुतर्क किये जाते है। उनके कुछ तर्को में दलित आरक्षण विरोधियों का सबसे पहला तर्क होता है कि दूसरे  देशो मे आरक्षण नहीं है इसलिये वो हमसे ज्यादा प्रगितिशील  है। जो बिल्कुल गलत है।

 विदेशो मे भी आरक्षण की पद्धति है। अमरिका, चीन, जापान जैसे देशों में भी आरक्षण है ।

बाहरी देशों में आरक्षण को Affirmative Action कहा जाता है। Affirmative Action मतलब समाज के "वर्ण " तथा "नस्लभेद" के शिकार लोगो के लिये सामाजिक समता का प्रावधान है ।
1961  को संयुक्त राष्ट्र की बैठक मे सभी प्रकार के वर्ण अथवा नस्लभेद रंगभेद के खिलाफ कड़ा कानून बना। इसके तहत संयुक्त राष्ट्र में सम्मिलित सभी देशो ने अपने देश के शोषित  किये हुए वर्ग को (दलित) की मदद करके उन्हें समाज मे स्थापित करने का निर्णय लिया है। इसी के तहत अलग अलग देशो ने अलग अलग तरीके से आरक्षण लागु है।



अन्य देशो में आरक्षण
ब्राझील में आरक्षण Vestibular नाम से जाना जाता है ।
कॅनाडा में समान रोजगार का तत्व है जिसके तहत फायदा वहाँ के असामन्य तथा अल्पसंख्यकों को होता है ।
चीन में महिला और तात्विक अल्पसंख्यको के लिये आरक्षण है ।
फिनलैंड  मे स्वीडीश लोगो के लिये आरक्षण है ।
जर्मनी में जिमनॅशियम सिस्टम है ।
इसरायल में Affirmative Action तहत आरक्षण है ।
जापान जैसे सबसे प्रगत देश में भी बुराकूमिन लोगो के लिये आरक्षण है (बुराकूमिन जापान के  हक वंचित दलित लोग हैं ) 
मॅसेडोनिया में अल्बानियन के लिये आरक्षण है ।

मलेशिया में भी उनकी नई आर्थिक योजना के तहत  आरक्षण जारी हुए है ।
न्यूजीलैंड में माओरिस और पॉलिनेशियन लोगो के लिये Affirmative Action का आरक्षण है ।
 नॉर्वे मे 40 % महिला आरक्षण है पीसीएल बोर्ड में।
रोमानिया मे शोषण के शिकार रोमन लोगों के लिये आरक्षण है ।
दक्षिण आफ्रिका मे रोजगार समता (काले गोरे लोगो को समान रोजगार) आरक्षण है ।
दक्षिण कोरिया मे उत्तरी कोरिया तथा चीनी लोगों के लिये आरक्षण है ।
श्रीलंका मे तमिल तथा क्रिश्चियन  लोगो के लिये अलग नियम अर्थात आरक्षण है ।
स्वीडन मे General Affirmative Action के तहत आरक्षण मिलता है ।
इतना ही नहीं संयुक्त राष्ट्र अमरिका में भी Affirmative Action के तहत आरक्षण है ।                            
अगर इतने सारे देशों में आरक्षण है (जिनमे कई विकसित देश भी शामिल है) तो फिर भारत का आरक्षण किस प्रकार भारत की प्रगति में बाधक है। यहां तो सबसे ज्यादा लोग जातिभेद के ही शिकार हैं । तो फिर दलित तथा पिछड़े वर्ग को क्यों न मिले आरक्षण..??
अगर आरक्षण हट गया तो फिर से एक ही " विशीष्ट " वर्ग का शासन तथा उद्योग व्यवसायों पर कब्जा  होगा, फिर ऐसे में किस प्रकार देश की प्रगति होगी। भारत सिर्फ किसी विशीष्ट समुदाय के लोगो का देश नहीं है, सिर्फ एक वर्ग विशेष की प्रगति से भारत की प्रगति नहीं  होगा।

 जब तक भारत के सभी जाति धर्म के लोग शिक्षा, नौकरी तथा सरकार में समान रुप से प्रतिनिधित्व नहीं करेंगे , तब तकदेश प्रगति नहीं करेगा। अगर  प्रत्येक देश प्रगति के लिए सभी लोगों को साथ लेकर चल रहा है तो फिर भारत क्यों नहीं ..?

भारत में विरोध और अमरीका में आरक्षण की मांग :: अमरीकी सुप्रीम कोर्ट का आदेश नस्लीय और रंग भेद के आधार पर मिले २५ % आरक्षण : इसमें भारतीय भी शामिल



भारत में विरोध और अमरीका में आरक्षण की मांग :: अमरीकी सुप्रीम कोर्ट का आदेश नस्लीय और रंग भेद के आधार पर मिले २५ % आरक्षण : इसमें भारतीय भी शामिल

 भारत में विरोध और अमरीका में आरक्षण की मांगअक्सर आरक्षण पर हो रही बहस में ये कहा जाता है कि आरक्षण के कारण देश तरक़्क़ी नहीं कर पाया । पहले तो यह कहना ही ग़लत है की देश ने तरक़्क़ी नहीं की । ऐटम बम से लेकर मार्स मिशन बिना तरक़्क़ी के नहीं हुए ।


आज आपको में यह भी बताना चाहता हूँ कि ज़्यादातर लोगों को यह जानकारी नहीं है कि अमेरीका जैसे देश में भी रंग भेद  और नस्लीय भेद के कारण Ethnic  Blacks  और अन्य लोगो को भेदभाव से बचाने के लिए अमेरीका के कोर्ट के आदेश के अनुपालन में पदोन्नतियों में आरक्षण देय है ।

अमेरिका में जब यह देखा गया की काले लोगों को रंगभेंद के कारण पदोन्नतियाँ प्रदान नहीं की जाती हैं तो अमेरिका की कोर्ट ने United States Vs Phillip Paradise Case में निर्णय सुनाया कि काले लोगों को पदोन्नतियों में आबादी के अनुपात में 25 % आरक्षण प्रदान किया जाय । इतना ही नहीं, आदेश में यह भी कहा गया की बैक्लॉग पूरा होने तक 50% आरक्षण प्रदान किया जाय ।

इस आदेश को अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी उचित ठहराया गया । यहाँ यह समझने वाली बात है की जहाँ भी सामाजिक भेदभाव है वहाँ सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व तथा विकास बिना आरक्षण के सम्भव नहीं है चाहे वो अमेरिका ही क्यों ना हो ।

कोई भी देश तभी तरक़्क़ी कर सकता है जब उसके समाज के सभी वर्ग सम्मिलित हो ।


आरक्षण को विकास में बाधक बताने वालों का मुँह बंद करने के लिए अमेरीका के इस उदाहरण का व्यापक प्रचार किया जाना आवश्यक है । जो लोग इस तथ्य को झूँठ समझें वो नीचे दिए लिंक