जन उदय : भारत में जातिवाद
पूर्ण रूप से ब्राह्मणों के षड्यंत्र के
रूप में विकसित हुई क्योकि इसका विवरण
भारत के पोरानिक इतिहास में कही नहीं
मिलता बल्कि इसका
प्रमाण ब्राह्मण अपने ग्रंथो में जो दिखाते है वह तकनिकी
और वैज्ञानिक रूप से बोगस है और झूट है
. अपने आपको सर्व्श्रेस्थ और
भगवान् का प्रतिनिधि बना कर पेश करना और सबसे ज्यादा अधिकार अपने पास रखना और धार्मिक
ग्रंथो की रचना कर उनके माध्यम से अपने आपको सभी लोगो पर अत्याचार करने का अधिकार खुद को
ले लेना ये सब षड्यंत्र के रूप में ही सामने आये इनके द्वारा लिखे गए रामायण , महाभारत झूठे और
काल्पनिक ग्रन्थ है
अब सवाल आता है भारत में एक वर्ग द्वारा फैलाई
जा रही भ्रान्तियो के बारे में यानी रामायण और महाभारत कभी इस देश में हुए या नहीं
या ये सिर्फ कोरी कल्पना है , इतिहास ने भी विज्ञान के नियमो को
अपनाया है और इतिहास
का लेखन वास्तुनिष्ट सामग्री पर लेखन के लिए ही
जो डाला गया है , और जब हम वास्तुनिष्ट सबूतों या सामग्री की बात
करते है तो उस पर रामायण और महाभारत खरी नहीं उतरती , आइये देखे कैसे
कहानी रामयाण और महाभारत एक एपिक की तरह लिखे
गए ज्सिका मकसद सिर्फ और सिर्फ एक राजनितिक षड्यंत्र तय्यार करना था जिसका पहला
उधाह्र्ण है
1.कोई भी वास्तु /शिल्प सबूत नहीं : हर राजा ,
महाराजा
, अपने लिए महल बनवाता है , भवन बनवाता है , बाग़ बगीचे
बनवाता है और इन इमारतो को वह कुछ ख़ास तरीके से बनवाता है यानी हम अगर सम्राट अशोक
का इतिहास देखे तो हमें सभी प्रकार के सबूत मिलते है वास्तु भी शिल्प भी लेकिन
रामायण और महाभारत के इन अभिनेताओं का कुछ भी नहीं मिलता , कुछ संघटनो का
कहना है की मंदिर मिले है भगवान् के तो कोई इनसे पूछे क्या भगवान् इन्हों मंदिरों
से शासन करते थे ??
2 . हर शासक , राजा , महाराजा
अपने शासन काल में अपने सिक्के यानी व्यापार के लिए सिक्के ,मुद्रा चलवाता
है , जो निश्चित तोर पर उसकी सीमा और विदेश सीमा यानी उसके शासन के बाहर
भी खुदाई में मिलते है लेकिन रामायण , महाभारत काल का ऐसा कुछ भी नहीं मिलता
३. विदेशो से सम्बन्ध एक राजा के लिए बड़े जरूरी
होते है , युद्ध भी होते है संधिया भी होती है लेकिन इन दोनों काल के यानी
रामायण और महाभारत काल का ऐसा कुछ भी सबूत नहीं मिलता
४. विदेशो से व्यापार , यात्रिओ के लिए
धर्मशाला , सुरक्षा वाव्य्स्था बाग़ बगीचे , सराय
ये सब भी रहा बनवाता है लेकिन इन दोनों काल का कुछ भी नहीं मिलता
५. संस्कृति – कला ,किसी
भी इतिहास में या शासन में अपनी कला और संस्कृति जन्म लेती है , लेखक
,कवी आदि जन्म लेते है लेकिन न तो किताबो के स्तर पर कुछ भी नहीं
मिलता , शिल्प , पेंटिंग , नक्काशी ,
वाल
राइटिंग, वाल कार्विंग , भित्ति चित्र आदि इस काल का कुछ भी
नहीं मिलता
इसके अलावा जो ग्रन्थ या किताबे मिली है उनकी
भी कार्बन डेटिंग से कोई सबूत नहीं मिलता की ये ग्रन्थ बहुत पुराने है बल्कि इसमें
भी घपला है
सो विज्ञान धारणा या कल्पना से शुरू हो सकता है
लेकिन हमने उड़ने की कल्पना की लेकिन उड़े कैसे ? इसलिए विज्ञानिक
कोई भी तत्थ्य आज तक नहीं है और न ही आयगा
खैर यहाँ पर बात चल रही है जातिवाद की तो हम यहाँ पर किसी भारतीय ग्रन्थ
के माध्यम से नहीं बल्कि एक विदेशी
सैलानी मेगास्थिज़ के माध्यम से ही सम्झंगे
की भारत में जातिवाद या जाति का
अस्तितिव ही नहीं था
मेगस्थनीज (Megasthenes, 350 ईसापूर्व -
290 ईसा पूर्व) यूनान का एक राजदूत था जो चन्द्रगुप्त के दरबार में आया था। यूनानी
सामंत सिल्यूकस भारत में फिर राज्यविस्तार की इच्छा से 305 ई. पू. भारत पर आक्रमण
किया था किंतु उसे संधि करने पर विवश होना पड़ा था। संधि के अनुसार मेगस्थनीज नाम
का राजदूत चंद्रगुप्त के दरबार में आया था। वह कई वर्षों तक चंद्रगुप्त के दरबार
में रहा। उसने जो कुछ भारत में देखा, उसका वर्णन उसने "इंडिका"
नामक पुस्तक में किया है।
इंडिका में मेगास्थिज़ ने भारत में यानी चन्द्रगुप्त के समय में समाज
में सात वर्ग बताये यह बात ध्यान में
रहे मेगास्थिज़ ने सात वर्ग की बात की है ,
की जाति की इसमें उसने एक पुरोहित वर्ग बताया जो
लोगो को पूजा कराता था और लोगो के पैसे से या समान से अपना जीवन चलाता
था लेकिन वह सबसे उपर था ऐसा बिलकुल नहीं था , बल्कि इसको कार्य करने
से रोका जा सकता था और वही आदमी फिर
समान्य वग में आ जाता था
दूसरा वर्ग किसान का था जो खेती
करते थे , तीसरा ग्वाले , का था जो
लोग भेड़ बकरिया चराते थे चोथा वर्ग दुकानदार और शिल्पकारो
का था जो दूकान चलाते थे ये लोग टेक्स पे करते थे
पांचवा वर्ग सैनिको का था
और सबसे बड़े और इज्जतदार लोग यही
होते थे
ये लोग युद्ध करते थे और शांतिकाल
में आराम करते थे
सातवा
और अंतिम वर्ग मंत्रियो का था जो राज्य से सम्बन्धित हर कार्य में राजा से मंत्रणा करते
थे और नीतिया बनाते थे . मेग्स्थिज़ ने एक ही
परिवार और वंश में पैदा हुए लोगो को हर तरह के काम करते देखा
यानी कोई भी वेग निश्चित और स्थाई
नहीं था बल्कि योग्यता के अनुसार
अपने वव्साय को चुन सकते थे
अब चूँकि
मेगास्थिज़ ३०० बी सी में
था और जाति नहीं थी
तो ब्राह्मण कैसे कामयाब हो गए इस तरह के समाज का निर्माण करने में
वैज्ञानिक
रूप से यह बात प्रमाणित है की
ब्राह्मण विदेशो से आय
कार्य घुमन्तु लोग थे और यहाँ आकर इन्होने शरण मांगी जो इन्हें दे दी गई
इन्होने कई बार इस देश और समाज से गद्दारी करने
की कोश्सी की लेकिन ये लोग कामयाब १८० बी
सी में हो गए परशुराम / पुष्यमित्र शुंग इसे ब्राह्मण भगवान् भी मानते है क्योकि इसने मौर्य सम्राज्य को धोखे से समाप्त कर ब्राह्मण
शासन स्थापित किया इसके अशोक के पोते
व्रह्द्स्थ को धोखे से मार दिया था और लाखो
बौध लोगो की ह्त्या की और चोरासी
हजार बौध विहारों को तोड़ मंदिरों में बदल दिया यह बात सनद रहे कि
इससे पहले मंदिर नहीं थे लेकिन लोगो
के कुल देवी देवताओं के पूजा गृह थे
इसके बाद इन्होने इन्होने जातिवाद यानी अपने आपको सव्र्श्रेस्थ रखने के लिए ऐसे
ग्रंथो की रचना की जिनके जरिये देश में असमानता
, बर्बरता , आज भी बरकरार है , और
इसी कारण देश का सबसे बड़ा वर्ग तरक्की
नहीं कर पाया शिक्षित नहीं हो पाया और यही कारण देश की बदहाली के कारण ये ही लोग है
Megasthene traveler visited India during the reign of
Chandergupta , his account book Indika
revealed that there was no caste
system in India instead seven class of
workers were there .
Later on caste was
created by the Brahman / Aryan Invaders as a part of conspiracy against the aboriginals
along with Ramayan , Mahbharat , Manusimriti
and other fake scriptures .
Carbon dating of
these books has confirmed these books age and are not ancient book but
were written during the 180 BC to 230 AD