जन उदय : दुनिया के ऐसे बहुत कम ही देश बचे
होंगे जो किसी न किसी तरह के हिंसक आन्दोलन या आतंकवाद से न जूझ रहे हो , पूरा
एशिया , यूरोप , अमरीका सभी देश इस बिमारी से ग्रस्त है ,
ये
आतंकवाद कैसे पनपा कैसे आया सबसे पहले हम आतंकवाद की कुछ प्रक्रति से मिल लेते है
पूरी दुनिया में हम जिस आतंकवाद को जानते है वह
है हिंसक आतंकवाद यानी इसमें या इसके मानने वाले सिर्फ हिंसा में विशवास रखते है
यानी अल कायदा , आर एस एस , आइसिस ,लिट्टे
जैसे संघठन इसमें आते है , दूसरा होता है सांस्कृतिक आतंकवाद जो
दुनिया में सिर्फ आर एस एस चलाता है इसके पूरी दुनिया में बहुत सारे सन्घठन है जो
लोगो को गुमराह करके अपनी संस्क्रती की और खींचते है और उन्हें अपने समाज और
संस्क्रती की सच्चाई से दूर रखते है , आर एस एस के सन्घठन , अमरीका
, यूरोप , कनाडा ,एशिया सभी देश में ये लोग काम करते है
इसके कुछ मुख्या एजेंट है ब्रहम कुमारी , पतंजलि , आर्ट ऑफ़ लिविंग ,
विश्व
हिन्दू परिषद , बजरंग दल आदि
तीसरा है राजननीतिक आतंकवाद इसमें अमरीका रूस ,
चीन
, कोरिया इसराइल आदि मुख्य देश है जो पूरी दुनिया में अपना वर्चस्व
कायम करने के लिए इन देशे में तरह तरह के आन्दोलन चलवाते है , इन
देशो की अर्थ वाव्य्स्था पर कब्जा जमाते है और इन् देशो को वैसा ही चलाने की कोशिस
करते है जैसा ये चाहते है
सभी तरह के आतंकवाद का अध्यन अगर हम करे तो हम
ये ही पायंगे की राजनितिक आर्थिक , और हिंसक आतंकवाद उस वक्त खत्म हो जाते
है जब इनका मकसद खत्म हो जाता है लेकिन एक आतंकवाद ऐसा आतंकवाद है जो इतनी अस्सानी
से खत्म नहीं होता बल्कि इसकी विरासत सदीओ तक चलती रहती है और वो है ब्राह्मण
आतंकवाद
बड़े ही साधारण लोग ये कहेंगे की ये ब्राह्मण
यानी हिन्दू दरअसल ये बिलकुल गलत है क्योकि भारत में हिन्दू शब्द मुस्लिम काल से
पहले था ही नहीं , और भारतीय समाज में ब्राह्मण इसलिए उपर रहा
क्योकि ये विदेशी थे और इनको यहाँ यहाँ के लोगो से काफी सम्मान मिला और लोगो ने
अपने दिलो में काफी आगाह भी दी लेकिन इनकी गद्दार प्रवर्तियो के कारण ये अलग ही
रहे मोर्य काल में अशोक के पोते को उसके सेनापति जिसका नाम पुष्य मित्र शुंग था
उसने धोखे से मार दिया इसके बाद इसने सभी बौध लोगो की त्या करना शुरू कर दी जो इन
बचे उनको इन ब्राह्मणों ने गुलाम बना लिया
ब्राह्मण आतंकवाद क्यों दुनिया का सबसे खतरनाक
आतंकवाद कहा जता है इसका पता इसी से चलता है की इन्होने जिन बौध लोगो को गुलाम
बनाया उनको सम्पति , शिक्षा सभी छीन ली और इस गुलामी को पीडी दर
पीडी बनाए रखा , और एक सामाजिक , सांस्कृतिक
वाव्य्स्था कायम कर ली जिसमे अपने आपको भगवान् का दूत बना दिया , अपने
आपको सबसे श्रेष्ठ बना लिया और बौध लोगो को सबसे नीचे स्तर पर लाकर सेवक यानी
गुलाम बना लिया और साथ में यह भी कह दिया की यह भगवान् का आदेश है . ये लोग समाज
के सबसे निचले स्तर पर ही नहीं पहुचे बल्कि आर्थिक सामाजिक शेक्षिक रूप से भी बहिष्कृत
हो गए ये पढ़ नहीं सकते थे , समाज में रह नहीं सकते थे , इन
लोगो को शुद्र कहने लगे और इनका मानसिक विकास बिलकुल रुक गया ये कोरे जानवर की तरह
जीवन बिताने लगे ,
हजारो साल बाद इतिहास ने करवट बदली और ब्रिटिश
शासन के दौरान बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने पूरी दुनिया को ये साबित कर दिया की
ब्राह्मण इस देश में विदेशी है . राजनैतिक पहुलुओ को नजर में रखते हुए बाबा साहेब
ने आरक्षण के बदले कम्युनल अवार्ड को छोड़ा .
लेकिन ब्राह्मणों ने तथाकथित शुद्रो को पढने से
रोकने के लिए , उन पर अत्याचार करने में कोई कमी नहीं छोड़ी है
आज भी ये उनको मानसिक रूप से गुलाम बना कर रखना चाहते है देश में इन शुद्रो के
प्रति अत्याचार अभी भी कम नहीं हुआ है
इसलिए हम कह सकते है की गोली से तो आदमी एक बार
मर जाता है लेकिन ब्राह्मणों ने जो सांस्कृतिक गुलामी है वह इतनी आसानी से नहीं
जानी वाली इसलिए दुनिया का सबसे खतरनाक आतकंवाद ब्राह्मण आतंकवाद है
हाल ही में फॉरवर्ड प्रेस में प्रकाशित
श्वेद्श कुमार सिन्हा के एक लेख ने
भारत के बहुजन समाज की स्थिथि को
उजागर किया है जो इस प्रकार है
“””सटी, एससी और ओबीसी
दुनिया में सबसे बदहाल
यह तस्वीर सिर्फ गरीबी की नहीं है, बल्कि
अशिक्षा, भूमिहीनता, विस्थापन और सामाजिक भेदभाव की भी है।
विचारणीय है कि हमारे देश में सबसे ज्यादा गरीब लोगों के बीपीएल के सरकारी आंकड़े
अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों के अनुरूप नहीं हैं। स्वदेश कुमार सिन्हा की रिपोर्ट :.
तमाम दावों के बावजूद भारत के बहुजन सबसे अधिक
बदहाल हैं। यह हालत तब है जब केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक विकास के नये-नये आंकड़े
गढ़े जा रहे हैं। बीेते 23 मार्च 2018 को लोकसभा में जगदंबिका पाल के एक प्रश्न के
जवाब में जो तथ्य सरकार ने स्वीकार किया है, वह सरकारी
योजनाओं और उनके अनुपालन पर सवाल खड़ा करता है। केंद्रीय योजना राज्यमंत्री
इंद्रजीत सिंह ने कहा कि 45.3 फीसदी आदिवासी और 31.5 फीसदी दलित गरीबी रेखा के
नीचे हैं। वहीं अंतरराष्ट्रीय समाजसेवी संगठन एक्शन अगेंस्ट हंगर की रिपोर्ट बताती
है कि भारत में कुपोषण जितनी बड़ी समस्या है, वैसा पूरे
दक्षिण एशिया में और कहीं देखने को नहीं मिला है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत
में अनुसूचित जनजाति (28%), अनुसूचित जाति (21%), पिछड़ी
जाति (20%) और ग्रामीण समुदाय (21%) पर अत्यधिक कुपोषण का बहुत बड़ा बोझ है।
बहुजनों में कुपोषण
समुदाय/वर्ग कुपोषण
अनुसूचित जनजाति 28%
अनुसूचित जाति 21%
ओबीसी 20%
श्रोत : एक्शन अगेंस्ट हंगर, 2017
साथ ही पिछले वर्ष जारी ‘वर्ल्ड हंगर
इंडेक्स’ के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब तथा भुखमरी से शिकार लोग भारत
में हैं, तथा इनमें से अधिकाँश दलित, पिछड़े तथा जनजातीय समाज के हैं। यह
तबका भारत में सामाजिक रूप से ‘बहुजन’ है। इनके विकास के तमाम दावों तथा आरक्षण की
व्यवस्था के बाद भी इनकी स्थिति बद से बदत्तर होती जा रही है। और अब तो यह तथ्य
सरकार भी स्वीकार कर रही है कि भारत में सामाजिक पिछड़ापन और आर्थिक वंचना एक-दूसरे
से काफी हद तक जुड़ी है।
बीपीएल के आंकड़े
समुदाय/वर्ग बीपीएल
के आंकड़े
अनुसूचित जनजाति 45.3%
अनुसूचित जाति 31.5%
ओबीसी सरकार
द्वारा आंकड़े जारी नहीं किये गये
श्रोत : भारत सरकार द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत
आंकड़ा
लोकसभा में सरकार का जवाब इस निर्मम सच्चाई को
ही सामने लाती है। देश की आबादी में दलित 16-17 फीसदी और 7-8 फीसदी आदिवासी हैं।
जो सरकारी आँकड़े सामने आए हैं वे पहले के सर्वेक्षणों से मेल खाते हैं। सरकारी
आंकड़ों के मुताबिक देश में 21-22 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं, लेकिन
दलितों में यह अनुपात देश के कुल औसत से 10 प्रतिशत अधिक है और जनजातियों में तो
यह देश की औसत से 200 फीसदी से भी ज्यादा है। यह स्थिति इस तथ्य की ओर इशारा करती
है कि सामाजिक श्रेणीबद्धता काफी हद तक आर्थिक स्थिति का निर्धारण करती है। इस
वास्तविकता से नज़र चुराना नामुमकिन है कि दलित, पिछड़े तथा जनजातीय
समाज से जुड़े लोगों के साथ सदियों से कैसा अमानवीय व्यवहार होता रहा है। वे
छुआ-छूत, अलगाव समेत अनेक प्रकार के सामाजिक विभेदों के शिकार होते रहे हैं।
ऐसे में आय वाले सम्मानजनक रोज़गार पाना उनके लिए हमेशा ही कठिन रहा है। यह बात भी
सत्य है कि दलित, पिछड़े तथा जनजातीय समाज से कुछ लोग आरक्षण के
सहारे उच्च पदों पर पहुँच गए, लेकिन आरक्षण का लाभ कभी भी इन तबकों
के व्यापक समाज तक नहीं पहुँच सका, तथा यह थोड़े से लोगों के बीच सिमटा रहा,
इसलिए
सभी आरक्षित वर्गों में दलितों व आदिवासियों में तो खासकर आरक्षण से लाभान्वित तबकों
तथा बाकी लोगों के बीच काफी गैर बराबरी दिखलाई देती है। इन वर्गों के बीच से जो
लोग वामपंथी पार्टियों सहित सभी राजनीतिक दलों में सांसद, विधायक, मंत्री
आज बने, वह भी इन वर्गों के छोटे से तबके का ही हित साधते रहे।
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में एक आदिवासी परिवार
आज देश में स्थिति यह है कि अधिकांश दलित
असंगठित क्षेत्र के श्रमिक हैं, जहां गुज़ारे लायक तथा निरन्तर आय की
गारंटी नहीं होती। कृषि मजदूरों में अधिकांश दलित तथा अति-पिछड़ी जातियों के हैं।
कृषि आज लगातार घाटे की स्थिति में है, ऐसे में इन वर्गों की स्थिति बद से
बदत्तर होती जा रही है। जंगलों की व्यावसायिक कटाई तथा विभिन्न परियोजनाओं के नाम
पर आदिवासियों को जल,जंगल तथा ज़मीन से वंचित किया जा रहा है। एक समय
में आत्म-निर्भर जीवन जीने वाले इन लोगों को उनके क्षेत्रों में राष्ट्रीय तथा
बहु-राष्ट्रीय कंपनियों के मजदूर होकर जीवन यापन करना पड़ रहा है, तथा
उनका भारी पलायन महानगरों की ओर हो रहा है, वहां भी वे यौन
शोषण सहित हर तरह के शोषण तथा लूट के शिकार हो रहे हैं।
इस तरह से हम देखते हैं कि यह तस्वीर सिर्फ
गरीबी की नहीं है, बल्कि अशिक्षा, भूमिहीनता,
विस्थापन
और सामाजिक भेदभाव की भी है। इस तथ्य पर भी गौर करने की ज़रूरत है कि हमारे देश में
सबसे ज्यादा गरीब लोगों के बीपीएल यानी गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने वालों के
सरकारी आंकड़े अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों के अनुरूप नहीं हैं। अगर इसे वैश्विक पैमाने
पर लागू करें तो बीपीएल का आंकड़ा बहुत अधिक निकलेगा, तथा दलितों व
आदिवासियों की हालत और भी बदत्तर दिखलाई पड़ेगी।
देश
में अपराधो को कम करने के लिए सभी लोग कड़े से कड़े कानून बनाने की बात करते हैं ,
महिलाओं
पर अत्याचार ,बलात्कार रोकने के लिए निर्भया कानून बना दिया
गया तो एस सी और एस टी उत्पीडन कानून को क्यों न कडा किया जाए जब की गुजरात के उना
जैसी घटनाएं देश में रोज होती है कही न कही देश में किसी न किसी एस सी / एस टी पर
जुल्म होता है जाति सूचक गाली तो आम बात है और उनकी हत्याए मार पीठ नियमित कर्म
काण्ड बन गया है सवर्णों का . हालात यह है की मोदी काल में दलित उत्पीडन के मामलो
में ६०० % से जयादा वृद्धि हुई है तो फिर ऐसी क्या बात है की दलित उत्पीडन से जुड़े
कानून को एक दम कमजोर कर दिया है ?? वह भी यह कह कर की इसका दुरूपयोग हो
रहा है . जब की ऐसा न के बराबर है .अगर ऐसा है तो हम महिला कानून को क्यों नहीं
खत्म करते ?? जबकि सवर्ण महिलाए तो इस कानून का जम कर
दुरपयोग करती है ??
जब की दलित तो समाजिक , आर्थिक और
शेक्षिक रूप से काफी पिछड़े है और इनके पास सिर्फ यह कानून ही एक सहारा था जिसके
जरिये वो अपनी लड़ाई लड़ सकते थे और अब इसको भी छीन लिया गया .
आइये इस कानून की उप्योगियता को इस उधाह्र्ण से
समझते ही
1.एक गरीब दलित अपनी फरियाद लेकर तहसील जाता है
और वँहा जग्गा ठाकुर नाम का अधिकारी मिलता है, उसे जग्गा ठाकुर
फरियाद सुनकर उसे उल्टा एक थप्पड़ मारकर यह कहता है की भाग साले चमार/भँगी के इन्हा
से, उसके बाद जब पुलिस में शिकायत होगी तब पुलिस जग्गा ठाकुर को गिरफ्तार
करने से पहले जग्गा ठाकुर के अधिकारी जो की पक्का आईएएस, आईपीएस की रैंक
का होगा से यह परमिशन लेगी की जग्गा को गिरफ्तार करे या नहीं। अब अगर उच्च अधिकारी
भी ठाकुर, श्रीवास्तव, शर्मा, अग्रवाल होगा तो
समझ जाए की उस गरीब दलित को एक थप्पड़ और मार दिया जाता तो भी कुछ नहीं होगा।
2.दूसरी व्यवस्था यह की गयी है की जग्गा ठाकुर
दलित को सार्वजनिक स्थान पर थप्पड़ बजाता है, जातिसूचक शब्द
कहे जाते है, खूब पिटाई की जाती है तो भी भी एफआईआर दर्ज
होने के बाद पहले डिप्टी एसपी जांच करेगा, उसके बाद ही केस आगे बढ़ पायेगा। अब
डिप्टी एसपी की मानसिकता पर यह निर्भर करेगा की केस दर्ज होना चाहिए या नहीं।
3.तीसरी व्यवस्था यह की गयी की जग्गा ठाकुर
दलित को थप्पड़ व गालिया देने के बाद न्यायलय में जाकर अग्रिम जमानत ले सकता है,
जिसके
बाद आराम से बाहर घूमेगा व जांच को प्रभावित कर सकता है।
अत: अब एससी एसटी एक्ट का कोई औचित्य नहीं रहा
ऐ। चलो मान लिया की दुरूपयोग हो रहा था, लेकिन इसका यह मतलब नही की एक्ट को एक
तरह से निष्प्रभावी ही कर दिया जाए।
इसलिए दलितों को अब समझ लेंना चाहिए की पूजा
करने या व्रत रखने के बाद भी हजारो सालो से कोई भगवान बचाने नही आया है आपको अपनी
सुरक्षा स्वयं करनी पड़ेगी। इसलिए अब मन्दिर में घण्टा वजाने की जगह, शोषण
करने वाले के सर पर घण्टा बजाने का जज्बा लाइये। तभी एट्रोसिटी कम होगी। नही तो
"ओ साले चमार के, ओ साले भँगी के" सुनते रहे।
उपरोक्त आधार
पर हम कह सकते है की यह कानून एक बहुत शक्तिशाली माध्यम था
दलित बहुजन के प्रति अपराध रोकने
में लेकिन अपराधिक मानसिकता और षड्यंत्र के तहत इसको
भी खत्म किया जा रहा है