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Friday 23 March 2018

भगत सिंह को अंग्रेजो ने फांसी दी या भारतीयों ने उसे फंदे तक पहुचाया ??? मो. मिनाज़


जन उदय :   भगत सिंह के  जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी   है  वर्तमान समय यानी आज भगत सिंह के नाम को जिस तरह देश के वो देशद्रोही संघठन  इस्तेमाल कर रहे है  जो लोग खुद उसे फांसी दिलावाने में आगे थे
यह तो एक बात थी  दूसरी बात यह आज भगत सिंह के विचारों की पूरी तरह से हत्या की जा रही है  यानी सबसे पहले भगत सिंह की जो तस्वीर आज हमारे सामने  दिखाई जाती है  वह  एकदम  गलत है यानी भगत  सिंह को एक पीली  पगड़ी  पहने दिखाया जाता है   , जिसका सीधा सा मतलब है की  भगत सिंह को एक धार्मिक  पहचान देना  इस  मामले पर जे एन यु के प्रोफ़. चमन लाल का एक लेख  बी बी सी  में पहले  ही छाप चुका है जिसमे उन्होंने इस बात पर चिंता  जताई  थी  , क्योकि भगत सिंह अपने केश  कटवा चुके थे  और नका दुनिया के किसी भी धर्म से लेना देना  नहीं था  वे पूर्ण रूप से मानवतावादी  थे और उनके विचारों  में मार्क्सवाद ही  था इसके अलावा कुछ नहीं . लेकिन आज भगवा  लोग भगत सिंह का इस्तेमाल कर रहे है जिनको भगत सिंह  देशद्रोही मानते थे    भगत सिंह के  बारे में  कुछ और रोचक जानकारी  निचे दी गई है  जरा इन्हें देखिये और फिर खुद फैंसला कीजिये

.भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने वाले व्यक्ति कौन थे । जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में असेंबली में बम फेंकने और सांडर्स की हत्या का मुकद्दमा चला तो....

. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के खिलाफ सांडर्स मर्डर केस में गवाही जय गोपाल और हंसराज वोहरा ने तथा असेंबली बम केस में उनके और बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ शोभा सिंह और शादी लाल ने दी !
. दोनों नाथूराम गोड्से की तरह आरएसएस से जुड़े थे और दोनों को वतन से की गई गद्दारी के लिए अंग्रेज़ों से न सिर्फ सर की उपाधि मिली बल्कि और भी बहुत इनाम मिला


. शोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत और करोड़ों के सरकारी निर्माण कार्यों के ठेके मिले।
आज कनौट प्लेस में सर शोभा सिंह स्कूल में कतार लगती है बच्चो को प्रवेश तक नहीं मिलता है।
.शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली। आज भी श्यामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है।

. सर शादीलाल और सर शोभा सिंह, भारतीय जनता कि नजरों मे सदा घृणा के पात्र थे और अब तक हैं।
. लेकिन शादी लाल को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा तक नहीं दिया।
. शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाए तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था।
.शोभा सिंह खुशनसीब रहा। उसे और उसके पिता सुजान सिंह जिसके नाम पर पंजाब में कोट सुजान सिंह गांव और दिल्ली में सुजान सिंह पार्क है। इसके अलावा दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में हजारों एकड़ जमीन मिली और खूब पैसा भी मिला।
और...
.भगतसिंह को फांसी की सजा सुनाने से मना करते हुए तत्कालीन जस्टिस आगाहैदर ने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था ।
.भगत सिंह के मुक़दमे में उनके वक़ील थे आसिफ़ अली जो नेहरूजी के सहयोगी थे।
.अंग्रेज़ों का वक़ील था सूर्यानारायण शर्मा जो आरएसएस सर संघचालक हेडगेवार का घनिष्ट मित्र था।

.संघी सर संघचालक हेडगेवार ने कहा - ''जेल जाना फांसी चढ़ना कोई देशभक्ति नहीं बल्कि छिछोरी देशभक्ति और प्रसिद्धि की लालसा है"
.फांसी के बाद संघी गुरु गोलवलकर ने कहा - '' शहीद भगत सिंह राजगुरु सुखदेव इन की कुर्बानियों से देश का कोई हित नहीं होता !''
.नेहरूजी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि कांग्रेस के आक्रमक स्वरूप धारण करने में भगतसिंह का प्रभाव था।
.गांधीजी ने फांसी की सजा को उम्रकैद में बदले जाने को लेकर वायरस को तीन पत्र लिखे।
.कांग्रेस ने भगतसिंह को श्रद्धांजलि देने के लिए अधिवेशन का आयोजन किया जिसमें भगतसिंहजी के पिता सरदार किशनसिंहजी चाचा अजीतसिंह ने तथा सुखदेवजी के भाई मथुरादासजी सिरकत की और भाषण देते हुए कहा कि गांधी जी के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई जारी रहेगी।
.वायसराय लार्ड इर्विन ने अपने रोजनामचे में लिखा है- दिल्ली में जो समझौता हुआ उससे अलग और अंत में मिस्टर गांधी ने भगतसिंह का उल्लेख किया था ।
.भगतसिंह के एक और बकील थे मेहता
जो फांसी से आधा घंटे पहले जेल में उनसे मिलने गये थे भगतसिंह की मंगाई लेनिन की किताब लेकर।
किताब देख कर भगतसिंह बहुत खुश हुए और तुरंत पढ़ना शुरू कर दिया जैसे कि उन्हें मालूम था कि उनके पास ज्यादा वक्त नहीं था। मेहता ने उनसे पूछा कि क्या वे देश को कोई संदेश देना चाहेंगे। अपनी निगाहें किताब से बिना हटाए, भगत सिंह ने कहा, ”मेरे दो नारे उन तक पहुंचाएं-साम्राज्यवाद खत्म हो’ (डाऊन विद इम्पीरिलिज्म) और इंकलाब जिंदाबाद’ (लॉग लिव रैवोल्यूशन)।
मेहता : आज तुम कैसे हो?”
भगत सिंह : हमेशा की तरह खुश हूं।
मेहता : क्या तुम्हें किसी चीज की इच्छा है?”
भगत सिंह : हां, मैं दुबारा से इस देश में पैदा होना चाहता हूं ताकि इसकी सेवा कर सकूं।
. भगत सिंह ने उसे कहा कि पंडित नेहरू और सुभाष बाबू ने जो रुचि उनके मुकदमे में दिखाई उसके लिए दोनों का धन्यवाद करें।