बाल
विवाह और बालिका पर हुए अत्याचार को महिमामंडित करने वाली इस कविता पर पाबंदी लगनी
चाहिए।
7-8
साल की बच्ची की 40-50 साल के बूढ़े राजा के साथ हुई शादी को वीरता और वैभव की
शादी बताया गया।
इस
अनमेल जोड़ी में चित्रा-अर्जुन, शिव-भवानी के कौन से गुण परख लिए थे
सुभद्रा कुमारी चौहान ने....
ये
देखिए.....क्या ये कविता वीर रस की लगती है या झांसी की कलंक गाथा...
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह
हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल
में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
चित्रा
ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले
हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब
लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
झांसी की कथित रियासत केवल नाम की रियासत थी।
बहुत सीमित अधिकार अंग्रेजों ने दिए थे। निकम्मे राजा गंगाधर राव को ऐशोआराम की
सुविधाएं और जनता से कर वसूलने का अधिकार ही मिला था।
1835 में 19 नवंबर को जन्मी लक्ष्मी बाई से
1842 में शादी की थी। जब डलहौजी ने ये रियासत भी हड़पने की कोशिश की तो ही जंग की
नौबत आई। इस जंग में लक्ष्मीबाई की हमशक्ल झलकारी बाई ने अंग्रेज सेना से जमकर
टक्कर ली और वीरगति को प्राप्त हुई। लक्ष्मी बाई छिपकर नेपाल भाग गई और लौटकर नहीं
आई।
गोद लिया पुत्र दामोदर अंग्रेजों की पेंशन पर
जिंदगी भर पलता रहा। 1908 में मरा।
सुभद्रा कुमारी चौहान की एक कविता की बदौलत
अंग्रेजों की पिट्ठू रही लक्ष्मी बाई का महिमामंडन वीरांगना और देशभक्त के रूप में
फालतू में हो गया।
1857 के स्वाधीनता संग्राम की वीरांगना
लक्ष्मीबाई नहीं, बल्कि झलकारी बाई थी, जिसका जन्म 22 नवम्बर
1830 को झांसी के भोजला गाँव में हुआ था। उनके पिता ने उन्हें एक लड़के की तरह
पाला था । उसका विवाह रानी लक्ष्मीबाई की सेना के एक सैनिक पूरन कोरी से हुआ था ।
पहली बार रानी लक्ष्मीबाई उन्हें देख कर अवाक
रह गयी क्योंकि झलकारी बिल्कुल रानी लक्ष्मीबाई की तरह दिखतीं थीं ।
अप्रैल 1858 के संग्राम मे लक्ष्मीबाई ने झांसी
के किले के भीतर से अपनी सेना का कथित नेतृत्व किया और अंग्रेज़ो द्वारा किये कई
हमलों को नाकाम कर दिया। मुखबिरी के कारण किले का एक संरक्षित द्वार ब्रिटिश सेना
के लिए खोल दिये जाने के बाद झलकारी बाई ने रानी को किला छोड़कर भागने की सलाह दी।
झलकारी बाई का पति पूरन किले की रक्षा करते हुए
शहीद हो गया था लेकिन मातम मनाने के स्थान पर झलकारी ने लक्ष्मीबाई की तरह कपड़े
पहने और झांसी की सेना के साथ किले के बाहर निकल कर ब्रिटिश जनरल ह्यूग रोज़ से
लड़ी और इसी युद्ध मे शहीद हो गईं । लक्ष्मीबाई चुपके से नेपाल भाग गई और वहां
1915 तक जीवित रही।
रानी लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र को पीठ पर
बांधकर अंग्रेजों से लड़ने के लिए निकली थी, ये बात तर्क से
परे दिखती है। दत्तक पुत्र दामोदर राव का जन्म नवंबर 1849 में हुआ था, और
मई 1857 में शुरू हुए 1857 के विद्रोह को दबाने में लगी रही लक्ष्मीबाई मार्च 1858
में इसमें शामिल हुई। तब तक दामोदर की उम्र तकरीबन साढ़े 8 साल की होगी। साढ़े 8
साल के बच्चे को 20-22 साल की बच्ची पीठ पर दुधमुंहे बच्चे की तरह कैसे लपेट सकी
होगी, वो भी युद्ध के मैदान में।
झांसी के राजा के नाम से प्रचारित गंगाधर राव
ने बुढापे में मनु तांबे नामक एक लडकी के साथ शादी रचाई और उसका नाम मनु से बदलकर
लक्ष्मीबाई रखा ! झांसी स्वतंत्र राज्य नहीं था, यानी गंगाधर को
जबरन राजा और लक्ष्मीबाई को जबरन रानी के रूप में प्रचारित किया गया। लक्ष्मीबाई
एक साधारण महिला थी जबकि गंगाधर राव निवालकर नपुंसक और तमाम बीमारियों से पीड़ित
था।
1857 के संग्राम मे लक्ष्मीबाई ने जख्मी
ब्रिटिश सैनिकों की मरहमपट्टी करने का का काम किया था ! लक्ष्मीबाई ने कभी भी
लड़ाई
लड़ी ही नहीं। लक्ष्मीबाई ने तो कैप्टन जॉरडन
को माफीनामा लिखकर दिया था ! झांसी का किला बचाने का काम
कोरी समाज की झलकारीबाई ने अपने पति पूरन के
साथ किया था !
लक्ष्मीबाई तो 1858 में प्रतापगढ के राजा की
मदद से झांसी से नेपाल भागकर गई थी ! शोधकर्ताओं के अनुसार उसकी मौत 1915 में 80
साल की उम्र में हुई। इसका सबूत इतिहासकार शाम पाटील ने दिया है। लक्ष्मीबाई का
पति ब्राह्मण
गंगाधर नपुंसक था। लक्ष्मीबाई इसलिए अपने एक
खास मर्दानखाना रखती थी।
लक्ष्मीबाई बाई का कोई भी असली चित्र या फोटो
उपलब्ध नहीं है। जो फोटो लक्ष्मीबाई के बताए जाते हैं, वो सब काल्पनिक
हैं, और दरअसल झलकारी बाई के हैं। झलकारी बाई हूबहू लक्ष्मीबाई की तरह
दिखती थीं और रानी की महिला सेना दुर्गा दलकी सेनापति थी।
झांसी की लक्ष्मीबाई के कैप्टन जॉर्डन को
माफीनामा लिखने का प्रमाण महाराष्ट्र के लक्ष्मण शास्त्री जोशी ने महाराष्ट्र
"मराठी भाषा न्यानकोश" में दिया है !
सुभद्रा कुमारी चौहान ने झूठी लयबद्ध कविता
गढ़कर लक्ष्मी बाई का काल्पनिक और वीरतापूर्ण चरित्र चित्रण करके देश और इतिहास को
भी गुमराह किया।
लक्ष्मी बाई के साथ जब शादी के नाम पर बलात्कार
हुआ तब उसकी उम्र तकरीबन दस साल की थी। सुभद्रा कुमारी चौहान के मुताबिक, और
आम धारणा के मुताबिक, तब तक वो बरछी भाला, तलवार चलाने और
घुड़सवारी करने में माहिर हो गई थी।
जब कथित तौर पर रानी अपने दत्तक पुत्र दामोदर
को पीठ पर दुधमुंहे बच्चे की तरह बांध कर घोड़े पर सवार होकर निकली, तब
दामोदर की उमर तकरीबन उतनी ही थी जितनी उमर रानी की कथित शादी के समय थी।
या तो रानी के उस उमर में रणकौशल में दक्ष होने
की बात झूठी थी, या दामोदर परम भोंदू थे।
दत्तक पुत्र दामोदर राव का जन्म 1849 में हुआ
था, और मई 1857 में शुरू हुए 1857 के विद्रोह को दबाने में लगी रही
लक्ष्मीबाई मार्च 1858 में इसमें शामिल हुई। तब तक दामोदर की उम्र तकरीबन 9 साल की
रही होगी, जो 21-22 साल की लक्ष्मी बाई की पीठ पर बंधा रहा !!
महेंद्र यादव जी की फेसबुक वाल से