जन उदय : हाल ही में रोहित
वेमुला की संस्थानिक हत्या ने पुरे देश को ही नहीं पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया
है , पूरी दुनिया में इसका विरोध चल रहा है , लेकिन सरकार रोहित वेमुल को न्याय देना
तो दूर बल्कि और भी जयादा दमनकारी रवेय्या
अपना रही है , आंदोलनकारी छात्रो पर जितना हो सके उतनी क्रूरता
से प्रहार कर रही है , कानून क्या
है सविंधान क्या है न्याय क्या है सरकार को इससे कोई मतलब नहीं
है उसका एक ही उदेश्य है दलित छात्रो को और दलित बुधिजीविओ को भयभीत कर देना , डरा
देना ताकि वो इस आन्दोलन में
किसी भी तरह से शामिल न हो पाए !
इतिहास गवाह है जब जब
जनता ने विद्रोह किया है शासन ने
इसी तरह से उनका दमन किया है और अंत में
जीत जनता की हुई है , लेकिन यहाँ दलित आन्दोलन में कुछ पेच है जिनकी वजह से दलित
छात्र या आन्दोलनकारी हमेशा मरते रहेंगे , पिटते रहेंगे
लेकिन कोई उनकी वजा नहीं सुनेगा
जिसके मुख्य कारण यह
है ,
दलित आन्दोलन या दलित पुरे
देश में एक नहीं है इनकी मानसिक शक्ति का
बिखराव बहुत है थोडा बहुत भी जो दलित चेतन
हो जाता है या तो वह ब्राह्मणों की तरह ही अपने समुदाय से भेदभाव करने लग जाता है या
उनसे पूरा अलग हो जाता है और ऐसी मानवता की बात करने लग जाता है जो प्रभुतत्व
वर्ग यानी ब्राह्मण इन्हें सिखाता है
, यानी वह खुद अपनी कौम की जड़े काटने लग जाता है
दूसरा ऐसे भी दलित है जो
अपना जीवन संघर्ष दलितों के नाम से शुरू
करते है और दलितों के नाम पर खाते कमाते
है लेकिन जैसे ही इन दलित नेताओं की शक्ति
काफी बढ़ने लग जाती है वैसे ही दमनकारी लोग इन्हें अपनी गोद में बिठा लेते है यानी इन्हें पैसे ,
सत्ता या कुर्सी का लालच दे कर अपने साथ
मिला लेते है इनमे से उदित राज ,मीरा
कुमार , कृष्णा तीर्थ , शैलजा , जगजीवन
राम आदि सभी लोगो ने अपने स्वार्थ के लिए दलितों की बली चडाई है .
इन लोगो की सबसे बड़ी बात यह
है की ये लोग अपनी कौम की भलाई तो नहीं कर पाते हाँ इनका सर्वनाश करने में लग जाते है , हाल ही में रोहित वेमुला को
लेकर उदित राज , पुनिया आदि के रवैया ने ये ही दरसाया है
इतनी बड़ी शक्ति दलित फिर भी
कमजोर संघटित क्यों नहीं
आज जितने भी दलित उपर आये
है पढ़ लिख गए है ये उन सबकी जिम्मेदारी बनती है की वो अपने समाज के लोगो को
संघटित करे और उन्हें एक प्लेटफोर्म पर
लाये लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है कारण अपने अपने स्वार्थो के लिए जी रहे है ये लोग , न जाने दलितों के नाम पर
कितनी पार्टी , कितने दल है जो दलितों को एकता और समानता के नाम पर बेवकूफ
बनाते है लेकिन फिर भी इन्हें एक मंच पर
नहीं ला पाते यह सबसे बढ़ा कारण है
इसमें एक बड़ा कारण यह भी है की ये खुद बाबा
साहेब या दलितों के नाम की राजनीती करते है ये खुद बाबा साहेब की आदर्शो पर नहीं
चलते खुद की जेब में पैसा आ गया , पढ़ लिख
गए अब ये ब्राह्मण , बनिए बन जाते है , समाज में ब्याह शादियो में समस्त सामाजिक
कुरितियो के साथ पेश आते है बल्कि ये इन कुरूतियो को आगे बढ़ाना अपना फर्ज समझते है
दुश्मन के षड्यंत्र : अन्य पार्टिया यह तो चाहती ही है जिसके पीछे
दलित वोट बैंक आ जाय या हो वो उनकी शरण में
आ जाए इसके लिए पैसा , ताकत सब लगा देते
है ,मीडिया का रुख हमेश से दलितों के विरुद्ध रहा है रोहित वेमुला की हत्या और यूनिवर्सिटी में
पुलिस द्वारा छात्रो की पिटाई और दमन कही नहीं छिपे है लेकिन इनको न तो
मीडिया दिखा रहा है और न ही बता रहा है , लेकिन यह सच में हो सकता है ??
अगर एक बार देश के सारे दलित
बुद्धिजीवी और नेता , पार्टी सांसद , अफसर दिल्ली की सडको पर सामने आ जाए तो
क्या रोहित को न्याय नहीं मिल पायेगा ?? मिलेगा जरूर मिलेगा
लेकिन ऐसा नहीं हो
पायेगा कारण कौम के दलाल बहुत है , गद्दार बहुत है , पीछे
से टांग खीचने वाले लोग बहुत है
याद रहे जब किसी ब्राह्मण को कुछ हो जाता है तब ये लोग
मानवता की बाते करते है इंसानियत की बाते करते है और पुरे देश को अपने साथ गुमराह
करके अपने साथ ले आते है लेकिन दलितों का
तो दुःख भी सच्चा , उनकी पीड़ा सच्ची लेकिन फिर भी ये लोग आपके साथ नहीं है , ज़रा बगल में बैठे दोस्त से पूछना की क्या वो दलितों के लिए , रोहित वेमुला के
लिए लडेगा , वो नहीं आएय्गा , मूह पर कह कर चला जाएगा , लेकिन इसके बाद आपका विरोध करेगा वो भी छुप छुप के
लेकिन कसूर इनका नहीं दलितों का है क्योकि
ये ही दुकानदार हो गए है , तिलक लगा रहे है और कौम को बेच रहे है