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Monday 14 March 2016

यमुना किनारे मिल रहे है कंडोम : श्री श्री रवि शंकर के विश्व संस्कृति महोत्सव में दिखी अश्लीलता :

दिल्ली कहने को तो दिल्ली में श्री श्री रवि शंकर ने एक सांस्कृतिक सम्मेलन करवाया , लेकिन इस महोत्सव के बहाने रवि शंकर नाम का सांस्कृतिक आतंकवादी ब्राह्मणवाद को बढ़ावा दे रहा है , क्योकि आज तक किसी भी भारतीय या तथातथित हिन्दू से पूछो की हिन्दू संस्कृति क्या है तो उसे ये मालूम ही नहीं की वह है क्या बीएस वह यही बता देगा होली दिवाली , दसहरा

इसके अलावा उसको कुछ नहीं पता हाँ संस्कृति के नाम पर वो ये कभी बताते की देश में जातिवाद है जाती के नाम पर दंगे होते है जाती के नाम पर उत्पीडन होते है



कुल मिला कर हिन्दू संस्कृति ब्राह्मणों की संस्क्रती है और उसे पुरे विश्व में फैलाया जा रहा है वो भी सरकारी पैसे से

ये फोटो देख कर लोग समझ भी सकते है की संस्क्रती के नाम पर इस महोत्सव में क्या क्या हुआ है ,


भाजपा के नेता जा कर यमुना किनारे जा कर गिने कोंडोम शायद पुरे देश को पता चल जाएगा की क्या हुआ है

अनफेयर एंड लवली : रंग भेद के खिलाफ अमरीका में शुरू हुआ आन्दोलन



 टेक्सास,  14 मार्च  जन उदय  भारत ही नहीं, विश्व के कई देशों में सांवली लड़की लोगों को नहीं भाती। सांवला होना भारत में अभिशाप की तरह है। सांवली लड़कियों को तरह तरह के ताने सुनने पड़ते हैं। इस वजह से वह कई बार अवसाद में आ जाती हैं। गोरी चमड़ी की मानसिकता का पता कॉस्मैटिक बाजार से लगा सकते हैं। टीवी में गोरा बनाने के एड चलते हैं व डॉक्टर्स सर्जरी की की भी बात करते हैं। लोगों की गोरी और सांवले रंग के प्रति लोगों की सोच बदलने के लिए 


अब टेक्सास यूनिवर्सिटी की तीन स्टूडेंट्स ने बेड़ा उठाया है। गहरा सांवला रंग भी खूबसूरत होता है, इसी सोच को आगे बढ़ाने के लिए तीन दोस्तों ने ऑनलाइन कैम्पेन शुरू किया है। नाम है अनफेयर एंड लवली। इसमें रंग की वजह से खुद को कम आंकने वाली या बेइज्जती की शिकार लड़कियों को सेल्फी भेजने को कहा गया है। यह कैम्पेन तेजी से आगे बढ़ रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के 21 साल के छात्र पॉक्स जोन्स ने बताया कि उन्होंने अपनी दो दोस्तों की कहानी सुनकर इस कैम्पेन को शुरू किया। उन्होंने बताया कि उनकी दोस्त मिरुशा और यानुशा श्रीलंका की हैं। उन्होंने बताया उनकी फोटो पर कैसे उनके रंग को लेकर गंदे कमेंट किये जाते थे। इसके बाद उन्होंने उनकी फोटो खींची और उसके नीचे दोनों बहनों ने लिखा- रंगभेद सामाजिक बुराई है। उनकी फोटो सोशल मीडिया पर डाली और देखते ही देखते सांवले रंग की महिलाएं उनसे जुड़ने लगीं। इसके बाद हम तीनों ने मिलकर सोशल मीडिया पर हैशटैग अनफेयर एंड लवली कैम्पेन शुरू किया।

विनायक दामोदर सावरकर सावरकर मानते थे कि गाय की पूजा करना मानव जाति का स्तर गिराना है


हिंदुत्वके विचार की बुनियाद रखने वाले विनायक दामोदर सावरकर का मानना था कि मुसलमानों ने हिंदुओं को नहीं हराया बल्कि वे गाय की पूजा करने से हारे.

सावरकर मानते थे कि गाय की पूजा करना मानव जाति का स्तर गिराना है
विनायक दामोदर सावरकर द्वारा मराठी भाषा में लिखी गई किताब विज्ञाननिष्ठ निबंधभाग 1 और भाग 2, स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक प्रकाशन, मुंबई ने प्रकाशित की थी. इस किताब के अध्याय 1.5 का शीर्षक है गोपालन हवे, गोपूजन नव्हे. हिंदी में इसका अनुवाद होगा - गाय की देखभाल करिये, लेकिन पूजा नहीं. सत्याग्रह की सहयोगी वेबसाइट स्क्रोलडॉटइन पर प्रकाशित इस अध्याय के अग्रेजी अनुवाद का हिंदी रूपांतरण.

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में यह स्वाभाविक ही है कि लोगों को गाय अच्छी लगे. गाय लंबे समय से हमारे साथ रही है. वह हमें कई चीजें उपलब्ध करवाती है. उसका दूध, अनाज के साथ मिलकर हमारे शरीर का विकास करता है. जो गायें रखते हैं उनके लिए ये परिवार के किसी सदस्य जैसी ही बन गई हैं. हिंदूओं का करुणापूर्ण मन और हृदय गायों के प्रति कृतज्ञता महसूस करता है.
हम गाय के प्रति समर्पित हैं क्योंकि वह इतनी उपयोगी है. यह हमारा कृतज्ञता बोध है जो उसे दैवीय बना देता है. जो लोग गाय की पूजा करते हैं यदि उनसे आप पूछें कि गाय पूजनीय क्यों है तो वे सिर्फ यह बताते हैं कि वह कितनी उपयोगी है.

ईश्वर सर्वोच्च है, फिर मनुष्य का स्थान है और उसके बाद पशु जगत है. गाय को दैवीय मानना और इस तरह से मनुष्य के ऊपर समझना, मनुष्य का अपमान है.

यदि गाय की पूजा इसलिए की जाती है कि वह इतनी उपयोगी है तो क्या इसका मतलब यह नहीं है कि उसकी देखभाल इतनी अच्छी तरह से हो कि उसकी उपयोगिता ज्यादा से ज्यादा बढ़ सके? यदि गाय का सबसे अच्छा उपयोग करना है तो सबसे पहले आपको उसकी पूजा बंद करनी पड़ेगी. जब आप गाय की पूजा करते हैं तो आप मानव जाति का स्तर नीचे गिराते हैं.

ईश्वर सर्वोच्च है, फिर मनुष्य का स्थान है और उसके बाद पशु जगत है. गाय तो एक ऐसा पशु है जिसके पास मूर्ख से मूर्ख मनुष्य के बराबर भी बुद्धि नहीं होती. गाय को दैवीय मानना और इस तरह से मनुष्य के ऊपर समझना, मनुष्य का अपमान है.

गाय एक तरफ से खाती है और दूसरी तरफ से गोबर और मूत्र विसर्जित करती रहती है. जब वह थक जाती है तो अपनी ही गंदगी में बैठ जाती है. फिर वह अपनी पूंछ (जिसे हम सुंदर बताते हैं) से यह गंदगी अपने पूरे शरीर पर फैला लेती है. एक ऐसा प्राणी जो स्वच्छता को नहीं समझता उसे दैवीय कैसे माना जा सकता है?

ऐसा क्यों है कि गाय का मूत्र और गोबर तो पवित्र है जबकि अंबेडकर जैसे व्यक्तित्व की छाया तक अपवित्र? यह एक उदाहरण दिखाता है किस तरह हमारी समझ खत्म हो गई है.

ऐसा क्यों कि गाय का मूत्र और गोबर तो पवित्र है जबकि अंबेडकर जैसे व्यक्तित्व की छाया तक अपवित्र? यह एक उदाहरण दिखाता है किस तरह हमारी समझ खत्म हो गई है.
यदि हम ये कहते हैं कि गाय दैवीय है और उसकी पूजा हमारा कर्तव्य है तो इसका मतलब है कि मनुष्य गाय के लिए बना है, गाय मनुष्य के लिए नहीं. यहां उपयोगितावाद की दृष्टि जरूरी है : गाय की अच्छी देखभाल करें क्योंकि वह उपयोगी है. इसका मतलब है कि युद्ध के समय, जब यह अपंग हो सकती है, इसे न मारने की कोई वजह नहीं है.

यदि हमारे हिंदू राष्ट्र के किसी अभेद्य नगर पर हमला होता है और रसद खत्म हो रही है तो क्या हम नई रसद आने तक इंतजार करेंगे? तब राष्ट्र के प्रति समर्पण, सेना की कमान संभाल रहे नेता के लिए यह कर्तव्य निर्धारित करता है कि वह गोवध का आदेश दे और गोमांस को खाने की जगह इस्तेमाल करे. यदि हम गाय की ऐसे ही पूजा करते रहे तो हमारे सैनिकों के सामने फिर यही विकल्प होगा कि वे भूख से मर जाएं और नगर पर दूसरों का कब्जा हो जाए.

यह कोई बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बात नहीं है कि गाय पूज्य है, जैसी मूर्खतापूर्ण और सरल धारणा ने देश को हानि पहुंचाई है. इतिहास बताता है कि हिंदू साम्राज्यों को इस मान्यता की वजह से हार का मुंह देखना पड़ा है. राजाओं को अक्सर युद्ध हारने पड़े क्योंकि वे गाय की हत्या नहीं कर सकते थे. मुसलमानों ने गाय को ढाल की तरह इस्तेमाल किया क्योंकि उन्हें भरोसा था कि हिंदू इस पशु को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे.

गाय पूज्य है, जैसी मूर्खतापूर्ण और सरल धारणा ने देश को हानि पहुंचाई है. इतिहास बताता है कि हिंदू साम्राज्यों को इस मान्यता की वजह से हार का मुंह देखना पड़ा है.
जो बात गायों के लिए सही है, वही मंदिरों के लिए भी कही जा सकती है. जब एक शक्तिशाली हिंदू सेना ने मुल्तान पर आक्रमण किया तो वहां के मुसलमान शासक ने पवित्र सूर्य मंदिर तोड़ने की धमकी दे दी. इसके तुरंत बाद हिंदू सेना वहां से लौट आई. ठीक यही तब हुआ जब मल्हारराव होलकर काशी को स्वतंत्र करवाने वहां पहुंचे. लेकिन जब मुसलमानों ने वहां मंदिर तोड़ने, ब्राह्मणों की हत्याएं करने और जो भी हिंदुओं के लिए पवित्र है उसे अशुद्ध करने की धमकी दी तो उन्होंने अपने कदम वापस खींच लिए.

कुछ गायों, ब्राह्मणों और मंदिरों को बचाने जैसी मूर्खता के कारण देश का बलिदान हो गया. इसमें कुछ भी गलत नहीं था यदि  देश के लिए उनका बलिदान किया जाता. हर एक मुसलमान आक्रमणकारी को युद्ध जीतने दिया गया क्योंकि हिंदू गाय और मंदिर बचाना चाहते थे. इस तरह पूरा देश हाथ से चला गया.

विकल्प दो हैं जिनमें से एक को चुनना है. उपयोगितावादी दृष्टि और धर्मांधता की जकड़न. धार्मिक ग्रंथ और पुजारी सिर्फ यही कहते हैं कि यह पाप है और यह पवित्र है: वे यह नहीं बताते कि क्यों. विज्ञान धर्मांधता से अलग है. वह चीजों की व्याख्या करता है और हमें सही या गलत जानने के लिए वास्तविकता का परीक्षण करने की अनुमति देता है. विज्ञान हमें बताता है कि गाय उपयोगी है इसलिए हमें उसे नहीं मारना चाहिए लेकिन यदि वह मनुष्य की भलाई के लिए अहितकर सिद्ध हो तो वह मारी भी जा सकती है.
सोर्स : satyagrah. scroll.in


“पाकिस्तान जिंदाबाद “ का नारा अगर किसी और ने लगाया होता तो .... क्या अब संघ के गुर्गे मीडिया देशद्रोह पर चर्चा करेंगे ??


 श्री श्री रवि शंकर ने विश्व संस्कृति महोतसव में राजनाथ की मोजुदगी में लगाया पाकिस्तान जिंदाबाद का नारा , सारे अखबार , मीडिया  जो की बहुत बड़े देशभक्त है , ज्ञानी  है है पुरोहित  है , महान है  सब या तो चुप है  या  इसकी चर्चा बोधिक स्तर पर कर रहे है , भारत पाक रिश्ते की कर रहे है , इंसानियत की कर रहे है , देश में एक अच्छा  राजनैतिक  माहोल बन रहा है  ये बात भोली भाली जनता को समझाने की कोशिस कर रहे है ,  इन मीडिया के संघी गुर्गो को लगता है की जनता तो बेवकूफ है  क्योकि जो संघी जैसे  लोगो के हाथो में सत्ता दे सकती है वह जनता तो निरी मुर्ख ही होगी

खैर  थोडा बौधिक  हो कर सोचते है और यह सोचते है की पाकिस्तान जिंदाबाद क्यों न हो ??  रहे वो भी रहे , जिंदाबाद रहे , खुशहाल रहे , बंगलादेश भी रही रहे है तभी सही मायने में विश्व संस्कृति फले फूलेगी , यही मायने में यही मानवता है इंसानियत है ,
लेकिन सवाल यह है की  जब यही नारे कश्मीर में लगते है तो वहा की जनता का स्वागत गोलिओ से होता है  अगर यु पी में लग जाए , जे एन यु में लग जाए तो सारे के सारे संघी बुद्धिजीवी कुत्ते के तरह एक  कतार में लग कर  उसके उपर भोंकते रहे है , उसो देशद्रोही बताने लगते है  उनके उपर देशद्रोह  के आरोप लगते है , जे एन यु के छात्र कन्हिया एंड कम्पनी के उपर इसी वजह से देशद्रोह का आरोप लगा है  , तो इस बात से क्या मतलब निकाले जाए ???  जनता  खुद ही सोचे

दरअसल संघ एक दोमुहा   जहरीला नाग है  ये जो कहते है करते है  बस वाही सची है और सही है लेकिन दुसरा जब करने लग जाए  तो वह गलत है देशद्रोही है  , विश्व संस्कृति महोत्सव दरअसल एक बहाना  है ब्राह्मणवाद को विश्व स्तर पर बढ़ावा  देने के लिए कमाल की बात है है की ये लोग इस ब्राह्मणवाद को बढ़ावा भारतीय संस्कृति के बधावे के नाम पर देते है , रवि शंकर   संघ का एक गुर्गा है और संघियो के लिए काम करता है विश्व संस्कृति के नाम पर इसने जय श्री राम का नारा लगवाया  ये भी एक बहुत बढ़ा अपराध है