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Thursday 14 December 2017

दलित /मूलनिवासी आन्दोलन की समस्याए और समाधान : सुरेंदर सागर


जन उदय : भारत के मूलनिवासी , ब्राह्मणों ने जिन्हें शुद्र का दर्जा दे कर अपने  कपोल  कल्पित  ग्रन्थ और भगवानो  की रचना के माध्यम से शुद्र  बनाया और इन्हें जीवन जीने के सभी अधिकारों से वंचित रखा , इनके अंदर समाज को बदलने की और अपने अधिकारों की जागरूकता  मध्यकाल से आनी  शुरू हो गई  थी . लेकिन ये  आन्दोलन  और सामाजिक चेतना की धाराए  महात्मा  ज्योतिबा फुले , माता सावित्री बाई फुले  जिन्होंने भारत में महिलाओं को शिक्षा  देना प्रारम्भ  किया  और उसके बाद अंग्रेजो  के शाशन काल  और उनके दुवारा किये गए हुए कानूनी , सुधार  और समाजिक सुधारों के जरिये जो चेतना  शुद्र / दलित / एस सी एस टी के बीच  आई  उसी परम्परा  के रहते बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर के जरिये  मूनिवासियो ने अपना हक अंग्रेजो से प्राप्त कर लिया , लेकिन धूर्त  गाँधी ने  चाल चली और  अपने पाखंड  के जरिये  बाबा साहेब से पूना पैक्ट करवा लिया लेकिन बाबा साहेब  चूँकि  ब्राह्मणों के चरित्र को बाखूबी समझते  थे इसलिए उनकी  दूरदर्शिता  ने  शुद्रो  को  बचा  लिया  और बाबा साहेब ने इस फैसले में एस सी  एस टी के लिए आरक्षण की मांग की  जिसे मान लिया गया  , सो आरक्षण पूना पैक्ट का  परिणाम  बन  गया .

लेकिन ब्राह्मणों  की धूर्तता से जितना  इतना आसान नहीं था  बाबा साहेब या बात जानते थे  और उनके दलित / बहुजन  लोग इतने  पढ़े  लिखे  समझदार , सामाजिक और आर्थिक रूप से भी सक्षम  नहीं थे इस करके बाबा साहेब के लिए यह लड़ाई  और भी ज्यादा  मुश्किले  थी  इसलिए बाबा साहेब हमेशा   बहुजन युवाओं से कहते थे  कि “”अगर आप मेरा कारवा   आगे न ले जा सको  तो इसे पीछे  मत जाने देना”” 
बाबा साहेब  के जाने के बाद  इतना वक्त गुजरा  , दलितों  पर अत्याचार  कम  होने  की जगह बढ़ते  गए   ब्राह्मणों  का पुरोहितवाद  , आतंकवाद  किसी  न किसी शक्ल में सामने आता ही रहा  है   आरक्षित वर्ग पर  ब्राह्मण बैठ  गया , दलितों के हिस्सों को खा गया उनकी जमीने , अनाज , विकास का फण्ड  खा गया , उनको शिक्षा  के अधिकारों  को खा गया   और यही कारण रहा है की आज २०१७  में भी  लगभग  ७५ % सीट पर केवल ब्राह्मण विराजमान है और उन तमाम सीट पर विराजमान  है जो  सत्ता  की चाबी  होते है  , न्यायपालिका , आदि सब में घुसे बैठे है .

हालांकि  दलित उत्थान  और दलित राजनीति के नाम पर सबसे बड़ी पहल देश में मान्वर कांसीराम जी ने की बसपा  के रूप में   बसपा ने  इतना जी तोड़  काम किया की देश में राजनीती  को एक अलग मोड़  दे दिया  और आलम यह हो गया की किसी  वक्त   डंडे के जोर  पर वोट  ले लिए जाते  थे  अब उन्ही दलित वोटो  को  एक समीकरण  के रूप में देखा जाने लगा  और वो भी उनकी अपनी मर्जी से , वरना  खाने पिने , रहने की मर्जी  क्या होती है  ये दलित जानता ही नहीं था , लेकिन इसके बावजूद दलित राजनीति  में जो परिवर्तन आने चाहिए थे , दलित  राजनीती से जो परिवर्तन आने चाहिए  थे ,वो नहीं आये  आज २०१७ अलविदा  होने जा रहा है  लेकिन दलित लडकियो  के बलात्कार , हत्या , लूट , , सहारनपुर ,  रोहित वेमुला , डेल्टा मेघवाल , उना काण्ड हमारे माथे  पर अपमान के टीके  बन कर लगे है , और हम कुछ नहीं कर सके  और न ही कुछ कर सकते
ऐसा क्यों इसके कारणों  के कारण  और निवारण  नहीं हो जाता  तब तक इस देश में दलित / मूलनिवासी  उत्पीडन  ऐसे ही चलता  रहेगा

इसके मुख्य कारण में है


१.       दलित युवा आज के दौर में बहुत आक्रोशित है  और अपने अपने स्थान पर ऐसा लगता है कि वह एक ऐसी  मिसाइल  है  जो समाजिक परिवर्तन के चलाई  जा रही  है लेकिन इसकी ख़ास बात यह है कि इस मिसाइल  के पास कोई दिशा निर्देश नहीं है  यानी  ये युवा एक अनगाइडेड मिसाइल  है और  सही दिशा न मिलने के कारण ये मिसाइल अंत में  फूस हो कर गिर जाती है , यानी जब इनके द्वारा किये गए कार्य से कोई परिणाम नहीं निकलता  तो लोग हताश व् निराश हो कर  बैठ जाते है  जबकि  दलित आन्दोलन में शामिल  संस्था  और राजनैतिक पार्टियो को चाहिए की उनको एक सूत्र में बांधे
२.        दूसरा कारण  है दलित प्रतिनिधिओ का बिकायु  होना  या अवसरवादी  निकल जाना  , यानी ऐसा नहीं  है की दलित आन्दोलन में कोई संस्था बिलकुल ही काम नहीं कर रही है   काम तो हो रहे है लेकिन इनके प्रतिनिधि   इन युवाओं की उतेजन का लाभ अपने निजी फायदे के लिए उठा लेते  है  और  संघी  जैसी पार्टियो के हाथो  बिक जाते है , जैसे उदित राम हुआ , रामदास अठावले , , रामविलास पासवान , आदि आदि  ये लोग दलितों  की रहनुमाई के नाम पर दलितों  की दलाली करने लग जाते है , हलांकि ठीक ऐसा ही फायदा  आजादी से पहले से लेकर वामपंथी  पार्टियो ने उठाया और समाजिक बराबरी के नाम पर इन युवाओं को  गुमराह किया
३.       दलितों  का सूचना तंत्र : एक राजनैतिक  आन्दोलन के लिए एक सूचना का फ्लो  बड़ा जरूरी  होता है  यानी किसी  विषय पर क्या स्टैंड  होगा यह बहुत जरूरी है , लेकिन दलितों में ऐसा कोई तंत्र नहीं  जो जिसके मन में आता है वह बोल देता है कर देता है .

४.       खुद दलित नेताओं के द्वारा दलितों का शोषण राजनीतिक  रूप से होता है  यानी खुद दलित नेता दल के अंदर ऐसे दलित नेता को आगे नहीं बढ़ने देते  जो काफी तेज  हो  , क्योकि ऐसे युवा को आगे बढ़ने  दिया गया तो ऐसे बहुत से दलित बुद्धिजीवी  है जो साइड लाइन हो जाएंगे , ऐसा बसपा  में बहुत है और अन्य पार्टी में हद से जयादा है
५.       आर्थिक –समाजिक रूप से कमजोर :  दलित आन्दोलन में एक समस्या यह बहुत है की  दलित आर्थिक रूप  से और समाजिक रूप से बहुत कमजोर है यानी अगर किसी समस्या पर आन्दोलन करना  हो तो शायद ही हजार दो हजार  दलित सामने आ पाए उसका कारण  अगर आनोद्लं करेंगे तो खायंगे क्या ?? दुसरा अन्य जाति के लोगो ने देखा तो जब वो लोग इकट्ठे हो कर हमला करेंगे  ऐसी हालत में दलित इकट्ठा  हो कर मुकाबला करने में असमर्थ होंगे
६.       हिन्दू  बनाम शुद्र : अपनी सत्ता  बनाए रखने के लिए ब्राह्मण वर्ग लगातार कार्यशील  है ये लोग फिल्मो , साहित्य , सोशल नेट वोर्किंग , आदि के जरिये  समाज में भ्रान्तिया फैलाते रहते है  यानी दलितों को हिन्दू बनाए रखने के लिए  ( हिन्दू यानी शुद्र , शुद्र यानी ब्राह्मणों  के गुलाम ) हिन्दू – मुस्लिम का  दंगा लगाए रखते है

७.       आर्थिक विषमता और अनिश्चिता  भगवान् को जन्म देती है : भारत में  लोग जल्द विशवास करने वाले , कार्टून जैसी चीजो से डरने वाले , वीभत्स  इमेज से डरने वाले होते है लेकिन अगर आर्थिक रूप से कोई समाज  विषम हो और जीवन में खाने पिने , रहने , स्वास्थ और जीवन जैसी किसी  भी चीज पर कोई निश्चितता न हो  तो वहा एक भगवान् का जन्म हो जाता  है , धर्म को मानने का मतलब है जैसा है उसमे गुजरा करो तकलीफों से जूझो और उस परम , असीम कृपा वाले भगवान् को मानो , अब ये भगवान् के मालिक  और  रिश्तेदार कौन है ?? यह समझने की बात है
८.       प्रबुद्ध वर्ग की अनदेखी : दलित वर्ग में एक ऐसा बहुत बड़ा वर्ग ही जो आरक्षण का लाभ  उठा एक शीर्ष स्तर पर पहुच गया गया है लेकिन  अपनी जाति  को ही अपमानित समझता है  और और अपने समाझ के लोगो से दूर हो जाता है वह न तो इस समाज के कुछ काम आता है बाकायदा   ब्राह्मणवाद को यानी अपने दुश्मनों  के खेमो  को मजबूत करता  है

९.       आन्दोलन को  क्रिएटिव  और रोचक न बनाना :  दलित लोग प्रोटेस्ट के सिर्फ पुराने  तरीको पर टिका है जबकि   देश दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए हमेशा  अपने आन्दोलन को क्रिएटिव  बनाना  होता है , वही सोंग , वही नाटक , वही लोग लेकिन इर भी अलग लगे ,जो लोग तेलंगाना  आन्दोलन से जुड़े है या उन्होंने दिल्ली में उनके धरने पदर्शन देखे है उनको यह बात अच्छी  तरह याद होगा की ऐसा कोई प्रोटेस्ट  नहीं रहा होगा जिसको मीडिया ने कवर न किया हो , कवर करने की वजह में क्रिएटिविटी  एक बहुत बड़ा कारण रहा था

१०.   कला संस्कृति के माध्यम से चेतना बड़े : कला संस्कृति  एक बहुत बड़ा हथियार है इसलिए  इन दोनों माध्यमो  को  काफी मजबूत करना होगा और मूलनिवासी वर्ग को अपनी ब्राह्मण से पूर्व अपनी संस्कृति  को  आगे बढाए


अगर दलित समाज  सिर्फ   संघठित हो जाए  और अपने सुचना तंत्र को सही बना ले  तो वो दिन दूर नहीं की जब दलित पहले की तरह इस देश के राजा होंगे और ब्राह्मण  इस देश को छोड़ भागेंगे