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Monday 18 April 2016

जानिये चोंका देने वाली वो वैज्ञानिक बाते जो साबित करती है रामायण और महाभारत काल्पनिक और झूठे ग्रन्थ है

जन उदय : विज्ञान और विज्ञानिक पद्धति वह प्रक्रिया है जिससे यह साबित हो जाता है की  मानव विकास में , तकनीकी  में ब्रह्माण्ड में होने वाली क्रियाये स्वाभाविक नहीं बल्कि एक दुसरे के कार्य – कारण  और एक वयास्थित प्रक्रिया की वजह से हो रही है , धुल आंधी , हवा का  चलना एक  वैज्ञानिक प्रक्रिया है न की कोई इन्हें पंखा  ले कर चला  रहा है बारिस एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है न कोई कोई उपर से पानी बरसा  रहा है . और यह वैज्ञानिक इसलिए है क्योकि इस जांच  हो सकती है और फिर इस जांच की भी जांच हो सकती है  और हर जांच में रिजल्ट सेम ही आयगा , यानी  वैज्ञानिक प्रक्रियामे कुछ डाटा लिया जाएगा , उनको व्यवस्थित किया जाएगा  उसी जांच होगी , उसको परखा जाएगा , रिजल्ट आने पर फिर से जांच होगी , और भारत में ही नहीं दुनिया के हर हिस्से में उसी प्रक्रिया की जांच होगी और सेम रिजल्ट आने पर वह विज्ञानिक प्रक्रिया होगी
अब सवाल आता है भारत में एक वर्ग द्वारा फैलाई जा रही भ्रान्तियो के बारे में यानी रामायण और महाभारत  कभी इस देश में हुए या नहीं  या ये सिर्फ कोरी  कल्पना है ,  

इतिहास ने भी विज्ञान के नियमो को अपनाया है और इतिहास का लेखन वास्तुनिष्ट सामग्री पर लेखन के लिए ही जो डाला गया है , और जब हम  वास्तुनिष्ट सबूतों या सामग्री की बात करते है तो उस पर रामायण और  महाभारत खरी नहीं उतरती ,  आइये देखे कैसे
 कहानी रामयाण और महाभारत एक एपिक की तरह लिखे गए ज्सिका मकसद सिर्फ और सिर्फ एक  राजनितिक षड्यंत्र तय्यार करना था जिसका पहला उधाह्र्ण है

1.कोई भी वास्तु /शिल्प  सबूत नहीं : हर राजा , महाराजा , अपने लिए महल बनवाता है , भवन बनवाता है , बाग़ बगीचे बनवाता है और इन इमारतो को वह कुछ ख़ास तरीके से बनवाता है यानी हम अगर सम्राट अशोक का इतिहास देखे तो हमें सभी प्रकार के सबूत मिलते है वास्तु भी शिल्प भी लेकिन रामायण और महाभारत के इन अभिनेताओं का कुछ भी नहीं मिलता , कुछ संघटनो का कहना है की मंदिर मिले है भगवान् के तो कोई इनसे पूछे क्या भगवान् इन्हों मंदिरों से शासन करते थे ??

2 . हर शासक , राजा  , महाराजा  अपने शासन काल में अपने सिक्के यानी व्यापार के लिए सिक्के ,मुद्रा चलवाता है , जो निश्चित तोर  पर उसकी सीमा और विदेश सीमा यानी उसके शासन के बाहर भी खुदाई में मिलते है लेकिन रामायण , महाभारत काल का ऐसा कुछ भी नहीं मिलता

३.  विदेशो से सम्बन्ध एक राजा के लिए बड़े जरूरी होते है , युद्ध भी होते है  संधिया भी होती है  लेकिन इन दोनों काल के यानी रामायण और महाभारत काल का ऐसा कुछ भी सबूत नहीं मिलता

४. विदेशो से व्यापार , यात्रिओ के लिए धर्मशाला , सुरक्षा वाव्य्स्था बाग़ बगीचे , सराय ये सब भी रहा बनवाता है लेकिन इन दोनों काल का कुछ भी नहीं मिलता

५. संस्कृति – कला ,किसी भी इतिहास में या शासन में अपनी कला और संस्कृति जन्म लेती है , लेखक ,कवी आदि जन्म लेते है लेकिन न तो किताबो के स्तर पर  कुछ भी नहीं मिलता , शिल्प , पेंटिंग , नक्काशी , वाल राइटिंग, वाल कार्विंग  , भित्ति चित्र आदि इस काल का कुछ भी नहीं मिलता
६. कालखंड . सबसे बड़ी बात होती है कि कोई भी घटना किसी कालखंड में  ही होती है यानी उसका अपना एक  समय होता है  लेकिन इन ग्रंथो का कोई भी कालखंड  नहीं है कहने को तो हर  धार्मिक संघठन अपनी अपनी दलील देता रहता है , कोई कुछ काल बताता है तो कोई कुछ
इसके अलावा  जो ग्रन्थ या किताबे मिली है उनकी भी कार्बन डेटिंग से कोई सबूत नहीं मिलता की ये ग्रन्थ बहुत पुराने है बल्कि इसमें भी घपला   है

सो  विज्ञान धारणा या कल्पना से शुरू हो सकता है लेकिन हमने उड़ने की कल्पना की लेकिन  उड़े कैसे ? इसलिए विज्ञानिक  कोई भी तत्थ्य आज तक नहीं है और न ही आयगा