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Tuesday 5 April 2016

शेर अली आफरीदी’-गवर्नर जनरल Lord Mayo को मौत घाट उतार कर देश के लिये फांसी पर झूलने वाले अज़ीम मुजाहिद-ए-आज़ादी को आज़ाद भारत ने भुला दिया

शेर अली आफरीदी’-गवर्नर जनरल Lord Mayo को मौत घाट उतार कर देश के लिये फांसी पर झूलने वाले अज़ीम मुजाहिद-ए-आज़ादी को आज़ाद भारत ने भुला दिया
अज़ीम मुजाहिद-ए-आज़ादी शेर अली आफरीदी जिन्होंने उस समय भारत के वाइसराय लार्ड मायो को कत्ल किया था याद रहे की उस समय वाइसराय की हैसियत एक राष्ट्रपति जैसी होती थी वो पुरे मुल्क का एक तरह हुक्मरान होता था जो सिर्फ ब्रिटेन की महरानी के मातहत काम करता था।

एक छोटा सा गांव जमरूद (अफगानिस्तान से सटे) का रहने वाला बहादुर इंसान जिसका नाम शेर अली ख़ान था 30 साल के उम्र मे ही काला पानी का सज़ा हुई।


जुर्म सिर्फ़ यह था कि देश के आज़ादी के लिए अंग्रेज़ो के खिलाफ बागवात की और भारत के इतिहास के सुनहरे पन्नो मे वह पहला व्यक्ति था जिसने किसी गवर्नर जनरल को मौत तक पहुचाया अर्थात उस वक़्त के Lord Mayo को इतना ज़ख्मी किया की कोलकात्ता आते आते उस की मौत हो गयी।

2 april 1767 को Colonel Pollock, Commissioner of Peshawar ने काला पानी का फ़ैसला सुनाया था।
देश को अंग्रेज़ो से छुटकारा दिलाने और यहा से खदेड़ने के लिए एक नायाब तरीका अपनाया। मकसद सिर्फ़ यह था कि अंग्रेज़ो भारत छोड़ो ।कराची और मुंबई होते हुए उनको अंडमान के जेल(1869 ) मे पहुचा दिया गया था।
वहा पर नाई बन कर जिंदगी गुजारने लगे और उस पल का इन्तेज़ार करने लगे कि कब यहा पर लॉर्ड मायो का आना है ताकि में उसका क़त्ल कर सकु और भारत को अंग्रेज़ो से छुटकारा मिल सके।
उन्हे अच्छी तरह मालूम था अगर मे नाई का काम करूँगा तो अंग्रेज़ो के करीब जाने का मौका मिल सकेगा और मेरे उपर अंग्रेज़ो का शक नही होगा।
1869 से इन्तेज़ार करते करते वह वक़्त भी आया जब Lord Mayo Feb 8 1872 को अंडमान निकोबार पहुँचा. Hope Town नाम के जजीरे के पास जा कर वह छुप गये और उसी के पास से Lord Mayo का गुजर हुवा और पल भर गवाए बिना उन्होने ने देश पर ज़ुल्म करने वाले गवर्नर जनरल Lord Mayo को अपने चाकू का निशाना ,इस तरह बनाया कि समुद्र के पानी मे गिर गया और उसको कोलकात्ता लाते लाते मृत्यु हो गयी।
उनसे जब पूछा गया कि अपने ने Lord Mayo को क्यो मारा ?
देश के इस बहादुर ने यु जवाब दिया ”he had done it on orders from God. Then he was asked, if there was any co-conspirator. He said: ‘Yes, God is the co-conspirator” और Mar 11, 1872 को जब सूली को हसते-हसते चूमा
भारतीय जेल कर्मी को मुखातिब करते हुए उनके ज़ुबान पर ये शब्द थे
“‘Brothers! I h
s! I have killed your enemy and you are a witness that I am a Muslim.’ And then he breathed his last while reciting Kalima.”
सभी जानते है अंग्रेज़ो ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन के प्रयास के विफल होने पर खास तौर से मुस्लिम जनता को निशाना बनाया था और इसका ताज़ा सबूत अंडमान और निकोबार है जहा अभी हाल ही के वर्षो मे सबसे ज़्यादा आबादी वहा मुस्लिम की है क्योंकि जब देश के हर कोने से मुस्लिम उल्मा रेशमी रुमाल आंदोलन इत्यादि) और लोगो को काला पानी दिया जाता तो अंडमान निकोबार भेज दिया जाता और वह लोग भी अपना तक़दीर समझ कर वही बस गये और शादी व्याह करके वही जिंदगी काटने लगे और इस इन्तेज़ार मे लगे रहे की हम लोगो की क़ुर्बानी बेकार नही जाएगी
और इंशाअल्लाह एक दिन अपना देश आज़ाद होगा तो हम लोग फिर अपने घरो को लौटेगे।
इस तरह काला पानी का सज़ा पाने वाले सबसे ज़्यादा अनुपात मुस्लिमो का ही था और सारा अंडमान और निकोबार मुस्लिमो से पट गया था ।
आज़ादी के बाद सरकार ने लोगो को नौकरी इत्यादि का लालच देकर तमिलनाडु और अन्य राज्यो से लोगो को बुलाकर वहा बसाया । इस तरह अब फिलहाल मुस्लिम का अनुपात वहा कम हो गया।

ऐसे गुमनाम शहीदो को श्रद्धांजलि देने वाले आज बहुत कम है मगर जिन्होने देश के लिए अपने जान की आहुति दे दी उनको अपना मक़सद प्यारा था ना की नाम और शोहरत

आज भी दलितों के कान में शीशा पिघला कर डाला जाता है अगर मांगते है शिक्षा

जन उदय : सब लोगो ने ब्राह्मणों के उस साम्राज्य की बात तो सुनी होगी की जब दलितों को शिक्षा के लिए मनाही थी और  अगर गलती से भी कोई दलित / शुद्र स्कूल के पास से गुजर जाए और उसके कानो में कोई ब्राह्मणों का मन्त्र पड़  जाए तो उस शुद्र के कानो में शीशा पिघला कर दाल दिया जाता  था .

देश के एक बड़े   इतने बड़े समाज को ब्राह्मणों ने केवल शिक्षा  से वंचित करके गुलाम बना कर रख लिया   इसी अशिक्षा की वजह से ये मानसिक रूप से भी गुलाम हो गए और शुद्रो की ये गुलामी सदीओ तक चलती रही . यानी एक वक्त के राजा अपने ही देश में इन  विदेशी ब्राह्मण आक्रमंकारियो  के गुलाम बन गए .

शुद्रो की गुलामी सुनिश्चित   रहे  ब्राह्मणों ने इस देश में राज करने वाले वाले  , या राज करने के लिए आने वाले हर देशी विदेशी वर्ग को अपना समर्थन  दिया , और शासन करने में मदद की

शिक्षा  पर ब्राह्मणों के एकाधिकार को तोडा तो लार्ड मैकाले ने जिसने शिक्षा में सभी वर्गो को पढने का सामान अधिकार दिया  , इस पर ब्राह्मणों को बहुत अफ़सोस हुआ , खैर  इन अंग्रेजो को भी ब्राह्मण  बाद में मदद करते नजर आये

आजादी के बाद  ये ब्राह्मणों की  मजबूरी  हो गई क्योकि   डॉ  भीम राव अम्बेडकर ने पूना पैक्ट में अपने लिए सारे  अधिकार ले लिए थे लेकिन धूर्त ब्राह्मणों  ने इस पर भी चाल चली  लेकिन इतने कामयाब नहीं हुए और बाबा साहेब ने समानता  के साथ साथ सविंधान में  ही सरकार को मजबूर कर दिया की  सरकार सबको शिक्षा दे , लेकिन ब्राह्मणों को ये भी मंजूर नहीं था इसलिए इन्होने शिक्षा को निजी और सरकारी दो भागो में बाँट  दिया यानी गरीब / शुद्र  और निजी उच्च   जाति  इरादा  था ऐसा करने के पीछे की सरकारी खराब शिक्षा से ये शुद्र उपर नहीं उठ पायंगे  और इनका वर्चस्व हर चीज पर बना रहेगा, जैसा की हुआ भी लेकिन शुद्र के मेघावी बच्चे आगे निकलने लगे , और जीवन के हर क्षेत्र में आगे आने लगे , बावजूद इसके की ब्राह्मणों ने खूब बेईमानी  की  धोखे  दिए   लेकिन फिर भी शुद्र  आगे आ गए

अब ब्राह्मणों के पास एक ही रास्ता  बचा  की भारत की उस शिक्षा वाव्य्स्था को बिलकुल बर्बाद कर दिया जाए ताकि ये दलित शुद्र आगे न आ सके  इसलिए धीरे धीरे  शिक्षा का बजट कम किया जा रहा है  , उच्च संस्थाओं  जैसे आई आई टी , मेडिकल में फी बढाई जा रही है  और निजी कॉलेज को प्राथमिकता  दी जा रही है इसके अलावा उच्च शिक्षा में आने वाले दलित और ओ बी सी न आ पाए इसके लिए यु जी सी के द्वारा दी जाने वाली फेलोशिप बंद करने जा रही है यही नहीं यु जी सी का सालाना बजट इस बार ५५ % कम कर  दिया गया है , पुरे देश में  पिछले  दो सालमे ३ लाख से जयादा  सरकारी स्कूल बंद कर दिए गए है

और सबसे बड़ी  बात की सरकारी स्कूलों में ९वी कक्षा तक फेल न करने की निति  से भी  शिक्षा  तो बर्बाद हो  ही  रही है  बल्कि ब्राह्मण  टीचर  इन स्कूलों में जानबूझ कर दलित  छात्रो को  तीन विषय में  फेल कर रहे है  और इनको पास करने के लिए एक हजार रूपये  प्रति विषय  लिया जा  रहा है

रोहित वेमुला  , डेल्टा की संस्थानिक हत्या  और अन्य  छात्रो की हत्या ये सब साबित कर रही है


आज से सदीओ पहले जिस  तरह शीशा  पिघला कर डालने का चलन  रहा होगा , अब शीशा  पिघला कर  दलितों के कान में डालने का स्टाइल  बदल  गया है लेकिन काम वही है