Apni Dukan

Saturday 19 March 2016

5 खतरना वायरस से गर्भवती के बच्चे को दे सकते है मौत : जानिए कैसे बचे

5 खतरना वायरस से गर्भवती  के बच्चे को  दे सकते  है मौत : जानिए कैसे बचे
दुनियाभर में कई ऐसे गंभीर वायरस व बैक्टीरिया हैं, जो सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के लिए खास नुकसानदायक नहीं होते, पर गर्भवती महिलाओं में इनका असर मां और अजन्मे बच्चे दोनों के लिए गंभीर परिणाम ला सकता है, बता रहे है हम... जीका वायरस पांच में से एक व्यक्ति में इस वायरस के संपर्क में आने पर हल्का बुखार, त्वचा पर निशान, आंखों में गुलाबीपन और जोड़ों में दर्द के लक्षण देखने को मिलते हैं। गर्भवती महिलाओं के लिए ये नया खतरा बनकर उभर रहा है। हालांकि इसके प्रामाणिक तथ्य नहीं है कि जीका वायरस से प्रभावित बच्चों का सिर जन्म के समय छोटा होता है या दिमाग का पूरा विकास नहीं हो पाता।


पर कुछ स्थितिजन्य तथ्य इस ओर इशारा करते हैं। वैज्ञानिकों ने ब्राजील में एक साल पहले जीका वायरस के आउटब्रेक होने के बाद पैदा हुए करीब 4000 बच्चों में माइक्रोसेफली का असर देखा। उन्होंने पाया कि इसका असर प्लेसेंटा के जरिए संक्रमित मां से बच्चे को होता है। वर्ष 2015 से पहले माइक्रोसेफली के 20 मामले हुआ करते थे। ब्राजील और कोलंबिया जैसे देशों में तो महिलाओं को इस वर्ष गर्भवती न होने की सलाह दी गई है। हालांकि पहली तिमाही में महिलाओं पर ये खतरा अधिक होता है, पर भारत समेत विभिन्न देशों में महिलाओं को प्रभावित देशों में घूमने न जाने की सलाह दी गयी है। जीका वायरस की पहचान केवल जेनेटिक टेस्टिंग के जरिए होती है। कई बार ये लक्षण विकास प्रक्रिया में स्पष्ट रूप से सामने नहीं आते। इबोला व हैपेटाइटिस सी से विपरीत जीका वायरस खून में एक सप्ताह तक ही रहता है, इसी अवधि के बीच जांच में यह सामने आ पाता है। हालांकि एक बार वायरस खत्म होने के बाद महिलाओं को किसी तरह का खतरा नहीं है, पर वहां रहने वालों में इसके संपर्क में दोबारा आने की आशंका हो सकती है। रुबेला जर्मन मीजल्स यानी रुबेला खांसी व छींक के जरिए तेजी से फैलता है। स्वस्थ लोगों में इसके लक्षण हल्के बुखार, सिरदर्द, जोड़ों का दर्द, खराश के तौर पर दिखते हैं, पर गर्भवती महिलाओं में यह गर्भपात व नवजात शिशु में जन्मजात कमियों का कारण बन सकता है।

एमएमआर (मीजल्स, मम्प्स, रुबेला) टीके से इस संक्रमण से बचाव होता है। हालांकि ये टीका भारतीय सामान्य टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया है, पर कई राज्य शासित कार्यक्रमों में इसे शामिल किया गया है। भारत में 20 से अधिक की कई महिलाओं को ये टीका नहीं लगा है। विशेषज्ञों के अनुसार गर्भधारण करने से कम से कम एक माह पहले ये टीका लगवाना बेहतर रहता है। इस वायरस में एक लिवर वायरस होता है, जिससे बच्चे को रुबेला इंफेक्शन हो सकता है, ऐसे में गर्भवती महिलाओं को यह टीका नहीं लगवाना चाहिए। ग्रुप बी स्ट्रेप ग्रुप बी स्ट्रेप बैक्टीरिया आमतौर पर किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाता, लेकिन गर्भवती महिला व नवजात शिशु को ये नुकसान पहुंचा सकता है। मां से यह संक्रमण नवजात शिशु को बीमार कर सकता है। 35 से 37 सप्ताह की प्रेग्नेंसी में मांओं को यह टेस्ट करा लेना चाहिए। एंटीबायोटिक के साथ इसका उपचार बच्चे को संक्रमित होने से बचा सकता है। साइटोमेगेलोवायरस आमतौर पर स्वस्थ व्यक्तियों में इससे नुकसान नहीं होता। यह शरीर में आजीवन असक्रिय पड़ा रह सकता है।

पर नवजात शिशुओं और गर्भ में पल रहे शिशु की सुनने की क्षमता पर इसका असर हो सकता है। ये खतरा तब अधिक होता है जब गर्भावस्था के दौरान यह संक्रमण सक्रिय हो जाता है। संक्रमित बच्चा जन्म के समय देखने मंे स्वस्थ ही लगता है, पर कुछ में बड़े होने के साथ सुनने की क्षमता पर असर देखने को मिलता है। ये थूक, पेशाब, खून व वीर्य आदि फ्लुइड से फैलता है। गर्भवती महिलाओं में यह संक्रमण यौन संबंधों के दौरान या बच्चों के खून व पेशाब से फैल सकता है।


लिस्टिरियोसिस गर्भवती महिलाओं में इस बैक्टीरिया से प्रभावित होने की आशंका 10 प्रतिशत अधिक होती है। इससे उनमें हल्की थकावट व दर्द के लक्षण दिखायी देते हैं। गर्भपात, बच्चे का विकास न होना या समय से पहले जन्म होना या जन्म के समय बच्चे के कई तरह के संक्रमण से प्रभावित होने की आशंका बढ़ जाती है। यह संक्रमण दूषित भोजन, गैर पाश्चुराइज्ड दूध, पनीर, कच्चे मांस व मछली से होता है। गर्भवती महिलाओं को गैर पाश्चुराइज्ड दूध, बिना पके डेयरी उत्पादों व सीफूड से बचना चाहिए। संक्रमित बच्चे के उपचार के लिए एंटीबायोटिक का सहारा लिया जाता है।

मुसलमान उर्दू लेखकों को बताना होगा, किताब सरकार या देश विरोधी तो नहीं

नई दिल्ली, 19 मार्च  केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले उर्दू भाषा के प्रचार के लिए राष्ट्रीय समिति (एनसीपीयूएल) ने एक फॉर्म जारी किया है, जिसमें लेखकों को हर साल इस बात की घोषणा करनी होगी कि उनकी किताब सरकार या देश के खिलाफ नहीं है।


अंग्रेजी समाचार पत्र में छपी खबर के अनुसार, पिछले कुछ महीनों से कई लेखकों और संपादकों को ऐसे फॉर्म मिले हैं, जिसमें उनको दो गवाहों के हस्ताक्षर भी उपलब्ध कराने को कहा गया है। वह फॉर्म उर्दू में लिखा गया है। जिसमें लेखक को बताना है कि एनसीपीयूएल के आर्थिक सहायता योजना के तहत अत्यधिक मात्रा में उनकी जिन किताबों या पत्रिकाओं को खरीदने का जो निर्णय लिया गया है,


उसमें सरकार की नीतियों या राष्ट्रहित के खिलाफ कुछ भी नहीं है, और न ही उससे देश के विभिन्न समुदायों के बीच विद्वेष फैलता है, और न ही उसे सरकारी या गैर सरकारी संस्थाओं से आर्थिक मदद प्राप्त है। उसमें चेताया गया है कि अगर घोषणा पत्र में किए गए दावे गलत पाए जाते हैं तो एनसीपीयूएल उस लेखक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई कर सकता है और आर्थिक सहायता वापस ले सकता है। एनसीपीयूएल के निदेशक इर्तेजा करीम का कहना है कि अगर कोई लेखक सरकार से आर्थिक मदद चाहता है तो किताब में सरकार के खिलाफ कंटेंट नहीं होना चाहिए।


 एनसीपीयूएल एक सरकारी संस्था है और वे लोग सरकारी कर्मचारी हैं। हम सब सरकार के हितों का संरक्षण करेंगे। उन्होंने बताया कि एक साल पहले परिषद सदस्यों की एक बैठक में इस घोषणा पत्र के संदर्भ में निर्णय लिया गया था। हमारे पास इतने कर्मचारी नहीं हैं कि हर किताब की हर पंक्ती को पढ़ा जा सके, ऐसे में यह फॉर्म हमारी मदद करती है।

उन्होंने बताया कि पिछले साल पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम के बारे में एक किताब में गलत सूचना दे दी गई। उन्होंने कहा कि कलाम एक राष्ट्रीय व्यक्तित्व हैं, उनसे संबंधित गलत सूचना राष्ट्रीय मुद्दा बन सकता है। हमलोग सब चीजों के लिए जिम्मेदारी नहीं ले सकते हैं।





खायगा , चबायागा ,दबायगा गोरी का यार , बलम दूध का ग्लास लेकर खड़ा होता है होली पर ठर्कियो के गीत

खायगा , चबायागा ,दबायगा गोरी का यार ,  बलम दूध का ग्लास लेकर खड़ा होता है
होली पर ठर्कियो  के गीत

अश्लील  गाने चलते है होली को जिसमे महिलाओं को पापिन  बताया जाता है
होली से जुडी  बुराइया  ठीक उसी तरह है है जिस तरह बनाने वाले ने इस होली के षड्यंत्र को रचा 
इसके नाम पर जो कार्यक्रम होता है वह अपने आप में एक अशोभनीय  और गंदा होता है
रंगो  और पानी से तो स्वास्थ पर  तो असर पढता ही है  साथ ही मानसिक रूप से कुछ इससे जिद कुछ विक्षिप्तात्ये है

उधाहरण के लिए इसके अलावा होली के अवसर पर अश्लील गाने बजाना  ये भी एक बहुत बुरा फैशन है ,अब जैसे एक हिंदी फिल्म का गाना  सुनिए , रंग बरसे  चुनर वाली रंग बरसे
इस गीत में जब लोंगा इलायची का  बीड़ा  जब लगाया  जाता है  तो उसे  गोरी का यार खाता है
बेला चमेली का सेज सजाया  तो भी गोरी का यार सोता  है

इस गीत में  देखिये  खाता , दबाता , चबाता  ,पीता   हर काम  गोरी  का यार करता  है 
तो बलम क्या हाथ में दूध का गिलास  लेकर खड़ा  रहता है ??
इस गीत में एक महिला को पतित करके दिखाया  गया है   और मर्द जो की मर्द है नहीं  फिर भी वह शरीफ है

इसी तरह  दुसरे गीत में देखिये  आज  न छोड़ेंगे तुझे हमजोली  चाहे भीगे  तेरी  चुनरिया चाहे भीगे  चोली
यानी लड़की की चोली   चारी जरूर भिगायंगे   , संस्कृति के नाम पर ये अश्लीलता  को खत्म करना होगा


होली के बहाने होती है अश्लीलता और नशाखोरी


जन उदय : होली कोई पवित्र त्यौहार है  यह कहना अब बिलकुल संभव नहीं है  इसके दो कारण है सबसे होली के अवसर पर ऐसा कुछ नहीं होता  जो पवित्र हो दूसरा शोध के जरिये ये मालूम हो गया है कि होली आर्यों और  अनार्यो के बीच युद्ध में हुई आनार्यो की हार के उपलक्ष में मनाते है
अनार्य मतलब भारत के मूल निवास  और आर्य मतलब विदेशी हमलावर जो आज कथित रूप से स्वर्ण और उच्च  जाति के कहलाते है .

खैर  इतिहास क्या है क्या नहीं ये सब तो बाद के चर्चा की बाते है लेकिन एक सबसे बड़े दुःख की बात यह है की होली के नाम पर रंग लगाना  पानी से भोगोना  उसे अश्लीलता करना  , नशा करना  यह अब आम बात हो गई है


यह देखा गया है स्कूल  कोलेज  , यूनिवर्सिटी  के लड़के लडकिया  इस अवसर पर पार्टी आयोजित करते है   और इस पार्टी में नशे का खूब प्रबंध होता है  औ इस नशे में क्या क्या हो  सकता है या आप सभी कल्पना कर सकते है , कई मामलो में बलात्कार तक की रिपोर्ट आई है
अश्लीलता , लडकियो के अंगो को रंग लगाने के बहाने  उनके शील को भंग किया जाता है , यानी की ये रंग  और पानी उनकी मर्जी के खिलाफ उनके शरीर पर डाला  जाता है , किशोर लड़के  बसों में  कारो  में , रेल में गुब्बारे मारना पत्थरबाजी करना ये भी आम बात है

इसके अलावा होली के अवसर पर अश्लील गाने बजाना  ये भी एक बहुत बुरा फैशन है ,अब जैसे एक हिंदी फिल्म का गाना  सुनिए , लोंगा इलायची का बीड़ा लगाया , चाबे गोरी का यार  बलम तरसे
इस गीत में  देखिये  खाता , दबाता , चबाता  ,पीता   हर काम  गोरी  का यार करता  है  तो बलम क्या हाथ में दूध का गिलास  लेकर खड़ा  रहता है ??

होली के दिन लड़ाई झगडे तो वैसे भी अब आम बात हो गए है , 

इस्लाम देता है आतंकवादी बनने की शिक्षा ?


आइन्स्टाइन  ने एक बार कहा था की “”इस्लाम दुनिया का सबसे बेहतरीन महज़ब है , और मुसलमान दुनिया  की सबसे गन्दी कौम “”  इनका  यह कथन दुनिया में ही नहीं भारत में मुसलमानों की उपर पूरी तरह से फिट बैठता है . हालांकि  दुनिया के सभी देशो से भारत के मुसलमानों की दशा जयादा  बेहतर है लेकिन जो होना चाहिय  था  उसका अभी पूरा एक प्रतिशत भी नहीं  है

इसके मुख्य कारण  है
अशिक्षा : इस्लाम में शिक्षा पर बहुत जोर डाला  गया है वह भी बिना किसी लिंग भेदभाव के , कुरआन में कहा गया है कि अगर शिक्षा के लिए चीन देश  भी जाना पड़े तो जाना   चाहिए , अब हमारे मुसलमान   विद्वान इसको  सिर्फ  दुरी से ही जोड़ते  है   जबकि  इस मतलब यह है की  दुरी और  मुशिकले चाहे  जो भो  हो , हालात जो भी हो ,शिक्षा  जरूरी  है   लेकिन भारत में  आलम यह है की मुसलमानों की शिक्षा  ३ % से जयादा  है ही नहीं .  ये बेवकूफ इतना  नहीं समझ पाते की जब इनको कुरआन पढने के लिए बाध्य किया गया है  तो  कुरआन पढने का मतलब यह नहीं की कुरआन को सिर्फ अरबी में पढ़ लिया जाए  बल्कि इसका मतलब है  इसके ज्ञान को समझा जाए , लेकिन हमारे  मुसलमान भाई  और इनके मुल्ला  , मौलवी  बस  इसी बात पर जोर डालते है की कुरआन  को पढ़ लिया जाए  या रठ  लिया जाए 
..

जातिवाद : भारतीय  ब्राह्मणों से प्रेरित हो कर मुलामानो में एक बहुत बड़ी समस्या यह भी आ गई है की इनमे जातिवाद हिन्दुओ की  तरह  कूट  कूट कर भर गया है , कमाल की बात यह है की कई ऐसे सारे मामले सामने आये है की जाति के नाम पर कत्ल तक हुए है  ऑनर किलिंग तक हुई है जबकी इस्लाम का मूल उदेश्य  समानता और  भाईचारा  है  , लेकिन अपने आप को शेख , पठान  बता कर  मुसलमान खूब इतराते  है

दहेज़ : दहेज़ की ऐसी हिन्दुओ की समस्या है जिसको तथाकथित  हिन्दू समाज काफी समय से झेल रहा है  इसका कारण  है हिन्दुओ में  बेटी को बौझ मानना  और उसका विवाह  करने के बाद स्वर्ग की प्राप्ति , हालांकि यह भी किसी भी प्राचीन ग्रन्थ जो ब्राह्मणों  ने लिखे है उनमे  नहीं मिलता , मुसलमान भी अब इस प्रथा  को खूब आगे बढ़ा  रहे है और दहेज़ ले कर दे कर खूब फुले समाते है

आर्थिक समानता : इस्लाम का सबसे बड़ा और  अहम्  पिलर  है समानता इसमें आर्थिक भी शामिल है  , इस्लाम में तो यहाँ तक कहा गया है की आप शाम को खाना खाने से पहले  पड़ोस में यह जांच ले की पड़ोस के घर में  चूल्हा जला है या नहीं ,  इसका मतलब भी मुसलमान समझ नहीं पाते  चूल्हा कब नहीं जलेगा ??  घर में खाना  नहीं होगा  या कोई दुःख होगा   तो ऐसे में पड़ोस का फर्ज निभाते हुए  उसके हर दुःख में शामिल हो जाइए , यहाँ गोर करने वाली बात है दुःख तकलीफ में .
 लेकिन अब तो ऐसा होता है की औरते  किसी दुश्मन के लिए कहती है मैंने अपने फला पडोशी के लिए नमाज़  पढ़ पढ़  के उसकी मौत की दुआ मांगी है .. हंसी आती है दुःख भी होता है
इसके अलावा  सदका , फितना  ये ऐसे आईडिया है इस्लाम में  जो मुसलमानों की गरीबी दूर कर सकते है इनमे खुशहाली ला सकते है  लेकिन अज्ञानी मुसलमान नमाज़ पढ़  के रोजा  रख के   दुनिया को बताते फिरते है और अल्लाह पर अहसान करते रहते  है , और अल्लाह की हिफाजत के लिए दंगे करेंगे , हथियार उठायंगे .. ऐसा लगता है अगर ये लोग रोजा  नमाज़ न पढ़े  तो अल्लाह रहेगा ही नहीं ..

अब इससे बड़ी अज्ञानता क्या होगी