वेदों से मर्द
सीखे अपने लिंग को कमान की तरह तानना और कैसे मसली जाति है स्त्री की छाती
: ये ज्ञान
है या अश्लीलता
वेदों में मैंने
पढ़ा कि पूरे शरीर में देशी घी लगाकर अपनी पत्नी से सम्भोग करें.......अब इन
नालायको से कोई पूछे आपने लिख तो दिया कि देशी मगर देशी घी आयेगा कहा से..मेरे बाप
की कोई मिल तो चल नहीं रही है....यहाँ साला एक महीना हो गया नहाये बिना, तेल तक तो है नहीं सर में लगाने के लिए और ये देशी घी रीक्मेंट कर रहे
है.....इसके लिए तो भाई मुझे मोहन घी वालों की फैक्टरी का टाला चटकाना पडेगा तब
जाकर चार छ: देशी घी के पीपों का जुगाड होगा......ऐसा भी तब करूँगा जब हौसलेवाली
राजी होगी....वरना भई जोर जबरदस्ती की तो एक पत्नी को भी हक है कि वो रेप का केस
लगवा सके.......फिर सम्भोग तो क्या....मु* मारने के लायक भी नहीं रहूँगा........आप
ही बताओ क्या करना चाहिए.........कमेन्ट जरुर करना कभी इस सीरियस मामले में भी
कंजूसी करो....!
अब जिक्र करते है
अश्लीलता का :-वेदों में कैसी-कैसी अश्लील बातें भरी पड़ी है,इसके कुछ नमूने आगे प्रस्तुत किये जाते हैं (१) यां त्वा .........शेपहर्श्नीम
|| (अथर्व वेद ४-४-१) अर्थ : हे जड़ी-बूटी, मैं तुम्हें खोदता हूँ. तुम मेरे लिंग को उसी प्रकार उतेजित करो जिस प्रकार
तुम ने नपुंसक वरुण के लिंग को उत्तेजित किया था.
(२)
अद्द्यागने............................पसा:|| (अथर्व वेद ४-४-६)
अर्थ: हे अग्नि देव, हे सविता, हे सरस्वती देवी, तुम इस आदमी के लिंग को इस तरह तान दो जैसे धनुष की डोरी तनी रहती है
(३)
अश्वस्या............................तनुवशिन || (अथर्व वेद ४-४-८)
अर्थ : हे देवताओं, इस आदमी के लिंग में घोड़े, घोड़े के युवा बच्चे, बकरे, बैल और मेढ़े के लिंग के
सामान शक्ति दो
(४) आहं तनोमि ते
पासो अधि ज्यामिव धनवानी, क्रमस्वर्श इव रोहितमावग्लायता (अथर्व वेद
६-१०१-३) मैं तुम्हारे लिंग को धनुष की डोरी के समान तानता हूँ ताकि तुम स्त्रियों
में प्रचंड विहार कर सको.
(५) तां
पूष...........................शेष:|| (अथर्व वेद
१४-२-३८) अर्थ : हे पूषा, इस कल्याणी औरत को प्रेरित करो ताकि वह अपनी
जंघाओं को फैलाए और हम उनमें लिंग से प्रहार करें.
(६)
एयमगन....................सहागमम ||
(अथर्व वेद २-३०-५) अर्थ :
इस औरत को पति की लालसा है और मुझे पत्नी की लालसा है. मैं इसके साथ कामुक घोड़े
की तरह मैथुन करने के लिए यहाँ आया हूँ.
(७)
वित्तौ.............................गूहसि (अथर्व वेद २०/१३३) अर्थात : हे लड़की, तुम्हारे स्तन विकसित हो गए है. अब तुम छोटी नहीं हो, जैसे कि तुम अपने आप को समझती हो। इन स्तनों को पुरुष मसलते हैं। तुम्हारी माँ
ने अपने स्तन पुरुषों से नहीं मसलवाये थे, अत: वे ढीले पड़ गए है।
क्या तू ऐसे बाज नहीं आएगी? तुम चाहो तो बैठ सकती हो, चाहो तो लेट सकती हो.