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Tuesday 5 December 2017

आरक्षण की भीख मांगते है ब्राह्मण विदेशो में , भारत में करते है विरोध :


जन उदय : सामाजिक , आर्थिक विषमता पुरी दुनिया में है चाहे वो साम्यवादी देश ही क्यों न हो कही प्रांत के नाम पर , कही लिंग के आधार पर विषमता आपको जरूर मिलेगी , लेकिन सामाजिक स्तर पर यह विषमता भेदभाव का कारण बनी , ताकतवर और अमीरों ने गरीबो और कमजोरो को अपना शिकार बनाया .

भारत में यह सामाजिक विषमता जाति के आधार पर आई , कुछ जाति समाजो ने अपने आपको भगवान का प्रतिनिधि घोषित कर दिया और बता दिया की उन्हें भगवान् ने भेजा है वो भगवान् की सन्तान है और ये भेदभाव भगवान् का आदेश है , सुनने से ही बड़ा बुरा लगता है , लेकिन इसी विचार के साथ समाज आगे बढता रहा और गरीब और गरीब होते रहे , कमजोर और भी कमजोर होते रहे , जाति के आधार पर बना अत्याचार बढता रहा यहाँ तक की अत्याचार की सारी हदे पार कर गया ,

आजादी के बाद भारत में इन जातिओ और पिछड़े समूहों को समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण का इस्तेमाल किया लेकिन जो लोग पहले से ही सामाजिक राजनेतिक सत्ता में थे उन्होंने सामाजिक उत्थान के सारे प्रयासों को विफल कर दिया , व्यापम जैसे घोटाले पहले भी होते रहे लेकिन सामने न आये , इन अगड़े समाजो ने इमानदारी के नाम पर सबको लूट लिया भारत में आरक्षण आज भी है लेकिन फायदा न के बराबर है ..
भारत के समृद्ध उच्च जाति के लोग विदेशो में भी रह रहे है और हर साल लाखो के संख्या में नौकरी शिक्षा की खोज में भारतीय लोग विदेश जाते है , और यही नहीं भारी संख्या में वहा बस भी गए है , इंग्लैंड , कनाडा , अमरीका आदि देशो में भारतीय लोगो की संख्या भारी मात्रा में है , कनाडा में तो पंजाबी को तीसरी राजिकीय भाषा का दर्जा मिल गया है . लेकिन ये सब इतनी आसानी से नहीं हुआ है इसके लिए भारतीय लोगो ने संघर्ष किया है यानी यूरोपीय देशो में , अमरीका में , कनाडा में भारतीय लोगो ने डाइवर्सिटी या आरक्षण , एम्प्लॉयमेंट इक्विटी की मांग की , और अपने लिए तरह तरह के आरक्षण मांगते रहे है .


कमाल की बात है ये वही भारतीय है और उन्ही समाजो से आते है जो लोगो भारत में सदीओ से पिछड़ी , और सामाजिक रूप से उत्पीडित जातिओ के खिलाफ लागातार ज़हर उगलते है , आरक्षण को हटाने की मांग करते है , जाति के नाम पर हत्या गरीबो की हत्या अपना धर्म समझते है लेकिन वाही लोग विदेशो में जाकर आरक्षण की मांग क्यों करते है ??

किसी भी समाज या देश का भला तभी होगा जब उसका हर नागरिक आगे होगा उसका विकास होगा , केवल सेंक्सेस के उपर जाने से देश उपर नहीं जाता , केवल औसत आय के बड जाने से देश आर्थिक रूप से सम्पन्न नहीं हो जाता , ये समझने की जरूरत है


भारत में आरक्षण होते हुए भी केवल ब्राह्मण ही ७९ % सीट पर बैठा है जबकि इनकी संख्या केवल ३ % है , यह बात भी वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित हो चुकी है की ब्राह्मण विदेशी हमलावर है और इसने यहाँ के मूलनिवासियो को धार्मिक अंधविश्वास और धोखे से मानसिक गुलाम बना लिया . खैर आरक्षण का विरोध करने वाले जान ले की यही ब्राह्मण विदेशो में कैसे आरक्षण मांगते है और कैसे इनको दिया जाता है

दुनिया के निम्नलिखित देशो में मिलता है आरक्षण (Reservation/Affirmative Action):-
आजकल देश में दलित (OBC, SC & ST) आरक्षण के विरोध मे आंधी सी चल रही है। आरक्षण के खिलाफ बेहूदे और बेतुके तर्क किये जाते है। सबसे पहला तर्क होता है कि दूसरे देशो मे आरक्षण नहीं दिया जाता इसलिये वे देश हमसे ज्यादा प्रगितिशील है जो बिल्कुल गलत है। विदेशो मे भी आरक्षण की पद्धति है। अमेरिका, चीन, जापान जैसे देशों में भी आरक्षण है और इसे ईमानदारी से दिया जाता है।

बाहरी देशों में आरक्षण को Affirmative Action कहा जाता है। Affirmative Action का मतलब समाज के "वर्ण " तथा "नस्लभेद" के शिकार लोगो के लिये सामाजिक समता का प्रावधान है ।
1961 को संयुक्त राष्ट्र की बैठक मे सभी प्रकार के वर्ण, नस्लभेद व रंगभेद के खिलाफ कड़ा कानून बनाया गया। इसके तहत संयुक्त राष्ट्र में सम्मिलित सभी देशो ने अपने देश के शोषित वर्ग (दलित) की मदद करके उन्हें समाज की मुख्य धारा मे स्थापित करने का निर्णय लिया। इसी फैसले के तहत ही शोषितों और वंचितो को उठाने के लिए अलग अलग देशो ने अपने अपने तरीके से आरक्षण लागु किया है।

ऊपर कहे गए देश अमेरिका, जापान और भारत के अलावा अन्य देशो ने भी आरक्षण दिया है जिन मे से कुछेक निम्नलिखित हैं :-

1. हमारे पडोसी देश पाकिस्तान मे बडी मुश्किल से 5% दलित हैं लेकिन उन्हें ईमानदारी से 6% आरक्षण दिया जाता है।
2. आरक्षण के कारण दक्षिण अफ्रीका टीम में 4 अश्वेत खिलाडियों का चयन जरूरी होता है।
3. अमेरिका में affirmative action) के तहत अश्वेतों को आरक्षण मिला हुआ है। वहां की पिक्चरों में भी अश्वेत कलाकारों का आरक्षण निर्धारित है। वहाँ कोई पिक्चर या विभाग ऐसा नहीं मिलेगा जिसमें अश्वेत/काले न हो। अमेरिका ने तो आज से 155 साल पहले 4 मार्च, 1861 को दलित (अब्राहम लिंकन) को अपना राष्ट्रपति बना दिया था। अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा भी एक अश्वेत, मुस्लिम और छोटे तबके के हैं।तभी तो अमेरिका तरक्की की दुनिया में अन्य देशों से काफी आगे हैं। भारत में तो सम्पूर्ण हिस्सेदारी पर कुछे लोग कुंडली मारकर कब्जा जमा रखा है.. इसीलिये वे समाज मे भ्रांति फैलाने के लिए आरक्षण/
हिस्सेदारी का आऐ दिन विरोध करते रहते हैं।
4. ब्राझील में आरक्षण Vestibular नाम से जाना जाता है ।
5. कनाडा में समान रोजगार का तत्व है जिसके तहत फायदा वहाँ के असामान्य तथा अल्पसंख्यकों को होता है ।
6. चीन में महिला और तात्विक अल्पसंख्यको के लिये आरक्षण है ।
7. फिनलैंड मे स्वीडीश लोगो के लिये आरक्षण है ।
8. जर्मनी में जिमनॅशियम सिस्टम है ।
9. इसरायल में Affirmative Action के तहत आरक्षण है ।
10. जापान जैसे सबसे प्रगतिशिल देश में भी बुराकूमिन लोगो के लिये आरक्षण है (बुराकूमिन जापान के हक वंचित दलित लोग हैं )
11. मॅसेडोनिया में अल्बानियन के लिये आरक्षण है ।
12. मलेशिया में भी उनकी नई आर्थिक योजना के तहत आरक्षण लागू हुआ है ।
13. न्यूजीलैंड में माओरिस और पॉलिनेशियन लोगो के लिये Affirmative Action का आरक्षण है ।
14. नॉर्वे के पीसीएल बोर्ड मे 40 % महिला आरक्षण हें।
15. रोमानिया मे शोषण के शिकार रोमन लोगों के लिये आरक्षण है ।
16. दक्षिण आफ्रिका मे रोजगार समता (काले गोरे लोगो को समान रोजगार) आरक्षण है ।
17. दक्षिण कोरिया मे उत्तरी कोरिया तथा चीनी लोगों के लिये आरक्षण है ।
18. श्रीलंका मे तमिल तथा क्रिश्चियन लोगो के लिये अलग नियम अर्थात आरक्षण है ।
19. स्वीडन मे General Affirmative Action के तहत आरक्षण मिलता है ।
अगर इतने सारे देशों में आरक्षण दिया जाता है (जिनमे कई विकसित देश भी शामिल है) तो फिर भारत का आरक्षण किस प्रकार भारत की प्रगति में बाधक है। भारत में तो लोग सबसे ज्यादा जातिभेद के ही शिकार हैं । भारतीय शुद्रो/दलितो को तो हजारों सालों से उनके मौलिक अधिकारों से ही वंचित कर गुलाम बना कर रखा। तो फिर भारतीय दलितो को आरक्षण क्यों न मिले?
जब तक भारत के सभी जाति धर्म के लोग शिक्षा, सेना, सभी प्रकार की नौकरी, संसाधन तथा सरकार में समान रुप से प्रतिनिधित्व नहीं करेंगे , तब तक देश वांछनीय प्रगति नहीं कर पाएगा। अगर सभी देश प्रगति के लिए सभी लोगों को साथ लेकर चल रहे हैं तो फिर भारत क्यों नहीं।