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Friday 9 February 2018

मोदीजी, नेहरु में कमियां रही होंगी मगर आपके ‘संघी पूर्वजों’ की तरह वो ‘अंग्रेजों’ की दलाली तो नहीं करते थे : उर्मिलेश


मोदीजी, नेहरु में कमियां रही होंगी मगर आपके ‘संघी पूर्वजों’ की तरह वो ‘अंग्रेजों’ की दलाली तो नहीं करते थे : उर्मिलेश

मैं सहमत हूं, कांग्रेस का शासन अच्छा नहीं था। उसके कुछ साल तो वाकई बुरे थे। पर उसके बाद का यह ‘संघ परिवारी राज’? यह तो बहुत बुरा, विनाशकारी होने की हद तक बुरा साबित हो रहा है!

लोकतांत्रिक संरचनाएं चरमरा रही हैं। संवैधानिक संस्थाएं अपना स्वतंत्र वजूद खो रही हैं! विरोधियों, आलोचकों और असहमति की आवाजों को तरह-तरह से कुचला जा रहा है!

यह बात सही है कि सन् 1947 में जिस तरह स्वतंत्र भारत वजूद में आया, उसे हासिल करने में इस ‘भगवा परिवार के पूर्वजों'(जो सन् 1925 से लगातार सक्रिय रहे पर आजादी की लड़ाई में नहीं!) का कोई योगदान नहीं था। इनके पूर्वजों में कुछ बेहद गणमान्यों ने ‘टू नेशन थिउरी’ का मोहम्मद अली जिन्ना से पहले ही प्रतिपादन कर दिया था।

इनका मातृसंगठन शुरू से ही कुछ अलग तरह का देश चाहता था। उन्हें मनु का देश और मनु का विधान पसंद था। वे मुल्क को अतीत के राजे-रजवाड़ों की हुकूमत की तरफ ले जाने चाहते थे। वे आधुनिक लोकतंत्र के विरुद्ध थे।


यह महज संयोग नहीं कि स्वतंत्र भारत में बहुत सारे भूतपूर्व राजे महराजे जब राजनीति में उतरे तो जनसंघ या स्वतंत्र पार्टी जैसे संंगठन उनके स्वाभाविक विकल्प बने। अनेक कांग्रेस में भी आये।

पर मुल्क ने आजादी की लड़ाई के दौरान विकसित होते राजनीतिक मूल्यों की रोशनी में सन् 1950 में अंबेडकर के संविधान को अपनाया। इसने हमें संवैधानिक लोकतंत्र दिया। यह सही है कि इसके अमल में असंख्य गलतियां, शरारतें और साजिशें हुईं।

इन सब से सबक लेकर ही यह मुल्क बेहतर दिशा में आगे बढ़ सकता है। शहीद भगत सिंह और डॉ बी आर अंबेडकर के विचारों को मिलाकर ही यह दिशा तय हो सकती है! संघ परिवार की दिशा पहले संकीर्ण मनुवादी और पुनरुत्थानवादी थी, आज पूरी तरह विनाशकारी है। वह भारत नामक एक बनते हुए आधुनिक राष्ट्र राज्य की आधारशिला को ही धाराशाही करने पर तुली है!
http://januday.co.in/NewsDetail.aspx?Article=10484
-उर्मिलेश उर्मिल
news source
bolta hindustan dot com

शिवाजी , मुसलमान और संघियो का षड्यंत्र : जीशान अहमद

शिवाजी , मुसलमान और संघियो का षड्यंत्र  : जीशान अहमद

संघी यानी आर एस एस  जिसका दुसरा मतलब  नफरत और आतंक  भी होता है  इन्होने देश में अशिक्षा की वजह से इतिहास के पन्नो   में जहर  डाल डाल के लोगो को पिला रहे है और कमाल की बात यह है की ये लोग हिन्दू शब्द का सहारा ले कर अपना उलू सीधा करते रहते है जब की यह बात सब जानते है की हिन्दू समाज या धर्म से इनका कोई लेना  देना  नहीं है इनका काम है सिर्फ जहर फैलाना , अगर इनका हिन्दू  या हिन्दू समाज से कोई सम्बन्ध  होता तो फिलहाल में  सहारनपुर में ऐसी घटना न होती  की इन्होने अपने ही धर्म के लोगो के साथ बर्बरता की  और ये सिर्फ  सहारनपुर ही नहीं पुरे देश में सदीओ से ये लोग दलित समाज में जहर फैलाते आ रहे है , वर्तमान योगी सरकार चुन चुन कर यादव , गुर्जर  और मुसलमानों की हत्या कर रही है जिसमे  ३००० से जयादा ह्त्या कर चुकी है और ये  खुनी खेल जारी  है वह भी  अपराध मुक्ति के नाम पर

अब बात करते है शिवाजी  की जिसको ये लोग  हिन्दू  कह कर संबोधित  करते है और हिन्दू –मुसलमान के बीच खड़ा कर देते है जबकि  शिवाजी  एक राजा  था   उसका राजधर्म  था जनता से उसे प्यार था  वह अपने राज्य में सबका राजा  था और  उसकी सारी प्रजा  उसके साथ थी वह भी बिना किसी जाति और धर्म के भेद के
यहाँ पर शिवाजी के बारे में कुह खुलासे  किये जा रहे है जरा देखिये
धर्म के ठेकेदारों तुम ही बताओ मुल्लो से नफरत करू भी तो किस वजह से?
छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना में 30% से ज़्यादा मुसलमान  थे


शिवाजी के 13 बॉडीगार्ड मुसलमा
न थे

शिवाजी के तोपखाने का प्रमुख इब्राहिम खान नाम का मुसलमान था।
शिवाजी का एक ही वकील था जिसका नाम क़ाज़ी है था वो भी मुसलमान था।
शिवाजी के गुरु का नाम सूफी याकूब बाबा था।
शिवाजी के थल सेना प्रमुख का नाम नूर खान था।

अफ़ज़ल खान को मारने के लिए शिवाजी को वो हथियार बना कर देने वाला सिद्धि हिलाल मुसलमान ही था
अफ़ज़ल खान के आने की खबर देने वाला रुस्तम ए ज़मान मुसलमान था।

इतिहास में कही भी नही है के शिवाजी के सेना के किसी मुसलमान ने शिवाजी को धोखा दिया हो।
शिवाजी ने रायगढ़ में अपने किले से सामने मुस्लिमों के लिए मस्जिद बनाई जो आज भी मौजूद है
शिवाजी पर हमला करने वाला कृष्णा भास्कर कुलकर्णी ब्राम्हण था।
ब्राम्हणो ने शिवाजी के राज्ये अभिषेक को नकारा था।

शिवाजी के पोते  संभाजी की हत्या कर के उनके शरीर के टुकड़े करने वाले ब्राम्हण ही थे।
शास्त्रो के हिसाब से शुद्र का शिक्षा प्राप्त करना अधर्म था अगर कोई शुद्र शिक्षा प्राप्त करले तो उसे मृत्यु दंड दिया जाता था
ज्योतिबा फुले ने शूद्रों की शिक्षा की ज़िम्मेदारी उठाई और स्कूल शुरू करने के लिए आगे बढ़े ब्राम्हणो ने खूब विरोध किया पर एक मुल्ला जिसका नाम उस्मान शेख था उसने स्कूल के लिए जगह दी।
सावित्री बाई फुले जब स्त्री शिक्षा की ज़िम्मेदारी लेकर निकली उस वक़्त भी ब्राम्हणो के खूब विरोध किया यहा तक के सावित्री बाई पर पत्थर और गोबर बरसाए गए ब्राम्हणों द्वारा पर उस वक़्त भी उनके साथ कदम से कदम मिला कर चलने वाली फ़ातेमा शेख भी मुल्ला ही थी।

ब्राम्हणों के विरोध के बावजूद डॉ भीमराव अंबेडकर को संविधान हाल तक पहोचाने वाले भी मुल्ले ही थे

धर्म के ठेकेदारों अब तुमही बताओ मेरे पूर्वजो के साथ कदम से कदम मिला कर चलने वाले इन मुसलमानों  से मैं कैसे नफरत करू?