जन उदय : अगर हम १९४७ के
पहले के वामपंथी आंदोलनों का सही सही विवेचना करे तो हम पायंगे की वामपंथी आन्दोलन की इन वामपंथी
आंदोलनों का मुख्य उदेश्य दलित आंदोलनों
को खत्म करना था कमजोर करना था न की समाज में एकता , समानता और समाजवाद लाने में
इनकी कम दिलचस्पी बहुत कम थी बल्कि यु कहे
ये आन्दोलन दलित आन्दोलन को कजोर करने के षड्यंत्र थे
आजादी के बाद भी दलित
आन्दोलन सिर्फ इसलिए कामयाब नहीं हो पाए क्योकि ये लोग दलित युवाओं को समानता और
समाजवाद के नाम पर भ्रमित करने में कामयाब रहे सारे के सारे दलित युवा हमेशा इनके
पीछे लगे रहे , दलित
युवा ये कभी नहीं समझ पाए कि इन
वामपंथी आंदोलनों में सिर्फ और सिर्फ ब्राह्मण
और उच्च जातिय
मुसलमान ही क्यों शीर्ष पर रहे .. कभी भी इन आंदोलनों में दलित आगे नहीं
आये जबकि ये सारे आन्दोलन चलते रहे दलितों के नाम पर गरीबो के नाम पर
कुल मिला कर ये वामपंथी लोग दलितों को अपने आन्दोलन के लिए
इंधन की तरह इस्तेमाल करते रहे लेकिन दलितों को कभी उनका हक नहीं मिला
हाल ही में हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में रोहित वेमुला की
संस्थानिक हत्या ने दलित आन्दोलन ने पूरी दुनिया
को हिला दिया था , पूरी दुनिया में इस हत्या की निंदा हो रही थी .. ये वामपंथी कभी भी रोहित वेमुला
के जिन्दा रहते कभी दलित छात्रो के साथ नहीं आये लेकिन रोहित वेमुला की हत्या से
फायदा उठाने तुरंत आ गए
जब आन्दोलन कम न हुआ तो
वामपंथी छात्र ब्राह्मणों के इशारे पर कन्हिया को लेकर एक अन्य षड्यंत्र को जन्म
देने लगे इसके बाद यही हुआ यानी जे एन यु षड्यंत्र जिसके बाद रोहित वेमुला की
हत्या को लोग भुलाने लगे .. इसके बाद डेल्टा मेघवाल का
बलात्कार और हत्या हुई जैसे ही डेल्टा आन्दोलन ने टूल पकड़ा फिर जे एन यु में एक और षड्यंत्र हुआ उसमे भी
वामपंथी यानी कन्हीय्या आगे आ गया
इसके बाद जीशा की हत्या और बलात्कार के मसले को फिर जे एन यु ने दबा दिया और
अब फिर दुबारा से इसी तरफ आगे बढ़ रहे है .
यानी कुल मिला कर दलित आन्दोलन को कमजोर करना सिर्फ यही है वामपंथी आन्दोलन का
मकसद वामपंथी यानी ब्राह्मणों का एक और
संघठन