जन उदय : हाल ही में सीरिया में विश्व भाषा
सम्मेलन हुआ जिसमे संस्कृत की उत्पति ,और विकास पर भी चर्चा हुई
सारी चर्चा और इतिहासिक शोध से अब तक ये सामने
आया है संस्कृत भाषा का भारत से कोई सम्बन्ध नहीं है और न ही इसकी कोई उत्पति के
वैज्ञानिक और भाषा उत्पति के सिद्धांत मिलते है
दरअसल भारत में ये भाषा आर्यों यानी ब्राह्मणों
के साथ आई ये लोग आपस में ही इस भाषा को बोलते उअर लिखते थे , यही
कारण रहा की इसका सम्बन्ध किसी भी भारतीय क्षेत्र से नहीं रहा
ऐसा लगता है की ये भाषा दरसल ब्राह्मणों की कोड
वर्ड भाषा थी जिसे ये लोग ही पढ़ और लिख सकते है
संस्कृत में लिखे गये गए ग्रन्थ में कही भी
किसी आम आदमी को संस्कृत नहीं बोलते दिखाया गया
ब्राह्मणों की सबसे बड़ी चालाकी जिसे ये हमेशा
से आजमाते आये है वे है अंधविश्वास , लोगो में प्राक्रतिक डर की भावना ,
और
अज्ञानता जिसके कारण इन्होने इस भाषा को देव भाषा का दर्जा दे दिया जिसको बाद में
पीड़ित , शोषित और कमजोर लोगो ने मान लिया क्योकि उनके पास और कोई चारा भी न
था
कई बार इसे ये लोग अमृत वाणी भी कहते है क्योकि
इन्होने अपने संदेश इसी भाषा में लिखे , यानी वेद आदि इसमें कमाल की बात यह रही
की इस भाषा को भगवान् ने सिर्फ इन्हें ही सिखाया यानी ये इनकी धूर्तता थी की ये
इनकी भाषा है और इन्हें ही आती थी
खैर शोध के आधार पर यह बात साफ़ है की सिन्धु
घाटी की सभ्यता में ब्रह्मण कही नहीं थे और न ही संस्कृत यानी ये दोनों विदेशी है
इसके अलावा विदेशी भाषाओं में इसके या इससे
मिलते जुलते शब्द मिलते है जो ये बात साबित करते है की इसका भारत से कोई सम्बन्ध
नहीं है जैसे इंग्लिश में brother तो संस्कृत में भ्राता इसी तरह मदर तो
माता
,
patriarchy - पितृसत्तात्मक , matriarchy – मात्रसत्तात्मक
आदि
चूँकि यह बात साफ़ है तो इस भाषा के विकास पर
अरबो रुपये का खर्चा क्यों ??