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Wednesday 27 December 2017

भारत का नैतिक पतन और ब्राह्मणवाद : संजय झोटे


भारत का दार्शनिक और नैतिक पतन आश्चर्यचकित करता है. भारतीय दर्शन के आदिपुरुषों को देखें तो लगता है कि उन्होंने ठीक वहीं से शुरुआत की थी जहां आधुनिक पश्चिमी दर्शन ने अपनी यात्रा समाप्त की है. हालाँकि इसे पश्चिमी दर्शन की समाप्ति नहीं बल्कि अभी तक का शिखर कहना ज्यादा ठीक होगा. कपिल कणाद और पतंजली भी एक नास्तिक दर्शन की भाषा में आरंभ करते हैं, महावीर की परम्परा भी इश्वर को नकारती है. इन सबसे आगे निकलते हुए बुद्ध न सिर्फ इश्वर या ब्रह्म को बल्कि स्वयं आत्मा को भी निरस्त कर देते हैं. एक गहरे नास्तिक या निरीश्वरवादी वातावरण में भारत सैकड़ों साल तक प्रगति करता है. लेकिन वेदान्त के उभार के बाद भारत का जो पतन शुरू होता है तो आज तक थमने का नाम नहीं ले रहा है.

पश्चिम में आधुनिक समय में खासकर पुनर्जागरण के बाद जो दर्शन मजबूत हुए या शिखर पर पहुंचे हैं और जिन्होंने विज्ञान, तकनीक, लोकतंत्र आदि को संभव बनाया है वे भी ईश्वर और आत्मा को नकारते हैं. कपिल, कणाद और बुद्ध की तरह वे भी एक सृष्टिकर्ता और सृष्टि के कांसेप्ट को नकारते हैं और प्रकृति या सब्सटेंस को ही महत्व देते हैं. इसके बाद चेतना, रीजन और विलको अपनी खोजों और विश्लेषण का आधार बनाते हैं.

ये मजेदार बात है. भारत के प्राचीन दार्शनिकों ने जहां से शुरू किया था वहां आज का पश्चिमी दर्शन पहुँच रहा है. लेकिन भारत में उस तरह का विज्ञान और सभ्यता या नैतिकता नहीं पैदा हो सकी जो आज पश्चिम ने पैदा की है. ये एक भयानक और चकरा देने वाली सच्चाई है.

इसका एक ही कारण नजर आता है. प्राचीन भारतीय दार्शनिकों की स्थापनाओं को सामाजिक और राजनीतिक आधार नहीं मिल पाया. उनकी शिक्षाओं को institutionalise नहीं किया जा सका, किसी संस्थागत ढाँचे में (सामाजिक या राजनीतिक) में नहीं बांधा जा सका. कुछ प्रयास हुए भी अशोक या चन्द्रगुप्त के काल में लेकिन वे भी ब्राह्मणी षड्यंत्रों की बलि चढ़ गये. कपिल, कणाद महावीर या बुद्ध से आ रहा एक ख़ास किस्म का भौतिकवाद और इस भौतिकवाद पर खड़ी नैतिकता भारतीय समाज और राजनीति का केंद्र नहीं बन पाई. बाद के आस्तिक दर्शनों और वेदान्त ने इश्वर-आत्मा-पुनर्जन्म की दलदल में दर्शन और समाज दोनों को घसीटकर बर्बाद कर दिया.


कपिल कणाद के बाद बुद्ध और महावीर की परम्पराओं में भी भीतर से ही परलोकवाद और वैराग्यवाद उभरता है और अपने ही स्त्रोत को जहरीला करके ब्राह्मणवादी पाखंड के आगे घुटने टेक देता है. फिर सुधार की रही सही संभावना भी खत्म हो जाती है. इसीलिये आश्चर्य की बात नहीं कि ओशो रजनीश जैसे धूर्त बाबा अपने परलोक और पुनर्जन्मवादी षड्यंत्र को बुनते हुए बुद्ध और महावीर सहित कबीर को भी अपनी चर्चाओं में बड़ा ऊँचा मुकाम देते हैं. इन्हें अपनी प्रेरणाओं का स्त्रोत बताते हुए इनके मुंह में फिर से वेद-वेदान्त का जहर ठूंसते जाते हैं और सिद्ध करते जाते हैं कि बुद्ध महावीर कपिल कणाद कबीर आदि सब इश्वर आत्मा और पुनर्जन्म को मानते थे.

गौर से देखें तो पश्चिमी देशों में प्राचीन शास्त्रों और प्राचीन दर्शन के साथ ऐसी गहरी चालबाजी करने की कोई परंपरा नहीं है. वहां हर दार्शनिक अपनी नई बात लेकर आता है. दयानन्द,अरबिंदो या विवेकानन्द या राधाकृष्णन, गांधी या महाधूर्त ओशो की तरह वे वेद-वेदान्त से समर्थन नहीं मांगते बल्कि पश्चिमी दार्शनिक अपने से पुराने दार्शनिकों को कड़ी टक्कर देते हुए आगे बढ़ते हैं. भारत के ओशो रजनीश और अरबिंदो घोष जैसे पोंगा पंडित इसी काम में लगे रहते हैं कि उनका दर्शन किसी तरह वेद वेदान्त या अन्य प्राचीन शास्त्रों से अनिवार्य रूप से जुड़ जाए.

इस एक विवशता के कारण उनका जोर स्वयं दर्शन या समाज को बदलने पर नहीं होता बल्कि समाज के मनोविज्ञान और उपलब्ध या ज्ञात इतिहास को मनचाहे ढंग से बदलने पर होता है. यही इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है. इसी कारण भारतीय दार्शनिक कितनी भी ऊँची उड़ान भर लें, वे प्राचीन ग्रंथों से अपने लिए समर्थन मांगने की विवशता के कारण समाज की रोजमर्रा की नैतिकता और जीवन की व्यवस्था को बदलने की कोई बात नहीं करते, वहां वे बहुत सावधान रहते हैं.

उधर पश्चिम में कोई भी दर्शन हो वो तुरंत समाज और जीवन का हिस्सा बन जाता है. आधुनिक काल में जन्मा भौतिकवादी दर्शन वहां समाज, शिक्षा, राजनीति, विज्ञान, साहित्य आदि में तुरंत ट्रांसलेट होता है और इस दर्शन को सुरक्षित गर्भ देकर विकसित होने के लिए सामाजिक राजनीतिक वातावरण बनाता है. डार्विन, फ्रायड और मार्क्स के आते ही पश्चिमी दुनिया बदल जाती है, उनके सोचने का ढंग उनकी जीवनशैली, उनकी राजनीति, व्यापार सब बदल जाता है. इधर भारत में कोई भी आ जाए, कुछ नहीं बदलता, एक सनातन पाषाण सी स्थिति है औंधे घड़े पे कितना भी पानी डालो, भरता ही नहीं. भारत में दर्शन सिर्फ खोपड़ी में या शास्त्रों में रहता है. वो समाज की रोजमर्रा की जीवन शैली को बदलने में बिलकुल असमर्थ रहता है.

भारत में दार्शनिक उड़ान एक भांग के नशे जैसी स्थिति है, उस नशे की उड़ान में कल्पनालोक में या शास्त्रार्थ के दौरान आप जमीन आसमान एक कर सकते हैं लेकिन सामाजिक नियम और सामाजिक नैतिकता में रत्ती भर का बदलाव नहीं आने दिया जाता. यहाँ पंडितों के रोजगार को सुरक्षित रखने के लिए कर्मकांडीय नैतिकता का जो जाल बुना गया है वो असल में दार्शनिक नैतिकता के उभार की संभावना की ह्त्या करने के लिए ही बुना गया है. इसीलिये भारत में दर्शन या विचार के क्षेत्र में भी कोई बदलाव हो जाए, लेकिन समाज में मौलिक रूप से कोई बदलाव नहीं होता.

ये बदलाव रोकने के लिए ही भारत में शिक्षा, विवाह, राजनीति, व्यापार आदि को एक लोहे के ढाँचे में बांधा गया है. यही लोहे का ढांचा वर्ण, आश्रम और जाति के नाम से जाना जाता है. पश्चिम में ये ढांचा नहीं था, ये लोहे की दीवारें नहीं थीं. इसलिए वहां के भौतिकवादी दार्शनिकों ने पांच सौ साल में वो कर दिखाया जो भारत में हजारों साल तक नहीं हुआ. जिस तरह से परलोकवादी बाबाओं का बुखार छाया हुआ है उसे देखकर लगता है कि आगे भी होने की कोई उम्मीद नहीं है.

भारतीय समाज के कर्मकांड और इनसे जुड़ी परलोकवादी धारणाएं जब तक चलती रहेंगी भारत में सभ्यता और नैतिकता की संभावना ऐसे ही क्षीण होती रहेंगी.

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संजय जोठे लीड इंडिया फेलो हैं। मूलतः मध्यप्रदेश के निवासी हैं। समाज कार्य में पिछले 15 वर्षों से सक्रिय हैं। ब्रिटेन की ससेक्स यूनिवर्सिटी से अंतर्राष्ट्रीय विकास अध्ययन में परास्नातक हैं और वर्तमान में टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान से पीएचडी कर रहे हैं।

सविंधान नहीं ब्राह्मणों के ग्रंथो को जलाना होगा


जन उदय : आजकल एक नया सगूफा  भगवा आतंकियो ने छोड़ दिया है की   ये लोग सत्ता में सिर्फ सविंधान बदलने के लिए आये है क्योकी  देश की सारी  समस्याओं की जड   सविंधान है .

कमाल की बात यह है की १९४७  से देश के सविंधान जलाने वाले  तिरंगा  झंडा  जलाने वाले  औ देश में  दंगे कराने वाले जातिवाद  के जनक  रक्षक  और पोषक जिन्होंने देश की हर समस्या को जन्म दिया है ये कहते है की देश की समस्या सविंधान की वजह से है . जबकि उसके उल्ट देश की हर हर समस्या सिर्फ इन्ही जैसे लोगो की वजह से है इनके दिमाग की गंदगी , देशद्रोही भावना ने देश की हर समस्या को जन्म दिया है .

आईये  देखते है क्यों  है ये लोग देश के सबसे बड़े दुश्मन  एक उधाह्र्ण  लेते है   कि  एक संसदीय  क्षेत्र में  जहा पर त्रि स्तरीय  फंड  आता  है उस इलाके में स्कूल ,कॉलेज,  बिजली ,सडक  पानी , डिस्पेंसरी , अस्पताल  बनाने में कितना समय  लगेगा ??  आप कहेंगे   पांच साल , दस साल  .. आप हद से हद कहंगे बीस साल “ लेकिन आजादी के सत्तर सालो में यह नहीं हो पाया  , सोचिये क्यों , किसकी वजह  से .. ?? देश की  ८५ % सीट पर बैठा  ब्राह्मण बनिया  यह नहीं बताता  और आरक्षण को दोष देता है  जबकि ८५ % सीट पर बीतने वाला   नेता उच्च अधिकारी  ही   जिम्मेदार होगा न की आरक्षण या दलित 
अपने आपको  हमेशा  योग्यता वाला बताने वाला ब्राह्मण बनिया  का रिकॉर्ड ऐसा है की  हजारो सालो में  आज तक किचन से लेकर आसमान तक कोई चीज नहीं बनाई   गैस , बिजली , बल्ब , फोन , टीवी  , रेल जहाज , हथियार  कुछ भी नहीं .  तो देश का सबसे बड़ा दुश्मन कौन हुआ और क्या इस देश में  सविंधान कैसे जिम्मेदार  हुआ .  यानी एक ऐसी मानसिकता के लोग  जिन्होंने इस देश को सिर्फ लूटा  है और आज की तारीख में देश के  के लोकतंत्र  की ह्या कर ई वी एम् घोटाले के जरिये सत्ता पर काबिज भगवा आतंकी   कह रहे है की सविंधान जिम्मेदार है
देश में कितने कानून है  गरीबो के लिए  अपराधो को रोकने के लिए , बलात्कारो  को रोकने के लिए  तो क्या इनसे अपराध रुके  , नहीं रुके  वो सिर्फ  इसलिए  क्योकि ये देश के कानून  की इज्जत नहीं करते  देश के सविंधान की इज्जत नहीं करते  क्योकि ब्राह्मणवादी   संस्कृति को फैलाने वाले लोग  और इस  संस्कृति में अपराध को  उत्पीडन को महिला उत्पीडन  और हत्याओं को मान्यता  दी गई है और ये लोग इसी संस्कृति  को फैलाते है   तो असल में तो इनके ग्रन्थ और ये लोग ही जिम्मेदार है

 बाबा साहेब ने कहा था सविंधान चाहे जितना मर्जी खराब हो अगर उसका पालन करने वाले सही है तो वो सविंधान बेहतर ही साबित होगा  और सविंधान चाहे जितना मर्जी अच्छा  हो अगर उसके पालन करने वाले  सही नहीं  तो वह सविंधान खराब ही साबित होगा


देश में फ़ैल रहे  गेंगरेप , गोआतंक ,दंगे , लव जिहाद ,  ई वी एम् घोटाले अपराध है और इनको करने वाले  अपराधी . और ये अपराध करने वाले लोग भगवा आतंकी है . और इन अपराधियो  को खत्म करने के लिए इनकी किताबो  को इनकी संस्कृति  को  इस देश से खत्म करना होगा 

दीनदयाल हत्याकांड से बचने को अटल विहारी वाजपेयी ने इन्दिरा गांधी को ‘दुर्गा’ कह कर खुश किया था ... कीर्ति कुमार

दीनदयाल हत्याकांड में अटल विहारी वाजपेयी की भूमिका संदिग्ध थी, मोदी सरकार जांच कराने से क्यों बच रही?
दीनदयाल की हत्या की जांच कराने के बजाए जन्मशती मनाकर किस रहस्य को छुपा रही है मोदी सरकार-रिहाई मंच
जनसंघ अध्यक्ष बलराज मधोक ने दीनदयाल हत्याकांड में अटल बिहारी और नाना देशमुख की भूमिका पर उठाए थे सवाल...

मधोक ने लिखा अटल ने 30, राजेंद्र प्रसाद रोड को व्यभिचार का अड्डा बना दिया है
दीनदयाल का भारतीय राजनीति, समाज और सस्कृति में क्या योगदान था, संघियों के अलावा कोई नहीं जानता
लखनऊ । रिहाई मंच ने कहा है कि दीनदयाल उपाध्याय की जन्मशती पर करोड़ों रूपया खर्च करके जश्न मनाने वाली मोदी सरकार द्वारा अपने इस विचारक की हत्या की जांच पर मौन रहना इस लोकधारणा को पुख्ता करता है कि उनकी हत्या में अटल बिहारी बाजपेयी की भूमिका संदिग्ध थी और इसीलिए मोदी सरकार हत्याकांड की जांच नहीं कराकर अटल बिहारी को बचाना चाहती है।

मंच ने यह भी कहा है कि दीनदयाल उपाध्याय का भारतीय राजनीति, समाज और सस्कृति में क्या योगदान था, इसे पूरे देश में संघियों के अलावा कोई नहीं जानता। मंच ने कहा है कि जनता के पैसे से दीनदयाल उपाध्याय जैसे लोगों को प्रतिष्ठित करने का यह भोंडा प्रयास भाजपा और संघ परिवार के नायकत्व विहीन होने की कुंठा से निपटने का हास्यास्पद नुस्खा है।

रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि सुभाष चंद्र बोस की हत्या की जांच की मांग तो भाजपा करती है लेकिन अपने कथित दाशर्निकनेता दीन दयाल उपाध्याय की 11 फरवरी 1968 को मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर संदेहास्पद स्थिति में हुई हत्या की कभी जांच की मांग नहीं करती।
शाहनवाज आलम ने कहा कि समाज में यह धारणा व्याप्त है कि संघ और भाजपा दीन दयाल हत्याकांड की जांच की मांग इसलिए नहीं करती है कि इसमें खुद अटल बिहारी वाजपेयी और नाना जी देशमुख की भूमिका संदिग्ध थी। जिसका आधार पूर्व जनसंघ अध्यक्ष बलराज मधोक द्वारा अपनी पुस्तक जिंदगी का सफरके तीसरे खंड में दीनदयाल हत्या कांड के संदर्भ में किए गए रहस्योद्घाटन हैं।


गौरतलब है कि पुस्तक में मधोक ने बताया है कि उन्हें अपने सूत्रों से पता चला था कि हत्या में जनसंघ के ही कुछ वरिष्ठ नेता शामिल थे और ये पार्टी पर नियंत्रण के लिए चल रहे आंतरिक संघर्ष का नतीजा था। पुस्तक में उन्होंने यह भी रहस्योद्घाटन किया था कि तत्कालीन सरकार द्वारा इस हत्या कांड की की जारी जांच को अटल बिहारी बाजपेयी और नाना जी देषमुख ने बाधित किया और उसे ठंडे दिमाग से किए गए हत्या के बजाए एक दुखद दुघर्टना के बतौर प्रचारित किया।

मधोक ने अपने दावे के समर्थन में इस तथ्य को भी पुस्तक में दर्ज किया है कि 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तब सुब्रह्मणियम स्वामी ने तत्कालीन गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह से दुबारा जांच की मांग की लेकिन जनसंघ के मंत्रियों अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने इस प्रयास को बाधित कर दिया।
रिहाई मंच प्रवक्ता ने कहा कि जनमानस में एक धारणा यह भी है कि दीनदयाल की हत्या के पीछे एक कारण अवैध सम्बंधों से भी जुड़ा था जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी और नानाजी देशमुख की भूमिका मास्टरमाइंड की थी और इस धारणा का आधार भी मधोक की पुस्तक में उजागर किए गए तथ्य ही हैं।

गौरतलब है कि अपनी पुस्तक के तीसरे खंड के पृष्ठ संख्या 25 पर मधोक ने लिखा है ‘‘मुझे अटल बिहारी और नाना देशमुख की चारित्रिक दुर्बलताओं का ज्ञान हो चुका था। जगदीश प्रसाद माथुर ने मुझसे शिकायत की थी कि अटल (बिहारी वाजपेयी) ने 30, राजेंद्र प्रसाद रोड को व्यभिचार का अड्डा बना दिया है। वहां नित्य नई-नई लड़कियां आती हैं। अब सर से पानी गुजरने लगा है। जनसंघ के वरिष्ठ नेता के नाते मैंने इस बात को नोटिस में लाने की हिम्मत की। मुझे अटल के चरित्र के बारे में कुछ जानकारी थी। पर बात इतनी बिगड़ चुकी है, ये मैं नहीं मानता था। मैंने अटल को अपने निवास पर बुलाया और बंद कमरे में उससे जगदीश माथुर द्वारा कही गई बातों के विषय में पूछा। उसने जो सफाई दी बात साफ हो गई। तब मैंने अटल (बिहारी वाजपेयी) को सुझाव दिया कि वह विवाह कर ले अन्यथा वह बदनाम तो होगा ही जनसंघ की छवि को भी धक्का लगेगा।
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मंच के नेता अनिल यादव ने दावा किया है कि इंदिरा गांधी सरकार में हुई दीनदयाल हत्याकांड की जांच में सीबीआई और जस्टिस चंद्रचूड़ आयोग, दोनों ने ही अटल बिहारी और नाना देषमुख की भूमिका को संदिग्ध पाया था और उस रिपोर्ट को जल्दी ही इंदिरा गांधी सरकार सार्वजनिक करने वाली थी। जिसे रोकने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने बांग्लादेश के निमार्ण में निभाई गई भूमिका के लिए इंदिरा गांधी को सदन में दुर्गाकह कर सम्बोधित कर दिया। जिससे चापलूसों को पसंद करने वाली इंदिरा गांधी ने खुश होकर रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया।

अनिल यादव ने कहा कि अगर इंदिरा गांधी ने दीनदयाल उपाध्याय के हत्यारों को इंसाफ देने का साह
स दिखाया होता तो अटल बिहारी वाजपेयी और नाना देशमुख को इस जघन्य हत्याकांड में फांसी या उम्र कैद की सजा हो गई होती।