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Friday 18 March 2016

वेदों को गंदगी देख कर आप भी करने लगेंगे इनसे नफरत

अथर्ववेद - अश्लीलता के कुछ और नमूने वेदों में किस प्रकार अश्लीलता, जन्गी बातों और जादू-टोने को परोसा गया है.
धर्म-युद्ध: वेदों को गंदगी देख कर आप भी करने लगेंगे इनसे नफरत
हिन्दुओं के अन्य धर्मग्रंथों रामायण, महाभारत और गीता की भांति वेद भी लडाइयों के विवरणों से भरे पड़े है. उनमें युद्धों की कहानियां, युद्धों के बारे में दांवपेच,आदेश और प्रर्थनाएं इतनी हैं कि उन तमाम को एक जगह संग्रह करना यदि असंभव नहीं तो कठिन जरुर है. वेदों को ध्यानपूर्वक पढने से यह महसूस होने लगता है की वेद जंगी किताबें है अन्यथा कुछ नहीं। इस सम्बन्ध में कुछ उदाहरण यहाँ वेदों से दिए जाते है ....ज़रा देखिये
(1) हे शत्रु नाशक इन्द्र! तुम्हारे आश्रय में रहने से शत्रु और मित्र सही हमको ऐश्वर्य्दान बताते हैं || यज्ञ को शोभित करने वाले, आनंदप्रद, प्रसन्नतादायक तथा यज्ञ को शोभित करने वाले सोम को इन्द्र के लिए अर्पित करो |१७| हे सैंकड़ों यज्ञ वाले इन्द्र ! इस सोम पान से बलिष्ठ हुए तुम दैत्यों के नाशक हुए. इसी के बल से तुम युद्धों में सेनाओं की रक्षा करते हो || हे शत्कर्मा इन्द्र ! युद्धों में बल प्रदान करने वाले तुम्हें हम ऐश्वर्य के निमित्त हविश्यांत भेंट करते हैं || धन-रक्षक,दू:खों को दूर करने वाले, यग्य करने वालों से प्रेम करने वाले इन्द्र की स्तुतियाँ गाओ. (ऋग्वेद १.२.४)
(२) हे प्रचंड योद्धा इन्द्र! तू सहस्त्रों प्रकार के भीषण युद्धों में अपने रक्षा-साधनों द्वारा हमारी रक्षा कर || हमारे साथियों की रक्षा के लिए वज्र धारण करता है, वह इन्द्र हमें धन अथवा बहुत से ऐश्वर्य के निमित्त प्राप्त हो.(ऋग्वेद १.३.७)
(३) हे संग्राम में आगे बढ़ने वाले और युद्ध करने वाले इन्द्र और पर्वत! तुम उसी शत्रु को अपने वज्र रूप तीक्षण आयुध से हिंसित करो जो शत्रु सेना लेकर हमसे संग्राम करना चाहे. हे वीर इन्द्र ! जब तुम्हारा वज्र अत्यंत गहरे जल से दूर रहते हुए शत्रु की इच्छा करें, तब वह उसे कर ले. हे अग्ने, वायु और सूर्य ! तुम्हारी कृपा प्राप्त होने पर हम श्रेष्ठ संतान वाले वीर पुत्रादि से युक्त हों और श्रेष्ठ संपत्ति को पाकर धनवान कहावें.(यजुर्वेद १.८)



(४) हे अग्ने तुम शत्रु-सैन्य हराओ. शत्रुओं को चीर डालो तुम किसी द्वारा रोके नहीं जा सकते. तुम शत्रुओं का तिरस्कार कर इस अनुष्ठान करने वाले यजमान को तेज प्रदान करो |३७| यजुर्वेद १.९)
(५) हे व्याधि! तू शत्रुओं की सेनाओं को कष्ट देने वाली और उनके चित्त को मोह लेने वाली है. तू उनके शरीरों को साथ लेती हुई हमसे अन्यत्र चली जा. तू सब और से शत्रुओं के हृदयों को शोक-संतप्त कर. हमारे शत्रु प्रगाढ़ अन्धकार में फंसे |४४|
(६)हे बाण रूप ब्राहमण ! तुम मन्त्रों द्वारा तीक्ष्ण किये हुए हो. हमारे द्वारा छोड़े जाने पर तुम शत्रु सेनाओं पर एक साथ गिरो और उनके शरीरों में घुस कर किसी को भी जीवित मत रहने दो.(४५) (यजुर्वेद १.१७)
(यहाँ सोचने वाली बात है कि जब पुरोहितों की एक आवाज पर सब कुछ हो सकता है तो फिर हमें चाइना और पाक से डरने की जरुरत क्या है इन पुरोहितों को बोर्डर पर ले जाकर खड़ा कर देना चाहिए उग्रवादियों और नक्सलियों के पीछे इन पुरोहितों को लगा देना चाहिए फिर क्या जरुरत है इतनी लम्बी चौड़ी फ़ोर्स खड़ी करने की और क्या जरुरत है मिसाइलें बनाने की)
अब जिक्र करते है अश्लीलता का :-वेदों में कैसी-कैसी अश्लील बातें भरी पड़ी है,इसके कुछ नमूने आगे प्रस्तुत किये जाते हैं (१) यां त्वा .........शेपहर्श्नीम || (अथर्व वेद ४-४-१) अर्थ : हे जड़ी-बूटी, मैं तुम्हें खोदता हूँ. तुम मेरे लिंग को उसी प्रकार उतेजित करो जिस प्रकार तुम ने नपुंसक वरुण के लिंग को उत्तेजित किया था.
(२) अद्द्यागने............................पसा:|| (अथर्व वेद ४-४-६) अर्थ: हे अग्नि देव, हे सविता, हे सरस्वती देवी, तुम इस आदमी के लिंग को इस तरह तान दो जैसे धनुष की डोरी तनी रहती है
(३) अश्वस्या............................तनुवशिन || (अथर्व वेद ४-४-८) अर्थ: हे देवताओं, इस आदमी के लिंग में घोड़े, घोड़े के युवा बच्चे, बकरे, बैल और मेढ़े के लिंग के सामान शक्ति दो
(४) आहं तनोमि ते पासो अधि ज्यामिव धनवानी, क्रमस्वर्श इव रोहितमावग्लायता (अथर्व वेद ६-१०१-३) मैं तुम्हारे लिंग को धनुष की डोरी के समान तानता हूँ ताकि तुम स्त्रियों में प्रचंड विहार कर सको.
(५) तां पूष...........................शेष:|| (अथर्व वेद १४-२-३८) अर्थ: हे पूषा, इस कल्याणी औरत को प्रेरित करो ताकि वह अपनी जंघाओं को फैलाए और हम उनमें लिंग से प्रहार करें.
(६) एयमगन....................सहागमम || (अथर्व वेद २-३०-५) अर्थ: इस औरत को पति की लालसा है और मुझे पत्नी की लालसा है. मैं इसके साथ कामुक घोड़े की तरह मैथुन करने के लिए यहाँ आया हूँ.
(७) वित्तौ.............................गूहसि (अथर्व वेद २०/१३३) अर्थात: हे लड़की, तुम्हारे स्तन विकसित हो गए है. अब तुम छोटी नहीं हो, जैसे कि तुम अपने आप को समझती हो। इन स्तनों को पुरुष मसलते हैं। तुम्हारी माँ ने अपने स्तन पुरुषों से नहीं मसलवाये थे, अत: वे ढीले पड़ गए है। क्या तू ऐसे बाज नहीं आएगी? तुम चाहो तो बैठ सकती हो, चाहो तो लेट सकती हो.

(अब आप ही इस अश्लीलता के विषय में अपना मत रखो और ये किन हालातों में संवाद हुए हैं। ये तो बुद्धिमानी ही इसे पूरा कर सकते है ये तो ठीक ऐसा है जैसे की इसका लिखने वाला नपुंसक हो या फिर शारीरिक तौर पर कमजोर होगा तभी उसने अपने को तैयार करने के लिए या फिर अपने को एनर्जेटिक महसूस करने के लिए किया होगा या फिर किसी औरत ने पुरुष की मर्दानगी को ललकारा होगा) तब जाकर इस प्रकार की गुहार लगाईं हो.

जानिये क्यों जलाया जाना चाहिए मनुसिमृति को

भारत ही नहीं पूरा दुनिया में भारत के प्राचीन धार्मिक ग्रंथो की विवेचना  होने लगी है  खुद  संघ के  विधार्थी परिषद्  ने इसको जे एन यु में जलाया  , जानिये क्यों  जला या 

१- पुत्री,पत्नी,माता या कन्या,युवा,व्रुद्धा किसी भी स्वरुप में नारी स्वतंत्र नही होनी चाहिए. -मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-२ से ६ तक.

...
२- पति पत्नी को छोड सकता हैं, सुद(गिरवी) पर रख सकता हैं, बेच सकता हैं, लेकिन स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नही हैं. किसी भी स्थिती में, विवाह के बाद, पत्नी सदैव पत्नी ही रहती हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४५

३- संपति और मिलकियत के अधिकार और दावो के लिए, शूद्र की स्त्रिया भी "दास" हैं, स्त्री को संपति रखने का अधिकार नही हैं, स्त्री की संपति का मलिक उसका पति,पूत्र, या पिता हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४१६.
४- ढोर, गंवार, शूद्र और नारी, ये सब ताडन के अधिकारी हैं, यानी नारी को ढोर की तरह मार सकते हैं....तुलसी दास पर भी इसका प्रभाव दिखने को मिलता हैं, वह लिखते हैं-"ढोर,चमार और नारी, ताडन के अधिकारी."
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मनुस्मुर्तिःअध्याय-८ श्लोक-२९९

५- असत्य जिस तरह अपवित्र हैं, उसी भांति स्त्रियां भी अपवित्र हैं, यानी पढने का, पढाने का, वेद-मंत्र बोलने का या उपनयन का स्त्रियो को अधिकार नही हैं.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-२ श्लोक-६६ और अध्याय-९ श्लोक-१८.
६- स्त्रियां नर्कगामीनी होने के कारण वह यग्यकार्य या दैनिक अग्निहोत्र भी नही कर सकती.(इसी लिए कहा जाता है-"नारी नर्क का द्वार") - मनुस्मुर्तिःअध्याय-११ श्लोक-३६ और ३७ .

७- यग्यकार्य करने वाली या वेद मंत्र बोलने वाली स्त्रियो से किसी ब्राह्मण भी ने भोजन नही लेना चाहिए, स्त्रियो ने किए हुए सभी यग्य कार्य अशुभ होने से देवो को स्वीकार्य नही हैं. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-४ श्लोक-२०५ और २०६ .
८- - मनुस्मुर्ति के मुताबिक तो , स्त्री पुरुष को मोहित करने वाली - अध्याय-२ श्लोक-२१४ .
९ - स्त्री पुरुष को दास बनाकर पदभ्रष्ट करने वाली हैं. अध्याय-२ श्लोक-२१४

१० - स्त्री एकांत का दुरुप्योग करने वाली. अध्याय-२ श्लोक-२१५.
११. - स्त्री संभोग के लिए उमर या कुरुपताको नही देखती. अध्याय-९ श्लोक-११४.
१२- स्त्री चंचल और हदयहीन,पति की ओर निष्ठारहित होती हैं. अध्याय-२ श्लोक-११५.
१३.- केवल शैया, आभुषण और वस्त्रो को ही प्रेम करने वाली, वासनायुक्त, बेईमान, इर्षाखोर,दुराचारी हैं . अध्याय-९ श्लोक-१७.
१४.- सुखी संसार के लिए स्त्रीओ को कैसे रहना चाहिए? इस प्रश्न के उतर में मनु कहते हैं-
(
१). स्त्रीओ को जीवन भर पति की आग्या का पालन करना चाहिए. - मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-११५.
(
२). पति सदाचारहीन हो,अन्य स्त्रीओ में आसक्त हो, दुर्गुणो से भरा हुआ हो, नंपुसंक हो, जैसा भी हो फ़िर भी स्त्री को पतिव्रता बनकर उसे देव की तरह पूजना चाहिए.- मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-१५४.
जो इस प्रकार के उपर के ये प्रावधान वाले पाशविक रीति-नीति के विधान वाले पोस्टर क्यो नही छपवाये?
(
१) वर्णानुसार करने के कार्यः -
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महातेजस्वी ब्रह्मा ने स्रुष्टी की रचना के लिए ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र को भिन्न-भिन्न कर्म करने को तै किया हैं -



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पढ्ना,पढाना,यग्य करना-कराना,दान लेना यह सब ब्राह्मण को कर्म करना हैं. अध्यायः१:श्लोक:८७
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प्रजा रक्षण , दान देना, यग्य करना, पढ्ना...यह सब क्षत्रिय को करने के कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:८९
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पशु-पालन , दान देना,यग्य करना, पढ्ना,सुद(ब्याज) लेना यह वैश्य को करने का कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:९०.
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द्वेष-भावना रहित, आंनदित होकर उपर्युक्त तीनो-वर्गो की नि:स्वार्थ सेवा करना, यह शूद्र का कर्म हैं. - अध्यायः१:श्लोक:९१.
(
२) प्रत्येक वर्ण की व्यक्तिओके नाम कैसे हो?:-
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ब्राह्मण का नाम मंगलसूचक - उदा. शर्मा या शंकर
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क्षत्रिय का नाम शक्ति सूचक - उदा. सिंह
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वैश्य का नाम धनवाचक पुष्टियुक्त - उदा. शाह
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शूद्र का नाम निंदित या दास शब्द युक्त - उदा. मणिदास,देवीदास
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अध्यायः२:श्लोक:३१-३२.
(
३) आचमन के लिए लेनेवाला जल:-
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ब्राह्मण को ह्रदय तक पहुचे उतना.
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क्षत्रिय को कंठ तक पहुचे उतना.
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वैश्य को मुहं में फ़ैले उतना.
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शूद्र को होठ भीग जाये उतना, आचमन लेना चाहिए.
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अध्यायः२:श्लोक:६२.
(
४) व्यक्ति सामने मिले तो क्या पूछे?:-
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ब्राह्मण को कुशल विषयक पूछे.
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क्षत्रिय को स्वाश्थ्य विषयक पूछे.
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वैश्य को क्षेम विषयक पूछे.
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शूद्र को आरोग्य विषयक पूछे.
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अध्यायः२:श्लोक:१२७.
(
५) वर्ण की श्रेष्ठा का अंकन :-
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ब्राह्मण को विद्या से.
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क्षत्रिय को बल से.
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वैश्य को धन से.
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शूद्र को जन्म से ही श्रेष्ठ मानना.(यानी वह जन्म से ही शूद्र हैं)
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अध्यायः२:श्लोक:१५५.
(
६) विवाह के लिए कन्या का चयन:-
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ब्राह्मण सभी चार वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
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क्षत्रिय - ब्राह्मण कन्या को छोडकर सभी तीनो वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
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वैश्य - वैश्य की और शूद्र की ऎसे दो वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं.
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शूद्र को शूद्र वर्ण की ही कन्याये विवाह के लिए पंसद कर सकता हैं.- (अध्यायः३:श्लोक:१३) यानी शूद्र को ही वर्ण से बाहर अन्य वर्ण की कन्या से विवाह नही कर सकता.
(
७) अतिथि विषयक:-
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ब्राह्मण के घर केवल ब्राह्मण ही अतिथि गीना जाता हैं,(और वर्ण की व्यक्ति नही)
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क्षत्रिय के घर ब्राह्मण और क्षत्रिय ही ऎसे दो ही अतिथि गीने जाते थे.
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वैश्य के घर ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्य तीनो द्विज अतिथि हो सकते हैं, लेकिन ...
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शूद्र के घर केवल शूद्र ही अतिथि कहेलवाता हैं - (अध्यायः३:श्लोक:११०) और कोइ वर्ण का आ नही सकता...
(
८) पके हुए अन्न का स्वरुप:-
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ब्राह्मण के घर का अन्न अम्रुतमय.
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क्षत्रिय के घर का अन्न पय(दुग्ध) रुप.
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वैश्य के घर का अन्न जो है यानी अन्नरुप में.
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शूद्र के घर का अन्न रक्तस्वरुप हैं यानी वह खाने योग्य ही नही हैं.
(
अध्यायः४:श्लोक:१४)
(
९) शब को कौन से द्वार से ले जाए? :-
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ब्राह्मण के शव को नगर के पूर्व द्वार से ले जाए.
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क्षत्रिय के शव को नगर के उतर द्वार से ले जाए.
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वैश्य के शव को पश्र्चिम द्वार से ले जाए.
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शूद्र के शव को दक्षिण द्वार से ले जाए.
(
अध्यायः५:श्लोक:९२)
(
१०) किस के सौगंध लेने चाहिए?:-
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ब्राह्मण को सत्य के.
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क्षत्रिय वाहन के.
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वैश्य को गाय, व्यापार या सुवर्ण के.
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शूद्र को अपने पापो के सोगन्ध दिलवाने चाहिए.
(
अध्यायः८:श्लोक:११३)
(
११) महिलाओ के साथ गैरकानूनी संभोग करने हेतू:-
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ब्राह्मण अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो सिर पे मुंडन करे.
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क्षत्रिय अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो १००० भी दंड करे.
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वैश्य अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये और १ साल के लिए कैद और बाद में देश निष्कासित.
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शूद्र अगर अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये , उसका लिंग काट लिआ जाये.
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शूद्र अगर द्विज-जाती के साथ अवैधिक(गैरकानूनी) संभोग करे तो उसका एक अंग काटके उसकी हत्या कर दे.
(
अध्यायः८:श्लोक:३७४,३७५,३७९)
(
१२) हत्या के अपराध में कोन सी कार्यवाही हो?:-
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ब्राह्मण की हत्या यानी ब्रह्महत्या महापाप.(ब्रह्महत्या करने वालो को उसके पाप से कभी मुक्ति नही मिलती)
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क्षत्रिय की हत्या करने से ब्रह्महत्या का चौथे हिस्से का पाप लगता हैं.
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वैश्य की हत्या करने से ब्रह्महत्या का आठ्वे हिस्से का पाप लगता हैं.
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शूद्र की हत्या करने से ब्रह्महत्या का सोलह्वे हिस्से का पाप लगता हैं.(यानी शूद्र की जिन्द्गी बहोत सस्ती हैं)
- (
अध्यायः११:श्लोक:१२६)