जन उदय : अगर हम भारत के इतिहास की बात करते है तो ब्राह्मणों ने बड़ी ही चतुराई से इतिहास को तीन
भागो में बाँट दिया एक प्राचीन काल , यानी यहाँ के मूलनिवासी नहीं वह काल जिसमे ब्राह्मण सबसे उपर है ,भारत
विश्व गुरु है , भारत सोने की चिड़िया है
यानी भारत पूरी तरह से एक महान देश है ( यह बात सनद रहे की इस काल में केवल अशोक जिसने देश को चारो
तरफ फैलाया के अलावा भारत नाम भी देश का
नहीं था , )
इसके बाद आता है वह काल जिसमे मुस्लिम शासक आक्रमणकारी के रूप में
भारत आये और यही रह गए यानी यहाँ पर बस गए
, यह काल अंग्रेजो के आने तक मध्यकाल कहलाता है इसमें ब्राह्मणों ने प्रमाणिक इतिहासको दबा कर मुस्लिम शासको को निर्दयी , क्रूर , और ऐसे शासक के रूप में पेश किया आम जनता के सामने
कि वो भारत के लोगो के विरोधी थे , इन्होने जबदस्ती देश में इस्लाम फैलाया , आदि आदि ये बात और है की ये ब्राह्मण और अन्य सवर्ण हमेशा मुस्लिम राजाओं के
साथ थे उनको शासन करने में मदद की उनको हमले के लिए भारत बुलाया और इनके दरबारों में नौकरी करते रहे , और यही
नहीं बाकायदा मुस्लिम शासको से अपने
रिश्ते गहरे करने के लिए अपनी बहन बेटियो
की शादी मुस्लिम राजाओं से की . यही नहीं
मुस्लिम राजाओं द्वारा लगाए गए जाजिया कर
भी ब्राह्मणों के लिए माफ़
था क्योकि इन्होने यह प्रमाणित किया की ये लोग भी मुस्लिम राजाओं की तरह विदेशी है सो इस्ल्मामिक
कानून के हिसाब से इन पर कर नहीं लगना चाहिए
इसके बाद आता है अंग्रेजो का काल जिन्होंने १८५७ तक आते आते पुरे भारत
पर कब्जा कर लिया और १ जनवरी १८१८
में भीमा कोरेगांव की लड़ाई
ब्राह्मणों के लिए निर्णायक साबित हुई जिसमे सिर्फ पांच सो म्हारो ने पेशवा ब्राह्मणों
की २८००० की सेना को ध्वस्त
क्र दिया और ब्रह्मणों को दूम दबा कर भागना पड़ा
इस लड़ाई की तरफ हम बाद में आयंगे
उससे पहले हम भारत के तथाकथित स्वन्त्रता
संग्राम की तरफ देखते है जिसमे कई
उतार चड़ाव आये जिसमे बाबा साहेब ने अपने लिए यानी मूलनिवासियो के लिए कम्युनल
अवार्ड की प्राप्ति की और गांधी के पाखंड
के पूना पैक्ट हुआ जिसमे मूलनिवासियो
के लिए आरक्षण का फैसला हुआ . भारत के इतिहास के इस फेस में सबसे बड़ी बात की
ब्राह्मण बनिया हमेशा अंग्रेजो का समर्थक
बना रहा क्योकि १९४१ की जनगणना में भारत
की आबादी ४० करोड़ थी और अंग्रेजो की संख्या
सिर्फ और सिर्फ ६५०००
तो ६५००० लोग चालीस करोड़ के देश को तो चला नहीं सकते तो शासन करने के लिए ब्राह्मण बनिए ही अंग्रेजो
की मदद कर रहे थे ,ब्राह्मण
जज थे , कलेक्टर थे , पोलिस में थे फौज में थे
ये देश चला रहे थे खैर दुसरे विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजो की हालत खराब हो रही थी और पहले विश्व युद्ध और कम्युनल अवार्ड के बाद
से ही ब्राह्मणों ने दो राष्ट्र की थ्योरी को जन्म दे दिया था जिसके द्वारा भारत और
पाकिस्तान नाम के दो देश बने यह बात भी
सनद रहे की भारत नाम १९४७ के बाद ही
आया इससे पहले इस देश का नाम इंडिया
था
खैर १९४७ के बाद पुरे देश के युवाओं में विशेषकर मूलनिवासियो में काफी उत्साह था कि अब सब कुछ
ठीक होगा और लेकिन ब्राह्मण अपनी गन्दी और कुत्सित मानसिकता से बाज नहीं आये और
इन्होने इस देश को कभी देश बन्ने ही
नहीं दिया , इनकी हमेशा यही कोश्सी रही की कैसे गरीब से यानी मूलनिवासी से उसके
मूह का निवाला छिना जाए कैसे उनको शिक्षा से दूर रखा जाए कैसे
स्वास्थ स्वच्छता रोजगार इनको कभी न मिले
एक उधाहरण हम लेते है “”
किसी भी संसदीय क्षेत्र में , स्कूल , कॉलेज ,
डिस्पेंसरी , बिजली , सड़क बनाने में कितना
समय लगता है जबकि आपके पास फण्ड
चारो तरफ से आता है ... तो आप ज़रा
सोचंगे और कहंगे हद से हद बीस साल “
देखिये बीस साल तो क्या यहाँ पर सत्तर साल हो चुके है और आधे से ज्यादा
देश अँधेरे में है अशिक्षित है ,
बीमार है कुपोषित है ७९
% बच्चे कुपोषित है ५२
% लोग निरक्षर है , मानव विकास में आज हम
नाइजीरिया जैसे देश से भी पिच्छे
है , हमेशा पाकिस्तान को कोसने से से क्या
होगा की वो आज भी हम पाकिस्तान से पीछे है , दुनिया के सबसे बड़े और महान २००
विश्वविद्यालय में भारत का स्थान कही नहीं
है . मानवधिकार हनन में भारत सबसे आगे है
हमेशा आरक्षण को कोसने वाले
ब्राह्मण हमेशा मेरिट की बात करते है लेकिन रेल , जहाज फोन , टीवी , कार स्कूटर
, बिजली , पंखा राकेट हर चीज विदेशी इस्तेमाल करते है , इनके डॉक्टर , इंजिनियर एक नम्बर के नक्कारे , जो किडनी चोरी , भ्रूण
हत्या , गलत दवाई देने में सबसे आगे है लेकिन शोर योग्यता का मचाते है , इसके अलावा ,
दंगे फसाद , गोआतंक .मंदिर मस्जिद
जातिवाद इन सबसे इन्होने देश को बाँट ही दिया
खैर अभी हाल ही में भीमा
कोरेगांव में आर एस एस जो की एक
ब्राह्मणवादी आतंकवादी संघठन है इसके लोगो ने वहा आये औरतो और बच्चो के एक
झुण्ड पर पत्थराव करवाया चलिए
साथ के साथ यह भी जान लेते है आखिर
ब्राह्मणों को इस समारोह से क्यों
समस्या थी क्या ऐसी कोई बात थी जिससे
ब्राह्मणों का सर हमेशा के लिए झुके
?? जी
हाँ ऐसी ही कुछ बात थी चलिए जानते है
सच
छत्रपति शिवाजी के जेष्ठ पुत्र छत्रपति संभाजी
महाराज थे । शिवाजी महाराज के निधन के बाद 1680 में उन्होंने ही गद्दी संभाली थी।
छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की तरह ही इस बार भी पूना के ब्राह्मण
संभाजी महाराज के राज्याभिषेक से खुश नही थे ।
छत्रपति संभाजी महाराज और मुगलों में कई बार
युद्ध हुए , किन्तु एक वक्त संभाजी के साले गणोजी शिर्के और
मनुवादी ब्राह्मणों के धोखेबाजी/ दगाबाजी से छत्रपति संभाजी महाराज को मुकरब खां
द्वारा बन्दी बनाकर औरंगजेब के समक्ष पेश किया गया ।
औरंगजेब के मन की मुराद पूरी हो गई . संभाजी
महाराज को सजा देने के वक्त भी ब्राम्हण पंडित की मौजूदगी में मनुस्मृति के अनुसार
सजा दी गई .
औरंगजेब ने 11 मार्च 1689 को संभाजी की 31वर्ष
की आयु में वीभत्स रूप से हत्या कर उसके शरीर के टुकड़े टुकड़े कर भीमा_कोरेगांव
से पास वाले वडू गाँव में फिकवा दिये और यह फरमान जारी कर दिया कि कोई भी शख्स
संभाजी के शरीर के टुकड़ों को उठाकर अंतिम संस्कार करेगा तो उसके भी टुकड़े टुकड़े कर
दिए जाएंगे।
संभाजी महाराज के विभत्स किये अंगों को उठाने
की किसी की भी हिम्मत नही हुई। किन्तु उसी गाँव मे रहने वाले #गोविंद
#गोपाल_गायकवाड़ महार वह शख्स है जिसने खुद के मौत की
परवाह न कर छत्रपति संभाजी महाराज के यत्र तंत्र फैले शरीर के टुकड़ों को एकत्रित
कर सिलाई किया , और ससम्मान छ्त्रपति संभाजी महाराज की
अंत्येष्टि की रस्म पूर्ण की ।
इसी कारण गोविंद महार औऱ उनके परिवार के सभी 16
सदस्यों को मार दिया गया, ऐसे वीर गोविन्द महार की समाधि आज भी
वडू गांव के महार बस्ती में संभाजी महाराज के समाधि के पास मौजूद है ।
अब भीमा कोरेगांव की सच्ची घटना यह है कि
छ्त्रपति शिवाजी महाराज के साथ ही, उनके वंशजों के दुश्मन, ब्राह्मण
पेशवा जिन्होंने शिवाजी को राजा मानने से इंकार कर दिया था , शिवाजी
के वंशजो से धोखेबाज़ी से राजपाठ हथियाकर खुद 1713 में राजा बन बैठे।
1 जनवरी 18018 को ब्राह्मणी पेशवाओं के 28000
सैनिक और महार रेजिमेंट के 500 सैनिकों के मध्य भीषण युद्ध हुआ जिसमें ब्राह्मणी
पेशवाओं की पराजय हुई । पेशवाओं की इसी पराजय का जश्न मनाने 1 जनवरी को प्रतिवर्ष
भीमा कोरेगांव में लाखों की तादात में बहुजन समाज (Sc,St,Obc) के
लोग शौर्य दिवस मनाने और श्रद्दांजलि देने आते है ।
इस वर्ष 2018 में पेशवाओं औऱ महारो के बीच हुये
युद्ध को 200 वर्ष पूर्ण हुए है।
28 दिसंबर 2017 को वडू गांव में गोविन्द महार
की समाधि के पास की सड़क पर उनके वंशजो ने एक दिशा निर्देशक बोर्ड लगाया था ताकि
भिमा कोरेगांव में आने वाले बहुजन समाज के लोग वडू गांव में आते वक्त उन्हें
गोविन्द गोपाल महार की समाधि के बारे में भी पता चले सके ।
किन्तु 29 दिसंबर 2017 को सुबह 10:30 बजे वडू
गांव के सरपंच, ग्राम पंचायत के सदस्य, पुलिस पाटिल औऱ
गांव में रहने वाले लगभग 500 से 700 लोगो ने मिलकर गोविन्द गोपाल महार की समाधि के
पास लगाया हुआ दिशानिर्देशक बोर्ड तथा गोविन्द महार की समाधि का छत तोड़ दिया,
इसके बाद गोविन्द महार के वंशजो ने समाधि तोड़ने
वालों पर FIR दर्ज किया , साथ ही
एट्रोसिटी एक्ट के तहत मामला दर्ज होने की खबर भी आई, इसके बाद 30
दिसंबर को भीमा कोरेगांव की ग्रामपंचायत में प्रस्ताव पारित किया गया कि 1 जनवरी
को भीमा कोरेगांव पूरी तरह से बंद रहेगा, ताकि भीमा कोरेगांव में आने वाले लाखों
बहुजन लोगो को दिक्कते /असुविधा हो ।
इसके बाद योजनाबद्ध तरीके से 1 जनवरी को भीमा
कोरेगांव बंद रखा गया, 1 जनवरी को जब सुबह लगभग 12:00 बजे लोग
शांतिप्रिय तरीके से अहमदनगर की औऱ से शौर्य स्तंभ की औऱ जा रहे थे तब भीमा नदी के
पास कोरेगांव में कुछ लोगोंने स्तंभ की और जाने वाले लोगो पर बिल्डिंग के ऊपर से
पत्थर फेकना शुरू कर दिया , साथ ही कुछ लोग वहा पर आने वाले लोगो
की गाड़ियां तोड़ने लगे और गाड़ियों को जलाने लगे, इस तरह से ये आग
धीरे धीरे बढ़ती चली गई, पत्थर बाजी बढ़ने लगी आगजनी बढ़ती गई और शौर्य
स्तंभ की और जाने वाले लोगो के साथ मारपीट भी होती रही ।
खैर
ये तो एक ही सच है अगर
ब्राह्मणों का इतिहास सही ढंग से देख लिया जाए तो पता चल जाता है की ये लोग देश के सबसे बड़े
गद्दार और देशद्रोही है जो अपने फायदे के लिए कही भी जा सकते है और इन्होने इस तरह के आतंक देशभक्ति के नाम पर
ही फैलाए हुए है
अब दरसल
मुख्य मुद्दा यहाँ आता है जो
यह है की इस घटना के बाद भारत के
ब्राह्मणवादी मीडिया ने भीमा
कोरेगांव की घटना को दलित यानी
मूलनिवासी और हिन्दू
कह कर संबोधित किया हलांकि
इसमें ब्राह्मणों की यह एक
राजनैतिक चाल है जिससे वो दलितों वुनकी नजर में एस सी और एस टी है जिनकी संख्या
लगभग ३० % और इनके साथ
ओ बी सी को मिला कर यह संख्या ६३
% है और अगर इसमें मुस्लिम को भी मिलाया
जाए तो ये संख्या कुल मिला कर ८९ % हो जाएगी
और इस विभाजन से एक बार कम्युनल अवार्ड का मुद्दा उठ सकता है
जो जो उठ गया है कम्युनल अवार्ड मतलब मूल्निआसिओ को प्रथक निर्वाचन और हो सकता है की
इस प्रथक निर्वाचन में ब्राह्मण ओ बी
सी और मुस्लिम को न काउंट करे लेकिन ये सभी जातिया ब्राह्मण के चरित्र को अच्छी
तरह जानते है और ये भी जानते है की
इस देश में सबसे शातिर कौम ब्राह्मणों की है जिसने उन्हें आरक्षण का विरोध करना
सिखाया और ये लोग ये नहीं समझ पाए की वो
खुद अपना ही गला कट रहे है यानी सबको आरक्षण के खिलाफ ब्राह्मण भडकता रहा और सबका हिस्सा खुद डकार जाता
है . और अब तैश में ब्राह्मण यह कदम उठा चुका है यानी इसके पास अब मुस्लिम से लड़ने के लिए शुद्र
/ दलित मूलनिवासी नाम के मुर्ख नहीं होंगे
इनके पास ओ बी सी नहीं होगा और जाहिर तौर पर मुस्लिम
भी नहीं होगा
तो क्या ब्राह्मण जिसकी संख्या ३ % और अगर बनिया राजपूत इनके साथ मिल जाए तो लगभग १४ %
इस देश के बाकी नागरिको को जानवर
की तरह इस्तेमाल कर सकते है ?? और अगर शन्ति से भी हम इस देश मूलनिवासी अपना हक
मांगे तो क्या इस देश का विभाजन दुबारा होगा ?? ऐसा
नहीं होना चाहिए लेकिन ऐसा लगता है
जिस तरह नेहरु यानी कांग्रेस ने यानी ब्राह्मणों ने अपने निजी स्वार्थ के लिए
देश को हिन्दू – मुस्लिम के नाम पर विभाजित किया था तो अब क्या
मूलनिवासी और ब्राह्मणों के नाम पर देश का बँटवारा होगा ??? क्या
ब्राह्मण इतिहास से कुछ नहीं सीखेगा ?? या
देश के टुकड़े कर के दम लेगा