नई दिल्ली।देश बदल रहा है, विकास
की गंगा हर तरफ बह रही है, भरष्टाचार हमेशा के लिए ख़तम हो गया है,
अब
कभी रोज़गार की समस्या नहीं होगी, सड़कें, पानी, बिजली,
अस्पताल,
स्मार्ट
सिटी, आदर्श ग्राम, स्वक्ष भारत बना गया है, बुलेट
ट्रैन हवा से बातें कर रही है, चीन भारत के क़दमों में पड़ा है, पाकिस्तान
का नामो निशान मिट चूका है, आतंकवाद अब रहा नहीं,,,,हाये
रे ‘जुमलेबाजों’ तुम ने देश का बंटाधार कर दिया और फिर
तुम को शर्म नहीं, आज कोई एक भी नहीं जो खुशहाल हो, हर
तरफ भय, लाचारी, बेबसी का आलम है, किसान आत्महत्या
कर रहे हैं, जवान सरहद पर मारे जा रहे हैं, नौजवान
फांसी लगाने को मजबूर हैं और तुम कहते हो अच्छे दिन आएंगे,,,,,,,सरकार
ने संसद में बताया कि वर्ष 2014 से 2016 के बीच देश भर में 26,600 छात्र-छात्राओं
ने आत्महत्या की.
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर
ने राज्यसभा को एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी देते हुए बताया कि वर्ष
2016 में 9,474 छात्र-छात्राओं ने, वर्ष 2015 में 8,934 छात्र-छात्राओं ने
और वर्ष 2014 में 8,068 छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या की.
उन्होंने बताया कि वर्ष 2016 में
छात्र-छात्राओं की आत्महत्या के सर्वाधिक 1,350 मामले महाराष्ट्र में हुए जबकि
पश्चिम बंगाल में ऐसे 1,147 मामले, तमिलनाडु में 981 मामले और मध्य प्रदेश
में 838 मामले हुए.
वर्ष 2015 में आत्महत्या के महाराष्ट्र में
1,230 मामले, तमिलनाडु में 955 मामले, छत्तीसगढ़ में
730 मामले और पश्चिम बंगाल में 676 मामले हुए.
गौरतलब है कि कुछ समय पहले भी ऐसी खबरें आई थी
कि भारत में हर घंटे एक छात्र आत्महत्या करता है. इसके लिए राष्ट्रीय अपराध
रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के वर्ष 2015 के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया था.
यानी भारत में पिछले कई सालों से
छात्र-छात्राओं की आत्महत्या रुकने का नाम नहीं ले रही हैं. मेडिकल जर्नल लांसेट
की 2012 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 15 से 29 साल के बीच के किशोरों-युवाओं
में आत्महत्या की ऊंची दर के मामले में भारत शीर्ष के कुछ देशों में शामिल है.
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)
सोर्स : तीसरी जंग