जन उदय : आज अगर आप भारत में आरक्षण के उपर बहस को देखे
तो कोई भी चलता फिरता नेता , बुद्धिजीवी, कवि ,नाटककार , आरक्षण पर बहस करता नजर आ जाएगा
, और उस पर अपनी टीका टिप्पणी कर देगा की आरक्षण बंद कर दिया जाए कि जातिगत आरक्षण
खत्म कर दिया जाए
दरअसल ये वो लोग है जो आरक्षण को दलितों को दिए जाने वाला
खैरात समझते है या ऐसा समझते है आरक्षण उनके हक को मार कर दलितों को दिया
जा रहा है
तो सबसे पहले ऐसे मंद
बुद्धिजीवी , नकली साधू , कवि छुट भय्या नेता समझ ले कि आरक्षण कोई गरीबी उन्मूलन
कार्यक्रम नहीं है , बल्कि सत्ता और समाज में भागीदारी का फार्मूला है और यह
सविन्धानिक है , दूसरी बात यह किसी खैरात या भीख में नहीं मिलता है बल्कि १९३२ के
कम्युनल अवार्ड में ब्रिटिश सरकार ने दलितों के प्रतिनिधित्व को स्वीकारा था और
दिया गया था ,
लेकिन गांधी की चालबाजी से
आंबेडकर ने कम्युनल अवार्ड को छोड़ा और उसके बदले आरक्षण की वाव्व्यस्था की गई , इस
कम्युनल अवार्ड की ख़ास बात यह थी की दलित समाज और इसके भूगोलिक खंड पर भारत सरकार
राज नहीं कर सकती थी और न ही भारत का कोई
अन्य जाति का व्यक्ति इनके क्षेत्र से चुनाव
लड़ सकता था हाँ दलितों को ये हक था की
उसको दोहरे वोट अधिकार थे
अब कोई भी बुद्धिजीवी समझ
सकता है की अगर ऐसा होता तो दलित आज स्वयं
राजा होते और खुद प्रजा उन पर कोई हुकूमत
नहीं कर सकता था यानी देश के अंदर ही कई देश होते दलितों के
लेकिन फिर भी बाबा साहेब ने
सदीओ की जिल्लत को भुला कर और इतिहास को ध्यान में रख कि हम एक रहेंगे तो सुरक्षत
रहेंगे को ध्यान में रखा और भारत यानी गांधी के समझोते को मान लिया वो भी सिर्फ और सिर्फ आरक्षण के लिए
आज हलांकि बहुत सारे दलित नेता भी ब्राह्मण की
बांटो में आकर यह कहने लगे है की आर्थिक रूप से
सक्षम दलित आरक्षण छोड़े , कमाल की बात यह है की सबसे पहले उन्हें
छोड़ना चाहिए ताकि बाकी दलितों को रास्ता दिखा सके , खुद सामान्य सीट पर लड़े
पार्टी के अंदर दलितों से सम्बन्धित किसी भी
विशेष अधिकार का प्रयोग न करे , और
अपने को दलित शब्द से दूर रखे
इसके अलावा जो लोग /पार्टी
के नेता आरक्षण का विरोध करते है तो सबसे पहले अपने चुनावी मेनिफेस्टो में लाये की जीतेंगे तो आरक्षण ख़त्म करेंगे , ताकि
आपकी कर्त्यवनिष्ठा चमके