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Sunday 20 March 2016

इस्लाम में दाड़ी है , दाड़ी में इस्लाम नहीं है

 इस्लाम में दाड़ी  है   , दाड़ी  में इस्लाम  नहीं है
जन उदय : यह बात सब जानते है है की इस्लाम धर्म का जन्म अर्ब देश में हुआ और ये बात भी सब जानते है की  दुनिया भर तमाम सामाजिक बुराइओ के खिलाफ इस्लाम का आगमन हुआ .

इसका सबसे पहला और बड़ा मकसद ही सामाजिक समानता , भाईचारा , और अमन  के साथ साथ कौम का विकास था ,

यही कारण भी रहा कि इस्लाम दुनिया के  कई देशो में फैला ,भारत में भी मुस्लिम राजाओं के आने से इस्लाम फैला ,  हलांकि इसके फैलने में  बहुत भ्रान्तिया है  गलतफहमिया  है ,  खैर हमारा उदेश्य  यह नहीं है बल्कि यह है की इस्लाम के आने से  और भारत के मूलनिवासियो  द्वारा  जो इस्लाम का अपनाया गया  उसमे कुछ ऐसी बाते आ गई की भारत के लोगो को यानी मुसलमानों को यह समझ में ही नहीं आता  की वो इस्लाम धर्म को अपना रहा है है या इस्लामी देशो से जो लोग आये ये वहा की खान – पान   और भौतिक संस्कृति को अपना रहे है


उधाह्र्ण  के लिए भारतीय मुसलमान  अर्ब देशो के लोगो की तरह कपड़े पहनाना  यानी सलवार और कुरता  पहनना  इस्लामी मानते है , जब की ये ही लोग भारत की अपनी प्राचीन संस्कृति की तरह पहन सकते थे ,

दूसरा अपने घर मकान अरब  देशो के मकानों की तरह बनाते है  जब वो यहाँ का शिल्प  इस्तेमाल कर सकते है  उसी तरह  तवा  , परात  बर्तन  , लोटा , पलंग , कपडे , सब अरब  देशो की तरह

तो मेरी तो यह समझ में ही नहीं आता की ये सब  तो इस्लाम की निशानी  नहीं   है ??  अगर है कोई मुझे  आके   बताये  ताकि मै  अपना  ज्ञान ठीक कर सकू
मुझे लगता है मुसलमान शायद अपनी अलग सामाजिक पहचान के चलते या उसे बनाने के लिए ये सब करते है  वरना  इन सब चीजो  का इस्लाम से कोई वास्ता  नहीं  इस्लाम  अपने मूल  सिधान्तो  पर  यानी रोजा , नमाज , जकात , आदि


हलांकि  मुस्लिम शादियो में इस्लामिक  रीती रिवाज के साथ  साथ इन लोगो के अपने पुराने रीती रिवाज को भी अपनाया जाता है जैसे मेहँदी , हल्दी , हाथ में कंगन इत्यादि वो परम्पराए है जो मुस्लिम बनने से पहले इनकी जातिओ में प्रचलित  थी

हलांकि  बदलाव के साथ साथ अब सब बदल  रहा है और लोग पारम्परिक अरबी  देशो की  भौतिक  संस्कृति  से बच  रहे है