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Sunday 20 March 2016

वीरांगना - रानी अवंती बाई : ब्रिजेश चोधरी कक्का



 बलिदान दिवस - 20 मार्च 1858 
देश की आजादी के लिय शहादत और संघर्ष की बेमिसाल घटनाओं में से एक ऐतिहासिक तथ्य रामगढ़ की रानी वीरांगना अवंतीबाई ने जिस प्रकार स्थापित किया वह न केवल तत्कालीन स्थितियों में महत्वपूर्ण था बल्कि आज भी उस वक्त प्रासंगिक है जबकि हम आजादी की लड़ाई के डेढ़ सौ सालों को याद कर रहे हैं ।

रानी अवंतिबाई ने मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के ग्राम मनकेड़ी में जुझार सिंह लोधी के यहां 16 अगस्त 1824 को जन्म लिया था । 17 वर्ष की आयु में उनका विवाह मंडला जिल में रामगढ़ के राजा विक्रमादित्य के संग हुआ । राजा 7 वर्ष ही जीवित रहे । माना जाता है कि अंग्रेजों ने उन्हें मानसिक रूप से इतना प्रताड़ित किया था कि वे पागल होे गए थे और अंततः उनके प्राण ही चले गये । रानी अवंतीबाई ने राज्य की बागडोर सम्हाल ली थी । उनके दो पुत्र थे अमान सिंह तथा शेरसिंह । अपने नाबालिग पुत्रों के लिए राजकाज सम्हालने वाली अवंतीबाई के इस कृत्य को अंग्रेजों ने उनके दुस्साहस के रूप में लिया और गद्दी सम्हालने के बाद से ही वे उनके पीछे पड़ गए । 



रानी के नेतृत्व में क्षेत्रीय तालुकेदारों एवं किसानों ने अंग्रेजों के विरूद्ध रानी का साथ देने का संकल्प ले लिया और 1857 में अंतिम गोंड राजा शंकरशाह और दलपतशाह को अंग्रेजों द्वारा तोप से बांधकर उड़ा दिए जाने की घटना के बाद जब क्रांति की ज्वाला तीव्र होने लगी तो रानी अवंतीबाई ने बगावत का खुला एलान करते हुए महाकौशल और बुंदेलखण्ड के जमीदारों के पास रोटी-पाती के रूप में अंग्रेजों के विरूद्ध मोर्चा खोलने का वह एतिहासिक कार्य किया जिसने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए । रानी जो संदेश भेजा था उसका आशय बहुत साफ था कहा गया था कि या तो शस्त्र उठाओ और अंग्रेजों को मार भगाओ अथवा घरों में चूड़ियां पहनकर बैठे रहे । रानी अवंतीबाई की प्रेरणा और उनका आव्हान गोंडवाना क्षेत्र में आजादी की पहली लड़ाई के मूल में था । दरअसल रामगढ़ की रियासत एक आदमखोर शेर को मार डालने के पुरस्कार स्वरूप लोधी ठाकुरों को जो कटनी जिले से यहां आए थे, प्रदत्त की गई थी । 
अंग्रेजों की अत्याचार नीतियों के कारण न वे ही असंतुष्ट थी बल्कि अन्य देशी राजे-रजवाड़े भी संतुष्ट नहीं थे । इस दौर में रानी के आव्हान ने आग में घी की तरह काम किया औरा क्रांति की ज्वाला ने अंग्रेजों का जीना मुश्किल कर दिया 
घुघरी में अंग्रेजों का नियंत्रण

वाडिंग्टन ने फिर से रामगढ़ के लिए प्रस्थान किया। इसकी जानकारी रानी को मिल गई। रामगढ़ के कुछ सिपाही घुघरी के पहाड़ी क्षेत्र में पहुंचकर अंग्रेजी सेना की प्रतीक्षा करने लगे। लेफ्टिनेंट वर्टन के नेतृत्व में नागपुर की सेनाएं बिछिया विजय कर रामगढ़ की ओर बढ़ रही हैंए इसकी जानकारी वाडिंग्टन को थीए अतरू वाडिंग्टन घुघरी की ओर बढ़ा। 15 जनवरी 1858 को घुघरी पर अंग्रेजों का नियंत्रण हो गया।


रामगढ़ का पराभव ;मार्चए 1858द्ध
मार्चए 1858 के दूसरे सप्ताह के आस.पास रामगढ़ घिर गया। विद्रोहियों एवं अंग्रेजी सेना में संघर्ष चलता रहा। विद्रोही सिपाहियों की संख्या में निरंतर कमी आती जा रही थी। किले की दीवारें भी रह.रहकर ध्वस्त होती गई। अतरू रानी अंग्रेजी सेना का घेरा तोड़ जंगल में प्रवेश कर गई। रामगढ़ के शेष सिपाहियों ने एक सप्ताह तक अंग्रेजी सेना को रोके रखा। तब तक रानी बुढ़ार होती हुईं देवहारगढ़ पहुंच गई। अंग्रेजी सेनाओं ने रामगढ़ किले को ध्वस्त कर दिया और रामगढ़ पर अधिकार कर लिया।

देवहारगढ़ युद्ध ;18.20 मार्च 1858द्ध
अंग्रेजी सेनाएं रामगढ़ विजय के बाद देवहारगढ़ की ओर रवाना हुईं। यहां रानी की सहायता के लिए शहपुरा एवं शाहपुर के जमींदार भी पहुंच चुके थे। देवहारगढ़ को अंग्रेज सैनिकों ने चारों ओर से घेर लिया। क्रांतिकारियों और अंग्रेजी सेना के मध्य निर्णायक युद्ध प्रारंभ हुआ। कई दिनों तक दोनों के मध्य युद्ध चलता रहा। रानी भी घायल हो चुकी थी। सैनिकों की संख्या कम होती जा रही थी। आगे युद्ध करना और स्वयं को सुरक्षित रखना कठिन हो गया। 20 मार्च 1858 रानी ने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए गिरधारी नाई की कटार छीनकर घुनसी नाले के निकट आत्मोत्सर्ग कर दिया। रानी का बलिदान हो गया फिर भी मुक्ति आंदोलन में ठहराव नहीं आया। यह क्रांति मात्र रामगढ़ की रानी अवंतीबाई की नहीं थी अपितु सम्पूर्ण क्षेत्र की थी क्षेत्र की प्रजा की थी।