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Wednesday 16 March 2016

धूर्तता और पाखंड संस्कारों में है अरविन्द केजरीवाल के

धूर्तता  और पाखंड संस्कारों में है  अरविन्द केजरीवाल के
जन उदय : समय समय की बात है की एक वक्त अरविन्द केजरीवाल छात्रो के एक संघठन यूथ फॉर इक्वलिटी  के मंच से आरक्षण का विरोध करता था और दलितों को उनके दिए जाने वाले सविन्धानिक अधिकारों के हमेशा खिलाफ रहता था .

इसके अंदर अराजकतावादी मानसिकता इतनी भरी है की कानून  और कानूनी प्रक्रिया की इज्जत करना इसके संस्कारों में ही नहीं है , अन्ना  आन्दोलन  को पूरी तरह नहीं नकारा जा सकता क्योकि वो एक समस्या के उपर चल रहा था लेकिन अरविन्द केजरीवाल का इस  आन्दोलन को चलाने की प्रक्रिया और अपनी मांगे मनवाने का अंदाज एक दम असविन्धानिक था

खैर इसके बाद इन्होने  आम आदमी पार्टी बना कर चुनाव  लड़े  और बहुमत हांसिल न कर सके  लेकिन फिर दुवारा एक मुख्यमंत्री होते हुए धरने पर बैठ गए जनता इनसे काम की उम्मीद कर  रही थी लेकिन केजरीवाल ने जनता का ध्यान काम से हटाने के लिए फिर से आन्दोलन के प्रपंच रचे
इसके बाद दुबारा दिल्ली में चुनाव हुए  और दलितों और मुस्लिम के बल पर केजरीवाल की सरकार पूर्ण बहुमत से आ गई , लेकिन अब भी महिला सुरक्षा  और महंगाई आदि कम नहीं हुई है  हालांकि जो बिजली कम्पनियो से बकाया राशि  लेनी है उसी से दिल्ली के लोगो को बिजली के दाम करके देना भी एक तरह से जनता को गुमाराह करना है

कमाल की बात यह है की केजरीवाल जिन दलितों के दम पर सरकार में है उनके खिलाफ अभी भी जहर उगलते रहते है  और आरक्षण विरोध के बात करते है ,

केजरीवाल धूर्त इतना है की अ एक तरफ तो आरक्षण का विरोध करता है दूसरी तरफ कांसीराम जी को भारत रत्न दिलाने की वकालत कर रहा है  कारण ?? पंजाब के चुनाव

वैसे ये धूर्तता इसके संस्कारों में भरी पड़ी क्योकि एक अखबार की रिपोर्ट के अनुसार इसके पिता  ने अपनी बहन का हिस्सा हडपने के लिए उसे अपनी माँ बता  दिया
इस वक्त केजरीवाल, संघ और मोदी एकी ही राह पर है