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Tuesday 8 March 2016

महिला आन्दोलन के नाम पर हो रहे है ढोंग ,पाखंड ,लूट और षड्यंत्र


आज इंसान लगभग  सभी ग्रहों पर पहुच गया  है लेकिन जांच में आजतक यह नहीं पता चल  पाया की महिलाओं के लिए धर्म ग्रंथो में गुलामी लिखने वाला भगवान रहता  कहा  है .
कमाल की बात यह है की चाँद  और अन्तरिक्ष में पहुचने वाला मर्द  जो पूरी वैज्ञानिकता को जानता है , “ भगवान् और धर्म ग्रंथो की  सारी असलियत  को पहचानने  वाला मर्द  है वह भी जब घर में घुसता  है तो सारी आधुनिकता , सारे खुल्ले विचार , मानवतावाद ,  इंसानियत सब कुछ दरवाजे के पायदान पर झाड कर अंदर घर में घुसता है , , नीलिमा  चौहान की फेसबुक वाल से चोरी किया  गया कथन “

सवाल यह है की आज महिलाय अपने बेसिक अधिकारों के लिए लडती नजर आती है ,इसका कारण पुरुषवादी , ब्राह्मणवादी समाज ही जिम्मेवार नहीं है बल्कि महिलाओं की लड़ाई लड़ने वाली महिलाए  और महिला सन्घठन एक ऐसी मानसिक संस्था के रूप में उभर कर सामने आये है जिनमे महिला अधिकारों के नाम पर महिलाओं के खिलाफ  महिलाए ही षड्यंत्र में जुटी  है
महिलाओं को शिक्षा , सम्पति अधिकार ,  मैटरनिटी  बेनिफिट सब कुछ डॉ. भीम राव आंबेडकर ने १९५६  में ही प्रस्तावित किये  थे , लेकिन उस वक् न सिर्फ  कट्टर हिन्दू संघठनो ने इसका विरोध किया  बल्कि इस कार्य में महिलाए भी सबसे आगे थी  जो महिलाओं को इन अधिकारों के मिलने के खिलाफ  थी जिसका नतीजा यह हुआ की आज  तक महिलाए सिर्फ उन्ही अधिकारों के लिए लड़ रही है जो उन्हें बाबा साहेब ने १९५६ में ही दिलाने की  कोशिस  की थी
महिला आन्दोलन में एक  षड्यंत्र है  यह कहना बढ़ा  अजीब लगता है लेकिन गौर से देखिये को महिला आन्दोलन वो महिलाए चला  रही है जो एक पुरातनवादी / ब्राह्मणवादी विचारधारा को पोषित और पल्लवित करते है मसलन बी जे पी , संघ , भाजपा ये संघठन भी महिला मुक्तो की बाते करते है फिर संस्कृति के नाम पर उसी विचारधारा की तरफ महिलाओं को धकेलते है जो महिलाओं को मानसिक  रूप से गुलाम बनाती  है .


इसके अलावा कुछ महिला संघठन उन महिलाओं के द्वारा चलाये जा रहे है जो जो महिलाए एक तो टाइम पास के लिए एन जी ओ  चलाती है , दुसरा उनके  पति या मर्द ऐसी संस्थाओं में होते है जो उन्हें इन आंदोलनों के नाम पर सरकारी फंड दिलाते है ,  मै ऐसा बिलकुल नहीं कहना चाहूँगा की ये महिलाओं उन पैसो से एश करती है , लेकिन ये बात जरूर  है महिलाओं की असली समस्या से वाकिफ होते हुए भी उनसे दूर  रहती है  हाँ , मीडिया में छाये  रहने के हमेशा प्रयास करती है . और  रहती भी है


तीसरी सबसे बड़ी समस्या महिला आंदोलनों की यह है ये सारे आन्दोलन जाति आधारित रहते है , यानी ये महिलाए या तो उन दबी कुचली दलित गरीब महिलाओं की व् आवाज उठाती है जो  इनके लिए सिर्फ एक विषय भर रहती है , जिनकी आड़  लेकर ये अपनी रोटिया सेंकती  है , हाँ अगर उनकी जाति  या स्वर्ण  जाति  की किसी महिला के साथ कुछ हो जाए तो ये आंदोलनों की बरसात कर देती है , दिन  रात उसमे लगी रहती है , दिल्ली बस बलात्कार काण्ड एक ऐसी ही जातिवादी मानसिकता का उधाह्र्ण  है , रोज दलित , गरीब , मजदूर महिलाओं के बलात्कार होते है लेकिन उनके बारे में ये सिर्फ भाषण  और ब्यान देना चाहिती है ,
ये ही महिलाए , महिलाओं के नाम पर उनके सारे हक खा जाती है  चाहे वो महिला आरक्षण हो या और कोई
सबसे बड़ी बात महिला समस्या जितनी भी विकराल क्यों न हो ये महिलाए अपनी अपनी पार्टी के खिलाफ कभी कोई आन्दोलन नहीं छेड़ती  यानी मतलब साफ़ है फायदा है तो आन्दोलन है