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Wednesday 27 December 2017

दीनदयाल हत्याकांड से बचने को अटल विहारी वाजपेयी ने इन्दिरा गांधी को ‘दुर्गा’ कह कर खुश किया था ... कीर्ति कुमार

दीनदयाल हत्याकांड में अटल विहारी वाजपेयी की भूमिका संदिग्ध थी, मोदी सरकार जांच कराने से क्यों बच रही?
दीनदयाल की हत्या की जांच कराने के बजाए जन्मशती मनाकर किस रहस्य को छुपा रही है मोदी सरकार-रिहाई मंच
जनसंघ अध्यक्ष बलराज मधोक ने दीनदयाल हत्याकांड में अटल बिहारी और नाना देशमुख की भूमिका पर उठाए थे सवाल...

मधोक ने लिखा अटल ने 30, राजेंद्र प्रसाद रोड को व्यभिचार का अड्डा बना दिया है
दीनदयाल का भारतीय राजनीति, समाज और सस्कृति में क्या योगदान था, संघियों के अलावा कोई नहीं जानता
लखनऊ । रिहाई मंच ने कहा है कि दीनदयाल उपाध्याय की जन्मशती पर करोड़ों रूपया खर्च करके जश्न मनाने वाली मोदी सरकार द्वारा अपने इस विचारक की हत्या की जांच पर मौन रहना इस लोकधारणा को पुख्ता करता है कि उनकी हत्या में अटल बिहारी बाजपेयी की भूमिका संदिग्ध थी और इसीलिए मोदी सरकार हत्याकांड की जांच नहीं कराकर अटल बिहारी को बचाना चाहती है।

मंच ने यह भी कहा है कि दीनदयाल उपाध्याय का भारतीय राजनीति, समाज और सस्कृति में क्या योगदान था, इसे पूरे देश में संघियों के अलावा कोई नहीं जानता। मंच ने कहा है कि जनता के पैसे से दीनदयाल उपाध्याय जैसे लोगों को प्रतिष्ठित करने का यह भोंडा प्रयास भाजपा और संघ परिवार के नायकत्व विहीन होने की कुंठा से निपटने का हास्यास्पद नुस्खा है।

रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि सुभाष चंद्र बोस की हत्या की जांच की मांग तो भाजपा करती है लेकिन अपने कथित दाशर्निकनेता दीन दयाल उपाध्याय की 11 फरवरी 1968 को मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर संदेहास्पद स्थिति में हुई हत्या की कभी जांच की मांग नहीं करती।
शाहनवाज आलम ने कहा कि समाज में यह धारणा व्याप्त है कि संघ और भाजपा दीन दयाल हत्याकांड की जांच की मांग इसलिए नहीं करती है कि इसमें खुद अटल बिहारी वाजपेयी और नाना जी देशमुख की भूमिका संदिग्ध थी। जिसका आधार पूर्व जनसंघ अध्यक्ष बलराज मधोक द्वारा अपनी पुस्तक जिंदगी का सफरके तीसरे खंड में दीनदयाल हत्या कांड के संदर्भ में किए गए रहस्योद्घाटन हैं।


गौरतलब है कि पुस्तक में मधोक ने बताया है कि उन्हें अपने सूत्रों से पता चला था कि हत्या में जनसंघ के ही कुछ वरिष्ठ नेता शामिल थे और ये पार्टी पर नियंत्रण के लिए चल रहे आंतरिक संघर्ष का नतीजा था। पुस्तक में उन्होंने यह भी रहस्योद्घाटन किया था कि तत्कालीन सरकार द्वारा इस हत्या कांड की की जारी जांच को अटल बिहारी बाजपेयी और नाना जी देषमुख ने बाधित किया और उसे ठंडे दिमाग से किए गए हत्या के बजाए एक दुखद दुघर्टना के बतौर प्रचारित किया।

मधोक ने अपने दावे के समर्थन में इस तथ्य को भी पुस्तक में दर्ज किया है कि 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तब सुब्रह्मणियम स्वामी ने तत्कालीन गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह से दुबारा जांच की मांग की लेकिन जनसंघ के मंत्रियों अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने इस प्रयास को बाधित कर दिया।
रिहाई मंच प्रवक्ता ने कहा कि जनमानस में एक धारणा यह भी है कि दीनदयाल की हत्या के पीछे एक कारण अवैध सम्बंधों से भी जुड़ा था जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी और नानाजी देशमुख की भूमिका मास्टरमाइंड की थी और इस धारणा का आधार भी मधोक की पुस्तक में उजागर किए गए तथ्य ही हैं।

गौरतलब है कि अपनी पुस्तक के तीसरे खंड के पृष्ठ संख्या 25 पर मधोक ने लिखा है ‘‘मुझे अटल बिहारी और नाना देशमुख की चारित्रिक दुर्बलताओं का ज्ञान हो चुका था। जगदीश प्रसाद माथुर ने मुझसे शिकायत की थी कि अटल (बिहारी वाजपेयी) ने 30, राजेंद्र प्रसाद रोड को व्यभिचार का अड्डा बना दिया है। वहां नित्य नई-नई लड़कियां आती हैं। अब सर से पानी गुजरने लगा है। जनसंघ के वरिष्ठ नेता के नाते मैंने इस बात को नोटिस में लाने की हिम्मत की। मुझे अटल के चरित्र के बारे में कुछ जानकारी थी। पर बात इतनी बिगड़ चुकी है, ये मैं नहीं मानता था। मैंने अटल को अपने निवास पर बुलाया और बंद कमरे में उससे जगदीश माथुर द्वारा कही गई बातों के विषय में पूछा। उसने जो सफाई दी बात साफ हो गई। तब मैंने अटल (बिहारी वाजपेयी) को सुझाव दिया कि वह विवाह कर ले अन्यथा वह बदनाम तो होगा ही जनसंघ की छवि को भी धक्का लगेगा।
’’
मंच के नेता अनिल यादव ने दावा किया है कि इंदिरा गांधी सरकार में हुई दीनदयाल हत्याकांड की जांच में सीबीआई और जस्टिस चंद्रचूड़ आयोग, दोनों ने ही अटल बिहारी और नाना देषमुख की भूमिका को संदिग्ध पाया था और उस रिपोर्ट को जल्दी ही इंदिरा गांधी सरकार सार्वजनिक करने वाली थी। जिसे रोकने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने बांग्लादेश के निमार्ण में निभाई गई भूमिका के लिए इंदिरा गांधी को सदन में दुर्गाकह कर सम्बोधित कर दिया। जिससे चापलूसों को पसंद करने वाली इंदिरा गांधी ने खुश होकर रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया।

अनिल यादव ने कहा कि अगर इंदिरा गांधी ने दीनदयाल उपाध्याय के हत्यारों को इंसाफ देने का साह
स दिखाया होता तो अटल बिहारी वाजपेयी और नाना देशमुख को इस जघन्य हत्याकांड में फांसी या उम्र कैद की सजा हो गई होती।