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Friday 15 April 2016

अपने हर अपमान और जिल्लत का बदला लेगा दलित :बात सिर्फ आरक्षण या सामाजिक समानता की नहीं है

 जन उदय : युद्ध में जीत  प्राचीन समाज में एक व्यक्ति के हाथो में निरंकुश सत्ता देती थी अब ये बात उस राजा पर निर्भर करती थी की वो हारे हुए व्यक्ति को क्या सजा दे . सभी युद्ध में यही होता था की सत्ता बदल जाति थी लेकिन आम आदमी , मजदूर किसान वही रहते थे कोई आय जाए मजदूर सिर्फ  मजदूरी ही करते थे ,

लेकिन   ब्राह्मणों ने ऐसा नहीं किया पुष्यमित्र शुंग जो  अशोक के पोते के राज में उसका एक सेनापति था उसने धोखे से सारी सत्ता को हडप लिया और उसके बाद उसने बौध  लोगो की हत्या करना शुरू कर दिया , जहा जहा तक उसकी नजर गई  वहा वहा बौध विहार , तोड़ दिए गए उनकी हत्याए की गई  , उनकी औरतो के बलात्कार किये गए यहाँ तक की गर्भवती  बौध महिलाओं के पेट फाड़ कर बच्चे निकाल कर उनकी हत्याए की गई और इनकी सारी जमीन , खेत , घर खलिहान पर कब्जा कर लिया गया  . ब्राह्मण  इस पुष्यमित्र शुंग को  परशुराम कहते है  और अपना भगवान् मानते है
इसके बाद भी परशुराम का दिल नहीं भरा इन बौध लोगो को गुलाम बनाया गया  और इनको हर क्व्हीज से वंचित कर दिया गया  जिसमे शिक्षा , धन , सम्पति आदि रहा  और यह सिलसिला सदीओ तक रहा और धीरे धीरे खुद शुद्र लोग  ब्राह्मणों के इस षड्यंत्र कि इनका जन्म अपने से उपर  वाले वर्गों यानी जातिओ के सेवा के लिए हुआ है और इनका हक इस दुनिया की किसी भी चीज पर नहीं है “ को भगवान् का आदेश मानने लगे

सर  उठाने पर सर काटना , पढने पर जबान काटना , शीशा पिघला कर कान में डालना भगवान् के नाम पर किया गया , ब्राह्मणों का षड्यंत्र सदीओ तक इस लिए भी कामयाब रहा की आने वाले अंतराल  में जो शासक भारत विदेशो से आये  , ब्राह्मण उनके साथ मिल गए  और उनको उनकी सत्ता में पूरा योगदान दिया  और यह भी कहा गया की ये गुलामो की फौज  उनकी सेवा के लिए हमेशा हाजिर है , जिससे आने वाले विदेशी मुस्लिम शासको को कोई ऐतराज न था

भारत  में अंग्रेजो का आना और भारत को गुलाम बनाना  शायद कुछ दृष्टिकोण से ठीक न हो लेकिन आधुनिकता , और शुद्रो की गुलामी को दूर करने में एक बहुत बड़ा कदम था जब अंग्रेजो ने शुद्रो के लिए भी शिक्षा की वाव्य्स्था की तो बस  जैसे इन ब्राह्मणों के होश उड़ गए  शायद इसी लिए ये आज भी लार्ड मैकाले को गाली देते है .
इसके बाद ब्राह्मणों में  डर  इसलिए भी आ गया जब १ जनवरी १८१८ की भीमा कोरेगाव की लड़ाई में सिर्फ ५००  म्हारो ने २९०००  हजार की सेना को काट कर फेंक दिया था

पेरियार  फुले , और बाबा साहेब के आन्दोलन  अब ब्राह्मणों को डराने लगे थे  यही कारण रहा की गाँधी ने पहली राउंड टेबल कांफ्रेंस में अम्बेडकर के  होने का  विरोध किया  और  विरोध ही नहीं किया बल्कि अंग्रेजो से कहा की अम्बेडकर को न बुलाया जाए ,
खैर  बाबा साहेब के प्रयासों से कम्युनल अवार्ड  मिला और  शुद्रो को हिन्दू नाम  से अलग करके देखा गया , जिसका  गांधी ने फिर विरोध किया  इसके बाद गांधी –अम्बेडकर के बीच पूना पैक्ट  हुआ जिसमे आरक्षण की वाव्य्स्था को स्वीकार किया  गया
आरक्षण के बावजूद  और इस बात के साबित होने के बावजूद की दलित ब्राह्मणों से लाग दर्जे बेहतर है ब्राह्मणों की जातिगत  दुर्भावना  गई नहीं है ये इतने मुर्ख है की इनको लगता है की ये रात को दिन  कहंगे तो सबको वही कहना पड़ेगा
योग्यता के नाम पर किचन से लेकर उपग्रह ,रेडियो , टीवी  फोन , कंप्यूटर ,आदि  कुछ भी नहीं बना पाए है  ,आधुन्किता के नाम पर भारत में जो कुछ भी है वह सब विदेशो से है लेकिन न जाने क्यों ये आज भी सुधर नहीं पाते

आज भी जाति के नाम पर दलितों के कत्ल हत्या , बलात्कार  करते है और इनको ये लगता है की इनका कुछ नहीं होगा

लेकिन दलितों में जो आक्रोश है अब इससे ये बच  नहीं पायंगे , सभी दलित युवा ये मानते है की आरक्षण तो है ही इनका हक इनकी लड़ाई सामाजिक समानता के साथ साथ उस उत्पीडन और अपमान का बदला लेना है   

वैज्ञानिक रूप से साबित की ब्राह्मण विदेशी हमलावर  है  तो इस देश में यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है की ये लोग आतंक मचाते रहे ,

वैसे भी दलित बुद्धिजीवी  मानते है की आने वाले सालो में गृह युद्ध  भारत में निश्चित है और ब्राह्मणों का अंत भी


उपरोक्त लेख दलित युवाओं से लिए गए इंटरव्यू पर आधारित  है