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Wednesday 23 November 2016

शील भंग करवा कर अपनी जगह बनाने वाली महिलाए तार्किक रिपोर्टिंग नहीं कर पाती, अखबार ,न्यूज़ चैनल सब एक अंडर वर्ल्ड गैंग की तरह

जन उदय : ५० के दशक में यह बहस जिन्दा थी की मीडिया झा चाहे समाज को मोड़ दे सकता है लोगो की मानसिकता को शेप कर सकता है , समाज की सोच को निर्धारित कर सकता है इसमें फिल्म ,कला न्यूज़ रिपोर्टिंग आदि सभी तरह की कला आती है . कार्ल मार्क्स ने तो यहाँ तक कहा की सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई में साहित्य / मीडिया एक हथियार का काम करता है .

लेकिन जैसे जैसे मीडिया में शोध बढ़ने लगे और संचार के फैलने यानी उसकी गति और प्रभाव पर और भी शोध हुए तो पीछे वाली भ्रान्तिया खत्म होने लगी और नयी नयी सोच सामने आने लगी और अंत में आज हम मीडिया शोध से यहाँ तक आ पहुचे है की मीडिया भ्रान्ति / प्रोपगेंडा फैलाने में एक नम्बर का हो गया है और कुल मिला कर ऐसा नहीं है की मीडिया लोगो को कुछ करने पर मजबूर कर दे बल्कि मीडिया इस तरह से भी काम करता है की समाज में ओपिनियन मेकर सूचना अपना काम करने लगते है यानी ये अफवाह भी हो सकती है .

महिलाए और दलित वर्ग के लोग बहुत चाहने पर भी इस ताकतवर माध्यम से नहीं जुड़ पा रहे है या ये कह सके है की इस माध्यम से उन्हें जानबूझ कर जुड़ने नहीं दिया जाता यानी जगह नहीं दी जाती , लेकिन बावजूद इसके बहुत सारे लोग इन मीडिया संस्थानों में अपनी जगह बनाने में कामयाब हुए है और बहुत अच्छा काम भी कर रहे है

लेकिन पिछले पन्द्रह सालो से मीडिया शेक्षिक संस्थानों में लगातार वृद्धि हुई है और साथ के साथ बहुत सारे चेंनेल और अखबार खुले है लेकिन इनकी ख़ास बात यह है की ये मीडिया संस्थान बिल्डर , और बनिया लोगो ने खोले है जिनका प्रथम उदेश्य इस माध्यम को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना और दुसरा कम से कम खर्च हो .. और

यही कारण रहा की मीडिया शेक्षिक संस्थानों से निकले ये नवयूवक पत्रकार अपनी जगह बनाने के लिए अपनी नौकरी पक्की करने के लिए वही काम करते है जो इनके बनिया आका कहते है और ये बनिया आका पोलटिकल खेमे में अपनी जगह बनाने के लिए अपनी दहशत फैलाने के लिए किसी न किसी पार्टी के लिए काम करने लगते है .और इस काम में लगे युवा युवती इनकी इस धूर्तता को अंजाम देते है



दरसल ये युवा पत्रकार जिसमे लडकिया भी शामिल है कुछ ऐसे पारिवारिक माहौल से आते है जो इलीट क्लास के होते है इसके अलावा इनका बौधिक स्तर बहुत ही कम होता है या कहिये की ये लडकिया इस तरह के काम के काबिल ही नहीं होती ,

अब इन लडकियो को चैनल इन लडकियो को लेता ही क्यों है ?? पहला ये की यह मानसिकता है की टीवी देखने वाले खबर के साथ साथ खबर देने वाली को भी देखते है यानी खूबसूरत लड़की को देखते है , लेकिन सिर्फ इतना ही काफी नहीं होता इनको लेने के लिए बड़े बड़े एडिटर भी चाहते है की खूबसूरत लड़की साथ रहे और जरूरत पड़े तो इस्तेमाल कर सके

इस्तेमाल की बात कोई खुल कर नहीं होती लेकिन अंदाज से समझा दिया जता है की नौकरी में रहने की शर्त यही है यानी सम्पादक का बिस्तर गर्म करना , इंडिया टीवी का तनु शर्मा केस शायद सबको याद होगा इसके अलवा चैनल मालिक सम्पादक इन लडकियो को अपने क्लाइंट या नेताओं को भी परोसते है और कुछ लडकिया तो इतनी शातिर होती है की चैनल छोड़ इन नेताओं के साथ ही हो लेती है एन डी टीवी का अमृता सिंह का केस जिसने राजनाथ से शादी की यह भी सबको याद होगा , . नीरा रादिया के साथ बरखा दत का भी केस सबको याद होगा की ये लोग कैसे पूंजीपति और अपने चैनल के लिए दलाली करती है

इन महिला एंकर और रिपोर्टर की भाषा , अंदाज , और खबरे पेश करने का तरीका और पक्षपाती तरिका इनके चरित्र को और भी दागदार बना देता है

यह हो सकता है की शायद इस तरह की लडकियो की संख्या या प्रतिशत कम हो लेकिन मीडिया के अंदर वर्ल्ड में जिस तरह की लडकिया काम कर रही है वो यकीनन जातिवादी , मुर्ख और अपना शील भंग कराने के बाद ही इसमें रहती है