जन उदय : आप सभी ने फिल्मे भी देखी है कहानिया भी पड़ी ,कहानिया , लोकोक्ति भी सुनी पड़ी
होंगी , कहानी किसी ख़ास व्यक्ति , घटना, समाज के इर्द गिर्द लिखी जाती है ,
चाहे ये कहानी काल्पनिक ही क्यों न हो तो भी इसका चरित्र निर्माण किया जाता है .
लोगो को उपदेश देने के लिए
, सही राह दिखाने के लिए , मनोरंजन करने के लिए
कहानियों का निर्माण या लेखन पुरातन काल से चला आ रहा है और शायद यही वजह
रही होगी की उस पुरात्त्न काल में रामायाण
महाभारत जैसे ग्रन्थ लिखे गए होने , इस तरह की किताबो , कहानिओ का असर बहुत
दूर और देर तक रहता है इसलिए इस कहानी को बुनने में
षड्यंत्र जरूर रहा होगा और रहता है
इस बात की पुष्टि सारे के सारे साहित्यिक
शौध और वैज्ञानिक शौध से हो चुकी है
अब सवाल यह है की कहानी को
पड़े , लोग जाने इस्ल्के लिए चरित्रों का
निर्माण एक ख़ास चीज होती है , अब मान
लीजिये आपके सामने सारा का सरा इतिहास रख दिया जाए तो क्या आप उसको दिलचस्पी से पड़ेंगे , बिलकुल
भी नहीं लेकिन इसी पूरी इतिहास में से
आपके सामने गुलिवर की यात्राये , अकबर की
लड़ाई , टीपू सुलतान की लड़ाई औरंगजेब के किस्से
आप बिलकुल जानना चाहेंगे , क्यों
?? दरअसल इन लोगो के जीवन में उअर इनकी जीवन घटनाए ऐसी है जो पाठक के लिए या पाठक
बनाने के लिए जरूरी है
आप एक फिल्म देखिये तो क्या आप उस फिल्म में कभी हीरो हेरोइन
के चारो तरफ घुमने वाले लोगो को पसंद करेंगे ?? बिलकुल नहीं जिस किरदार का काम ही नहीं तो उसे आप क्यों पसंद करेंगे ?? उसका कहानी में
कोई प्रभाव नहीं कुछ नहीं
इस दुनिया में लोग आज पांच
बिलियन से जयादा है लेकिन समाज और दुनिया में अपनी छाप छोड़ने वाले कितने है
?? हम कितनो पर कहानी और लेख लिखना चाहन्गे ??
कितनो को याद
रखना चाहेंगे ?? वही जो चरित्र
है सूअर है या सुकरात है , सद्दाम हुसैन , कर्नल गदाफी , ओबामा , गुजरात
दंगो में आया नाम नरेंदर मोदी ,ये ऐसे लोग है जिन्हें हम याद रखते है इसलिए हमारे जीवन में हम कई
बार खुद अपना पूरा जीवन ऐसा निकाल देते है की हम न तो किसी कहानी का किसी किस्से
का किसी लोकोक्ति का हिस्सा नहीं बन पाते
, हम आते है जीते है और मर जाते है सच में
सिर्फ एक जानवर की तरह , हम कहने को तो कहते है की हमारा वंश आगे बढ़ गया हमारी संतान पैदा हो गई , लेकिन क्या बस यही सही है ?? नहीं कुछ नहीं हमारे
मरने के बाद लोग धीरे धीरे हमें भूलने लगते है ,
लोग ही नहीं अपने भी और कही कुछ नहीं रहता
इसलिए जीवन में कुछ ऐसा कर जाना की हमारे बाद भी हम
रहे , अब कैसे रहंगे लोग हमको कैसे याद
करेंगे ये देखना बाकी है लोग गालिया दे
या आदर , लेकिन एक बात सही है की तब सही
मानो में हम चरित्र होते है हम कुछ बन
जाते है , कहानी सही , लेकिन बिना रावण के तो राम भी कुछ नहीं सिर्फ एक कोरी बकवास
इसलिए आप खुद सोचे हममे में क्या है
एक सूअर या सुकरात