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Monday 11 April 2016

भारत के राष्ट्रपिता : महात्मा ज्योतिबा फुले


महाराष्ट्र के पुणे शहर में जोतिबा फुले का जन्म दि. 11 अप्रैल 1827 में हुया था. उनके पिता का नाम गोविंदराव और माता का नाम विमलाबाई था. एक साल की उम्र में जोतिबा की माता का निर्वाण हो गया था. ईस्ट इण्डिया कंपनी के शासन में शुद्र वर्ण(आज के ओबीसी) की जातियों की शिक्षा प्रारम्भ हो गई थी. एक मराठी प्रा. शाला में जोतिबा की शिक्षा शुरू हुई. 1838 में एक ब्राह्मण के कहने से पिताने 11 साल के जोतिबा को स्कुल छुडवा दिया.

 1940 में 13 साल की उम्र में जोतिबा की शादी 9 साल की उम्र की सावित्री बाई फुले से की गई.1841 में 14 साल की उम्र में जोतिबा को स्कोटिश मिशन स्कुल में अंग्रेजी शिक्षा में प्रवेश दाखिल करवा दिया. 1847 में 20 साल की उम्र में जोतिबाने स्कुल छोड़ी. एक बार की बात है कि जोतिबा फुले अपने एक करीबी ब्राह्मण मित्र की शादी की बरात में गए तभी जैसे ही ब्राह्मणों को इस बातकी भनक पड़ी कि उनके बरात में कोई शूद्र माली भी शामिल है तो उन्होंने तुरंत बरात रोककर फुले को गली-गलौच देकर अपमानित करना शुरू कर दिया.

अंततः उन्हें बरात छोड़ कर आना पड़ा. यह बात उन्हें इतनी घर कर गई कि उन्होंने इसके बाद का सारा जीवन ब्राह्मणवादी व्यवस्था और पाखंडो को नष्ट करने के लिए ही कुर्बान कर दिया. अर्वाचीन भारत के इतिहास में अछूत जातियों के लिए 1848 में प्रथम स्कुल महात्मा जोतिबा फुले ने 21 वर्ष की उम्र में पुणे में शुरू किया था. 1855 में पुणे में देश की प्रथम रात्रि प्रौढ़ शाला महात्मा जोतिबा फुले ने आरम्भ की.. हम देखेंगे कि, बाबा साहेब ने ओबीसी समुदाय, जिस की देश में 54% से भी अधिक जनसँख्या है उसके उत्थान के लिए क्या किया था? ‘गुलामगिरी’, 'किसानो का कोड़ा' ‘सार्वजनिक सत्यधर्मजैसे पुस्तक महात्मा फुलेने लिखे थे.

अर्वाचीन भारत के वे प्रथम ओबीसी साहित्यकार थे. उन के पुस्तक आज भी जाग्रति के लिए उपयोगी है. 1882 में महात्मा फुलेने हंटर कमीशन के समक्ष पिटीशन दायर करके उसका ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया कि उच्च वर्गों को यह सोच कर शिक्षित करना कि वह इस ज्ञान का उपयोग कमज़ोर वर्गों को शिक्षित करने में लगायेंगे,


भारतीय सन्दर्भ में नामुमकिन है इसलिए सरकार को अब दलित ओर पिछड़े वर्ग की ओर ध्यान देना ज़रूरी है. शासन में शुद्र अति शुद्रो को भी सामाजिक हिस्सेदारी देने की जरुरत है, ये बात भी उन्होंने हंटर कमीशन की समक्ष पेश की थी. 

महात्मा फुले निर्बलो की सेवा अपनी जान जोखिम में डाल कर किया करते थे.1890 में जब उनका गाँव प्लेग की चपेट में आया तो उन्होंने बिना परवाह के रोगियों की सेवा में समर्पित कर दिया अंततः वे भी प्लेग का शिकार हो गए और 28 नवेम्बर 1890 में महात्मा फुले का निर्वाण हो गया.