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Wednesday 21 March 2018

SC/ST एक्ट में परिवर्तन कही षड्यंत्र तो नहीं ? महिला उत्पीडन कानून भी खत्म हो


 SC/ST एक्ट में परिवर्तन कही षड्यंत्र तो नहीं ? महिला उत्पीडन कानून भी खत्म हो
देश में अपराधो को कम करने के लिए  सभी लोग कड़े   से कड़े कानून बनाने की बात करते हैं , महिलाओं पर अत्याचार ,बलात्कार रोकने के लिए निर्भया  कानून बना दिया गया तो एस सी और एस टी   उत्पीडन कानून को क्यों  न कडा  किया जाए जब की  गुजरात के उना जैसी  घटनाएं  देश में रोज होती है  कही न कही देश में किसी न किसी  एस सी / एस टी  पर जुल्म होता है जाति  सूचक गाली  तो आम बात है  और उनकी हत्याए  मार पीठ  नियमित  कर्म काण्ड  बन गया है सवर्णों का . हालात यह है की मोदी  काल में  दलित उत्पीडन  के मामलो में ६०० %  से जयादा  वृद्धि  हुई है तो फिर ऐसी  क्या बात है की दलित  उत्पीडन से जुड़े कानून को एक दम कमजोर कर दिया है ?? वह भी यह कह  कर की इसका दुरूपयोग  हो रहा है . जब की ऐसा न के बराबर है .अगर ऐसा है तो हम महिला   कानून को क्यों नहीं खत्म करते ?? जबकि सवर्ण महिलाए  तो इस कानून का जम कर दुरपयोग  करती है ??

जब की दलित तो समाजिक , आर्थिक और शेक्षिक  रूप से काफी पिछड़े  है और इनके पास सिर्फ यह कानून ही एक सहारा था जिसके जरिये वो अपनी लड़ाई   लड़ सकते थे और अब इसको भी छीन लिया गया .
आइये इस कानून की उप्योगियता को इस उधाह्र्ण से समझते ही



1.एक गरीब दलित अपनी फरियाद लेकर तहसील जाता है और वँहा जग्गा ठाकुर नाम का अधिकारी मिलता है, उसे जग्गा ठाकुर फरियाद सुनकर उसे उल्टा एक थप्पड़ मारकर यह कहता है की भाग साले चमार/भँगी के इन्हा से, उसके बाद जब पुलिस में शिकायत होगी तब पुलिस जग्गा ठाकुर को गिरफ्तार करने से पहले जग्गा ठाकुर के अधिकारी जो की पक्का आईएएस, आईपीएस की रैंक का होगा से यह परमिशन लेगी की जग्गा को गिरफ्तार करे या नहीं। अब अगर उच्च अधिकारी भी ठाकुर, श्रीवास्तव, शर्मा, अग्रवाल होगा तो समझ जाए की उस गरीब दलित को एक थप्पड़ और मार दिया जाता तो भी कुछ नहीं होगा।




2.दूसरी व्यवस्था यह की गयी है की जग्गा ठाकुर दलित को सार्वजनिक स्थान पर थप्पड़ बजाता है, जातिसूचक शब्द कहे जाते है, खूब पिटाई की जाती है तो भी भी एफआईआर दर्ज होने के बाद पहले डिप्टी एसपी जांच करेगा, उसके बाद ही केस आगे बढ़ पायेगा। अब डिप्टी एसपी की मानसिकता पर यह निर्भर करेगा की केस दर्ज होना चाहिए या नहीं।

3.तीसरी व्यवस्था यह की गयी की जग्गा ठाकुर दलित को थप्पड़ व गालिया देने के बाद न्यायलय में जाकर अग्रिम जमानत ले सकता है, जिसके बाद आराम से बाहर घूमेगा व जांच को प्रभावित कर सकता है।

अत: अब एससी एसटी एक्ट का कोई औचित्य नहीं रहा ऐ।  चलो मान लिया की दुरूपयोग हो रहा था, लेकिन इसका यह मतलब नही की एक्ट को एक तरह से निष्प्रभावी ही कर दिया जाए।

 इसलिए दलितों को अब समझ लेंना चाहिए की पूजा करने या व्रत रखने के बाद भी हजारो सालो से कोई भगवान बचाने नही आया है आपको अपनी सुरक्षा स्वयं करनी पड़ेगी। इसलिए अब मन्दिर में घण्टा वजाने की जगह, शोषण करने वाले के सर पर घण्टा बजाने का जज्बा लाइये।  तभी एट्रोसिटी कम होगी। नही तो "ओ साले चमार के, ओ साले भँगी के" सुनते रहे।