Apni Dukan

Sunday 7 January 2018

भीमा कोरेगाँव ब्राह्मण आतंकवाद बनाम भारतीय मूलनिवासी संभाजी महाराज और गोविंद गोपाल महार की समाधि और भीमा कोरेगांव का सच .प्रदीप नागदेव

छत्रपति शिवाजी के जेष्ठ पुत्र छत्रपति संभाजी महाराज थे । शिवाजी महाराज के निधन के बाद 1680 में उन्होंने ही गद्दी संभाली थी। छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की तरह ही इस बार भी पूना के ब्राह्मण संभाजी महाराज के राज्याभिषेक से खुश नही थे । 

छत्रपति संभाजी महाराज और मुगलों में कई बार युद्ध हुए , किन्तु एक वक्त संभाजी के साले गणोजी शिर्के और मनुवादी ब्राह्मणों के धोखेबाजी/ दगाबाजी से छत्रपति संभाजी महाराज को मुकरब खां द्वारा बन्दी बनाकर औरंगजेब के समक्ष पेश किया गया । 

औरंगजेब के मन की मुराद पूरी हो गई . संभाजी महाराज को सजा देने के वक्त भी ब्राम्हण पंडित की मौजूदगी में मनुस्मृति के अनुसार सजा दी गई . 

औरंगजेब ने 11 मार्च 1689 को संभाजी की 31वर्ष की आयु में वीभत्स रूप से हत्या कर उसके शरीर के टुकड़े टुकड़े कर भीमा_कोरेगांव से पास वाले वडू गाँव में फिकवा दिये और यह फरमान जारी कर दिया कि कोई भी शख्स संभाजी के शरीर के टुकड़ों को उठाकर अंतिम संस्कार करेगा तो उसके भी टुकड़े टुकड़े कर दिए जाएंगे। 

संभाजी महाराज के विभत्स किये अंगों को उठाने की किसी की भी हिम्मत नही हुई। किन्तु उसी गाँव मे रहने वाले #गोविंद #गोपाल_गायकवाड़ महार वह शख्स है जिसने खुद के मौत की परवाह न कर छत्रपति संभाजी महाराज के यत्र तंत्र फैले शरीर के टुकड़ों को एकत्रित कर सिलाई किया , और ससम्मान छ्त्रपति संभाजी महाराज की अंत्येष्टि की रस्म पूर्ण की । 


इसी कारण गोविंद महार औऱ उनके परिवार के सभी 16 सदस्यों को मार दिया गया, ऐसे वीर गोविन्द महार की समाधि आज भी वडू गांव के महार बस्ती में संभाजी महाराज के समाधि के पास मौजूद है । 

अब भीमा कोरेगांव की सच्ची घटना यह है कि छ्त्रपति शिवाजी महाराज के साथ ही, उनके वंशजों के दुश्मन, ब्राह्मण पेशवा जिन्होंने शिवाजी को राजा मानने से इंकार कर दिया था , शिवाजी के वंशजो से धोखेबाज़ी से राजपाठ हथियाकर खुद 1713 में राजा बन बैठे। 

1 जनवरी 18018 को ब्राह्मणी पेशवाओं के 28000 सैनिक और महार रेजिमेंट के 500 सैनिकों के मध्य भीषण युद्ध हुआ जिसमें ब्राह्मणी पेशवाओं की पराजय हुई । पेशवाओं की इसी पराजय का जश्न मनाने 1 जनवरी को प्रतिवर्ष भीमा कोरेगांव में लाखों की तादात में बहुजन समाज (Sc,St,Obc) के लोग शौर्य दिवस मनाने और श्रद्दांजलि देने आते है । 


इस वर्ष 2018 में पेशवाओं औऱ महारो के बीच हुये युद्ध को 200 वर्ष पूर्ण हुए है। 
28 दिसंबर 2017 को वडू गांव में गोविन्द महार की समाधि के पास की सड़क पर उनके वंशजो ने एक दिशा निर्देशक बोर्ड लगाया था ताकि भिमा कोरेगांव में आने वाले बहुजन समाज के लोग वडू गांव में आते वक्त उन्हें गोविन्द गोपाल महार की समाधि के बारे में भी पता चले सके । 

किन्तु 29 दिसंबर 2017 को सुबह 10:30 बजे वडू गांव के सरपंच, ग्राम पंचायत के सदस्य, पुलिस पाटिल औऱ गांव में रहने वाले लगभग 500 से 700 लोगो ने मिलकर गोविन्द गोपाल महार की समाधि के पास लगाया हुआ दिशानिर्देशक बोर्ड तथा गोविन्द महार की समाधि का छत तोड़ दिया, 

इसके बाद गोविन्द महार के वंशजो ने समाधि तोड़ने वालों पर FIR दर्ज किया , साथ ही एट्रोसिटी एक्ट के तहत मामला दर्ज होने की खबर भी आई, इसके बाद 30 दिसंबर को भीमा कोरेगांव की ग्रामपंचायत में प्रस्ताव पारित किया गया कि 1 जनवरी को भीमा कोरेगांव पूरी तरह से बंद रहेगा, ताकि भीमा कोरेगांव में आने वाले लाखों बहुजन लोगो को दिक्कते /असुविधा हो । 

इसके बाद योजनाबद्ध तरीके से 1 जनवरी को भीमा कोरेगांव बंद रखा गया, 1 जनवरी को जब सुबह लगभग 12:00 बजे लोग शांतिप्रिय तरीके से अहमदनगर की औऱ से शौर्य स्तंभ की औऱ जा रहे थे तब भीमा नदी के पास कोरेगांव में कुछ लोगोंने स्तंभ की और जाने वाले लोगो पर बिल्डिंग के ऊपर से पत्थर फेकना शुरू कर दिया , साथ ही कुछ लोग वहा पर आने वाले लोगो की गाड़ियां तोड़ने लगे और गाड़ियों को जलाने लगे, इस तरह से ये आग धीरे धीरे बढ़ती चली गई, पत्थर बाजी बढ़ने लगी आगजनी बढ़ती गई और शौर्य स्तंभ की और जाने वाले लोगो के साथ मारपीट भी होती रही । 

लेकिन आज वही मनुवादी लोग इस घटना का संबंध पूना में हुई यलगार परिषद से जोड़ रहे है जिसमे उमर खालिद और जिग्नेश मेवानी आये थे, लेकिन वास्तविकता यह है कि उस परिषद का और भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा का किसी तरह से कोई भी संबंध नही है। 

भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा की शुरुवात वडू गांव से ही हुई है, जहाँ पर गोविन्द गोपाल महार की समाधि को तोड़ने के बाद समाधि तोड़ने वालों पर FIR दर्ज हुआ और इसके बाद यह सारी प्लानिग हुई... 
साथियों...!! सच परेशान हो सकता है पराजित नही ...!! 


Reality of Bheema Koregoan , Treachery of Peshwa, Treachery of Brahman