नया सनातन प्रमुख फ़तवा
यह कि विवाहोपरांत दंपत्तियों के जाने से केदारनाथ की बाढ़ आई थी, क्यों कि दंपत्ति जीवन अपवित्र कर्म है ।
विवाह के तुरंत बाद जीवन
में प्रेम कुछ ज़्यादा ही होता है और नव दंपत्ति यदि तीर्थ स्थानों पर जाते हैं और
वहॉं प्रेमरत रहते हैं तो यह अपवित्र कर्म हैं और प्रकृति नाराज़ होकर ग़ुस्से में
बाढ़ ला देती है और उसमें उन दंपत्तियों के साथ महा पवित्र साधु सन्यासी
तीर्थयात्री भी कोपभाजन हो जाते हैं !
समझ में आया कुछ ?
तो वहॉं प्रेमकांक्षी विवाहित युवक युवतियॉं न
जाया करें नहीं तो पुन: बाढ़ का क़हर आ जायेगा। सनातनप्रमुख के लिए .....वन विनाश अपवित्र नहीं
है, नदियों पर क़ब्ज़ा कर
उनके रास्तों को अवरुद्ध कर आश्रम होटल धर्मशाला आदि बनवाना अपवित्र कर्म नहीं है ,
एकदम ठीक गंगोत्री के मुहाने पर आश्रम बनाकर उसका सीवर सीवेज सीधे गंगाजी में समर्पित
कर देना अपवित्र कर्म नहीं है
पंडों की गुंडागर्दी ,
बेईमानी और व्याभिचार अपवित्र नहीं है ,
कुछ आश्रमों में हो रहे असंवैधानिक अवैधानिक
अनैतिक कर्म अपवित्र कर्म नहीं है , गंगा किनारे बन रहे होटल और सीवेज विसर्जन से प्रकृति नाराज़ नहीं होती न ही
गंगा जी क्रुद्ध होती हैं । भाड में जाये पर्यावरण विज्ञान और जलवायु परिवर्तन पर
संसार की चिंता, अब बाबा जी ने
समाधान खोज लिया है ।
बाबा जी आप इस धरती पर
कहॉं से अवतरित हुये ? बिना मॉं बाप के
प्रेम रत हुये ? किस स्थान पर ?
सनातन काल से तीर्थ
स्थानों पर उत्पन्न मनुष्य और अन्य जीव जंतु क्या अपवित्र कर्म के महाअपवित्र
उत्पाद हैं ? ऋषिकेश , प्रयाग , काशी , तिरुपति , रामेश्वरम आदि
स्थानों पर पैदा हुये पुरोहित परिवार कैसे अपवित्र नहीं हैं और तब प्रकृति कयों
नहीं रूठीउनसे कि आज भी अस्सी बरस की उम्र में पौरोहित्य कर रहे हैं ?
पर हमने तो आज तक
ज्ञानियों से यही सुना था कि प्रेम ईश्वर की सबसे सुंदर अभिव्यक्ति ही है ।
अब क्या करें ? रुड़की पर नया नाका लगवाएँ जाँच करने के लिये
कि कौन नवदंपत्ति है , हनीमूनर है ?
उस अपवित्र काम की जॉंच
कैसे होगी कि अधेड़ उम्र के पतिपत्नी करें ? और बूढ़े दंपत्ति क्या प्रकृति जन्य भावनाओं से वंचित किये
जायेंगें? बाबा जी जल्दी रास्ता
बताओ क्यों कि गरमियाँ आ चुकी हैं , हर उम्र के दंपत्ति पहाड़ों की ओर प्रस्थान कर चुके हैं , उनंहें तत्काल रोकना होगा ?!?
जय हो आर्यावर्त
जम्बूद्वीप भरतखण्ड के सर्वोच्च धर्म प्रमुख की!