प्राचीन भारत मे व्यापार कितना फला फुला इसका पता
उस समय के सिक्के या मुद्रा के प्रचलन से चलता है किन किन देशो में और स्थानों से व्यापार सम्बन्ध थे इसका पता भी खुदाई में
मिले इन सिक्को से चलता है .
अफ़सोस की बात है की तथाकथित
टूर पर भारत को स्वर्ण भारत सोने की चिड़िया
कहने वाले लोग इस बात का अभी तक
तार्किक रूप से पता नहीं चला पाए .
भारत में सिक्के / मुद्रा
का प्रचलन हलांकि प्राचीन समय से
ही है लेकिन उस वक्त दुसरे समुदाय , देशो और राज्यों
से व्यापार का तरीका विनिमय जयादा था
और मुद्रा पर आधारित कम था यानी की
एक वस्तु के बदले दूसरी वास्तु ले
लेना यही
लें दें का आधार था लेकिन जहा ये सब नहीं
हो सकता था वहा पर यह कहा आता है की जानवर , स्वर्ण ,
महिलाए को अदला बदला जाता
था जानवर में मुख्य रूप से गाय
और भैंस हुआ करती थी .
स्वर्ण मुद्रा का पता प्राचीन द्रविड़ संस्कृति
से पता चलता है जिसको बाद में
आर्यों ने भी अपनाया
और अशोक के समय
में इसको काफी वाव्स्थित रूप मिल चूका
था
कथित रूप से व्यापार का ग्रन्थ माने जाने वाले
अर्थ शास्त्रीय ग्रन्थ अथर्वेद में भी मुद्रा का कोई सही मुलायांक्न नहीं मिलता है
मौजूदा मुद्रा के प्रचलन
में मुस्लिम राजा शेर शाह सूरी का ही सबसे बड़ा
योगदान हमें देखने को मिलता है १५४० -१५४५ तक के समय में शेर शाह सूरी ने काफी युगांतकारी कार्य इस क्षेत्र
में किये और एक चांदी का सिक्का चलाया जो १७८
ग्राम का था जिसे रुपया नाम
दया गया हलांकि
इस में आगे आकर काफी सुधार हुए
जिसमे १६ आने बनाए गए और हर आना या
तो चार पैसे या १२ पैएस में
विभाजित था या जिसके
कारण भारत में मुद्रा को एक वैज्ञानिक
पहचान मिली
अंग्रेजो के आने के बाद भी यही शब्द प्रचलन में रहा और
जब अंग्रेजो ने कागज का रुपया पहली बार
बैंक ऑफ़ हिन्दोस्तान १७७०-१८३२ और बैंक ऑफ़ बंगाल १७८४ १७९१ में के जरिये चालु
किया