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Tuesday 29 March 2016

आयुर्वेद ब्राह्मणों का नहीं आदिवासिओ का ज्ञान है : ज्ञान चोरी के मामले में भी अव्वल है ब्राह्मण


जन उदय : पुरे विश्व में  स्वस्थ वृद्धि   बिमारिओ से जो इलाज  की प्रक्रिया  चलती है उसमे , आयुर्वेद , होमियोपैथी , यूनानी  और एलोपैथी  , इनमे से  एलोपैथी ने सबसे जयादा विकास किया है

 यूनानी प्रणाली ने ग्रीस में जन्म लिया। हिप्पोक्रेट्स द्वारा यूनानी प्रणाली की नींव रखी गई थी। इस प्रणाली के मौजूदा स्वरूप का श्रेय अरबों को जाता है जिन्होंने न केवल अनुवाद कर ग्रीक साहित्य के अधिकाँश हिस्से बल्कि अपने स्वयं के योगदान के साथ रोजमर्रा की दवा को समृद्ध बनाया। इस प्रक्रिया में उन्होंने भौतिकी विज्ञान, रसायन विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, पैथोलॉजी, चिकित्सा और सर्जरी का व्यापक इस्तेमाल किया।

यूनानी दवाएं उन पहलुओं को अपनाकर समृद्ध हुई जो मिस्र, सीरिया, इराक, फारस, भारत, चीन और अन्य मध्य पूर्व के देशों में पारंपरिक दवाओं की समकालीन प्रणालियों में सबसे अच्छी थी। भारत में यूनानी चिकित्सा पद्धति अरबों द्वारा पेश की गयी थी और जल्द ही इसने मज़बूत जड़ें जमा ली। दिल्ली के सुल्तानों (शासकों) ने यूनानी प्रणाली के विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया और यहां तक कि कुछ को राज्य कर्मचारियों और दरबारी चिकित्सकों के रूप में नामांकित भी किया था|


भारत में आयुर्वेद इंडस वैली  सभ्यता के समय से ही काफी उफान पर था और इसमें भी काफी  विकास था , लेकिन ब्राह्मणों ने न सिर्फ इस ज्ञान को बर्बाद किया  बल्कि इस सारे ज्ञान को अपने नामकर  लिया जिसका इतिहास अथर्वेद  से लगाते है  जब की ये सब जानते है की आयुर्वेद  वेदों से भी पहले  मौजूद  था और ब्राह्मणों ने इस ज्ञान को अथर्वेद  से शुरू किया है , अगर हम इस ज्ञान को अथर्वेद से शुरू करते है तो इस लिहाज से हम दुनिया में हम काफी पिछड़  जाते है ,

ब्राह्मणों ने यह ज्ञान यहाँ के मूल निवासी  और आदिवासी  लोगो से  सीखा  इस बात की पुष्टि इस बात से भी होती है की आदिवासी लोगो को ही सारी वनस्पति और जड़ी बूटियो की पहचान थी  और इसके सारे उपयोग भी मालूम थे , यही नहीं आज भी आदिवासिओ  को जंगल में रहने के कारण बहुत सारी जड़ी बूटियो के बारे में मालूम है जो किसी आयुर्वेद के प्रोफेस्सर  को भी मालूम नहीं  होती , आज भी ये लोग अपने सारे इलाज सिर्फ आयुर्वेद पध्दति से ही करते है
ब्राह्मणों ने अपने झूट को यहाँ से शुरू किया है


अथर्ववेद एक  उपवेद है। यह विज्ञान, कला और दर्शन का मिश्रण है। आयुर्वेदनाम का अर्थ है, ‘जीवन का ज्ञानऔर यही संक्षेप में आयुर्वेद का सार है।

हिताहितं सुखं दुःखमायुस्तस्य हिताहितम्।
मानं च तच्च यत्रोक्तमायुर्वेदः स उच्यते॥ -(च.सू.१/४०)

इस शास्त्र के आदि आचार्य अश्विनीकुमार माने जाते हैं जिन्होने दक्ष प्रजापति के धड़ में बकरे का सिर जोड़ा था। अश्विनी कुमारों से इंद्र ने यह विद्या प्राप्त की। इंद्र ने धन्वंतरि को सिखाया। काशी के राजा दिवोदास धन्वंतरि के अवतार कहे गए हैं। उनसे जाकर सुश्रुत ने आयुर्वेद पढ़ा। अत्रि और भारद्वाज भी इस शास्त्र के प्रवर्तक माने जाते हैं। आय़ुर्वेद के आचार्य ये हैंअश्विनीकुमार, धन्वंतरि, दिवोदास (काशिराज), नकुल, सहदेव, अर्कि, च्यवन, जनक, बुध, जावाल, जाजलि, पैल, करथ, अगस्त, अत्रि तथा उनके छः शिष्य (अग्निवेश, भेड़, जातूकर्ण, पराशर, सीरपाणि हारीत), सुश्रुत और चरक।


अब सब लोग दुनिया के इतिहास से इस परम्परा की तुलना करेंगे  तो साफ़ पता चल जाएगा  की  ब्राह्मणों  ने इस ज्ञान   पर कब्जा किया है  यह इनका नहीं  है