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Saturday 3 March 2018

संगीत मन और तन को भी रखता है स्वस्थ :

अगर हम ये कहे की कला जीवन है और इसके बिना जीवन अधूरा ही रहता है काफी शोष में  पाया गया है की जो लोग संगीत से दूर रहते है उनके जीवन में उमंग कम रहती है .और वो एक नीरस टाइप का व्यक्तित्व  ही रहता है

मानव ने संगीत को प्रक्रति से महसूस करना ही सीखा होगा , पानी का झरना  जैसे बहता है ,  नदियो के बहने के संगीत से , हवा के चलने से जो स्वर पैदा होते है , पत्तो के झड़ने से जो संगीत उत्पन्न होता है संगीत के शुरूआती आधार रहे है  और यही कारण है की संगीत के उपकरण प्राकृतिक  पदार्थो से ही बने है  और यही कारण है भारत में  नहीं पूरी दुनिया में संगीत का  आधार लोक गीतों में लोक वादक यत्रो में में है यानी  का आधार आज भी वन जातिओ में हि मिलता है

संगीत का एक गूढ़ विज्ञान है। स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव अक्षुण्ण है। इस तथ्य को यूनानी, फारसी व हिब्रू के अनेक स्वास्थ्य-ग्रंथ स्वीकार करते हैं। इन ग्रन्थों में संगीत के माध्यम से नींद, पाचन एवं रक्तचाप आदि के उपचार वर्णित है।

प्रो. रेहलॉक ने पदार्थ को ऊर्जा का एक रूप मानते हुए विभिन्न पदार्थों की तरंगों एवं कम्पनों की व्याख्या की है। हर पदार्थ-तरंग की एक विशेष आवृत्ति होती है। यह आवृत्ति ही व्यक्ति पर अच्छा और बुरा प्रभाव डालती है। भावपूर्ण गीतों की आवृत्ति व्यक्ति को संवेदना से ओतप्रोत कर देती है तथा देशभक्तिपूर्ण गीतों से नसें फड़कने लगती हैं। यह सब उन विशिष्ट तरंगों का कमाल है। प्रो. एल्विन और डॉ. ब्रांडी के अनुसार, ʹसंगीत का प्रभाव मस्तिष्क में स्थित ʹलिंबिक सिस्टमʹ पर पड़ता है, जिसका संबंध आनंद, उत्साह एवं उमंग से होता है।ʹ


संगीत-चिकित्सा का मुख्य कार्य है स्नायु समूह के प्राण को प्रोत्साहित करना। इससे मांसपेशियाँ सक्रिय हो उठती हैं। संगीत में विद्यमान सूक्ष्म ध्वनि तरंगें मनोदशा पर गहरा प्रभाव डालती हैं। इसके इस गुण के कारण ही इसे वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति के रूप में विकसित किया जा रहा है।

 यूरोप ,अमरीका की मदद से स्थापित ʹराग रिसर्च सेन्टर, चेन्नईʹ ने शास्त्रीय रागों द्वारा रोगोपचार की विधि खोज निकाली है। इनके अनुसार प्रत्येक राग का प्रभाव भिन्न-भिन्न होता है। राग-आनन्द-भैरवी उच्च रक्तचाप को कम करता है। इसी तरह राग शंकरभरणम् मानसिक रोगियों को राहत पहुँचाता है।

अलग-अलग तालों का भी विविध रोगों में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। तालों का संबंध शरीर के अलग-अलग आध्यात्मिक चक्रों से है। जैसे कहरवा-मूलाधार, दादरा-स्वाधिष्ठान, झपताल-मणिपुर, चारताल-अनाहत, त्रिताल-विशुद्धाख्य इत्यादि।

न्यूरोलॉजिस्टों के अनुसार संगीत मस्तिष्क के दायें भाग से संबंधित होता है। संगीत के सुरों से पिटयूटरी ग्रंथी से एंडोर्फिन हार्मोन का स्राव होता है। श्रेष्ठ संगीत से शरीर में केटेकोलेमाइंस (Catacholamines) और एड्रेनेलीन का स्तर कम हो जाता है। इससे बढ़ी हुई हृदय गति, उच्च रक्तचाप तथा संगृहीत फैटी एसिड एवं लैक्टेट नामक विष का स्तर घट जाता है। अच्छा संगीत सुनने से आधासीसी (माइग्रेन) एवं तनाव कम हो जाता है। अर्धविक्षिप्त मस्तिष्क एवं उन्माद, मूर्च्छा रोग (हिस्टीरिया) के रोगियों को इससे आश्चर्यजनक लाभ होता है। संगीत का सर्वाधिक प्रभाव अंतर्मुखी व्यक्तियों पर होता है। संगीत की तरंगें अंतःस्रावी ग्रंथियों को सक्रिय कर देती हैं।

प्रो. हरिशर्मा तथा उनके सहयोगी काफमैन एवं एलन एल. स्टीफन के अनुसार, ʹएक ओर अच्छे गीतों से नुकसान भी हो सकता है।ʹ इनके अनुसार रॉक संगीत से हृदय के एवं कैंसर आदि रोगों को बढ़ावा मिल सकता है। लंकाशायर हॉस्पिटल तथा महर्षि आयुर्वेद फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से ʹसामवेदʹ के गायन-मंत्र एवं ʹब्लैक एंड ब्लैकʹ संगीत का तुलनात्मक अध्ययन किया गया। इस शोध निष्कर्ष ने पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों की नींद उड़ा दी। ब्लैक संगीत मस्तिष्क, स्तन आँतें, फेफड़े और त्वचा की कैसंर की कोशिकाओं में 25 प्रतिशत की वृद्धि कर देता है।