जन उदय : भारत में दलित समुदाय जिस तरह जाति
के नाम पर और उससे जुड़े अत्याचार से परेशान है कह नहीं सकते हर जगह हर
स्थान पर जातिवाद का बोलबाला और ये सब वो लोग जयादा फैलाते है जो अपनी ऊँची जाति को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल
करते है और दलितों का मोबल एक पल में जातिवाद के नाम पर तोड़ देते है ,
लेकिन ये सब देख कर ऐसा लगता नहीं की दलित
लोग भी जातिवाद और उत्पीडन के
खिलाफ कोई जोरदार और सच्ची मुहीम चला रहे
है है जातिवाद से उत्पीडन के बावजूद ये लोग खुद ब्राह्मणों द्वारा फैलाए गए जाल
में फंसते है खुद उनकी शरण में पहुच जाते
है
इसके अलावा खुद दलितों के नेता इनके
नाम से आगे बढ़ते है , दलित
नाम से जीवन में नौकरी पाते है लेकिन जब सही समय आता है तब दलितों के दलाल इनका
सौदा कर बैठते है , राम
विलास पासवान , उदित
राज जितन राम मांझी जैसे लोग जो आरक्षण की बदौलत आगे आ गए है अब दलितों को आरक्षण
छोड़ने का उपदेश देते है ,
इसके अलावा खुद समान्य जन उन सभी ब्राह्मण कुरितियो को अपनाते है जो इनके लिए जाल के रूप में तैयार की गई
इसके अलावा न तो इन लोगो में एकता है
और न ही द्रिड निश्चय , ये लोग
बस ये चाहते है जाति बरकरार रहे लेकिन जाति के नाम पर उत्पीडन न हो
और इन्हें आरक्षण मिलता रहे
इसपर जयादा कुछ न कहते हुए पेश है एक छोटी से कहानी जिसको शशि अतुलकर के
फेसबुक वाल से लिया गया है
एक ओबीसी अफसर हनुमान का भक्त था।
रोज वह हनुमान के मंदिर मे जा कर प्रसाद और पैसे चढाता फिर घर आ कर अपने
कुत्ते को भी प्रसाद खिलाता। एक दिन उसका कुत्ता भी उसके पीछे-पीछे मंदिर तक चला
गया, वहां
सभी लोग कुत्तों को भी प्रसाद डालते थे। जैसे ही वह अफसर का कुत्ता प्रसाद खाने
लगा तो वहाँ के लोकल कुत्ते उस पर टूट पडे। जैसे-तैसे उस अफसर ने अपने कुत्ते को
बचाया लेकिन कुत्ते के कई घाव हो चुके थे, घर लाकर अफसर ने कुत्ते की मरहम पटटी की और कुत्ते को उपदेश
देने लगा , क्या
जरूरत थी मंदिर आने की, अकल
ठिकाने आ गइ न, अब तो
कभी मंदिर नहीं जायेगा।
कुत्ते ने जवाब दिया मैं तो कुत्ता हूँ फिर भी कसम खाता हूँ क़ि जहाँ मेरी
बेइज्जती हुई है वहाँ कभी नहीं जाउंगा। पर तुम तो जानवरों से भी गिरे हुए हो, तुम्हारे बाप दादा और माँ बहिनो की हिंदू धर्म के नाम पर
मंदिरो मे अनेको बार बेइज्जती हुई हैं फिर भी तुम कितने बेशर्म हो, तुम्हें लात मारने के बाद भी बार बार उन्ही हिन्दू मंदिरो
में जाते हो।
सुधर जाओ।