हम बाबा साहब को
मानते है लेकिन बाबा साहब की नहीं मानते है। दोस्त और दुश्मन की पहचान किये बगैर
आप लड़ाई नहीं जीत सकते है। हमारा समाज अल्प सन्तुष्ट है छोटी बात में खुश हो जाता
है, और छोटी ख़ुशी के लिए
पीढ़ियों तक को दांव और लगा देता है। आज ब्राह्मण भी जयभीम बोल रहे , आज आर एस एस , बी जे पी, कांग्रेस सभी
बाबा साहब का नाम ले रहे है, अंतर क्या है ?
भारत के संविधान के 13वे अनुच्छेद के अनुसार 26 जनवरी 1950 के पहले के सारे
नियम कानून, रूढ़ि , परम्पराये समाप्त हो गयी, भविष्य में भी कोई ऐसा कानून नहीं बनेगा जो
मौलिक अधिकारो का हनन करता हो। अर्थात भारत के संविधान के अनुसार 26 जनवरी 1950 को ब्राह्मणो का अस्तित्व समाप्त हो गया क्योकि मनुस्मृति
के कानून समाप्त हो गए, लेकिन व्यवहार
में ब्राम्हण आज भी है और हम लोग भी ब्राह्मणो को और ब्राह्मणो की व्यवस्था को
मान्यता देते रहते है।
26 जनवरी के बाद
भारत में रहने वाले सभी नागरिक भारतीय हो गए क्योकि सबको भारत के नागरिक होने की
मान्यता दी गयी। और जिन्हें ब्राह्मणो ने हजारो साल से अधिकार बंचित कर गुलाम
बनाया उन्हें लोकतन्त्र में प्रतिनिधित्व देने के लिए विशेष अधिकार दिए गये आरक्षण
के रूप में , ऐसे वंचित गुलाम
समाज के मूलनिवासियो को SC/ST/OBC कहा गया दलित कही
नहीं कहा गया , इन लोगो को भारत
की मूलनिवासी जाति है इसका प्रमाण पत्र भी जारी किया जाता है।
ब्राह्मणो को
नागरिकता दी गयी भारत की , मूलनिवासी होने
का प्रमाणपत्र नहीं दिया गया। लेकिन ब्राह्मण खुद को भारत का नागरिक मानने के बजाय
खुद को ब्राह्मण मानता है, अनुसूचित जाति के
लोगो को दलित अनुसूचित जनजातियो को बनवासी और अन्य पिछड़े वर्ग को हिन्दू कहता है
और भारत को हिंदुस्तान कहता है। भरत के संविधान पर नहीं मनुस्मृति पर अमल हो रहा
है।
बाबा साहब की अपेक्षा थी जिस समाज में 10 डॉक्टर 20 इंजीनयर 30 वकील होंगे उस समाज की तरफ कोई आँख उठाकर नहीं
देख सकता है। आज मूलनिवासी बहुजन समाज उन्ही ब्राह्मणो की तरफदारी करता दिखाई दे
रहा है।जिनका अस्तित्व संविधान ने समाप्त कर दिया। यही इन्ही ब्राह्मणो ने हमेशा
बाबा साहब को गाली दी और षड्यंत्र पूर्वक हत्या की , आज उनके जयभीम बोलते ही हम खुश हो जाते है। हमे गर्व होना
चाहिए हम भारत के मूलनिवासी है राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले ड़ॉ बाबा साहब की सन्तान
है। दोस्त और दुश्मन की पहचान करना होगा। जयभीम जय मूलनिवासी जय भारत